
बहुत पुरानी बात है, बग़दाद के करीब एक इलाक़ा था जिसे “अल–नसीम“ के नाम से जाना जाता था। ये शहर अपने पुराने बाज़ारों और अमीर ताजिरों के लिए मशहूर था. उसी शहर में एक शख्स रहता था जिसका नाम फ़हीम था। फ़हीम अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए न तो कोई काम करता था, न ही उसे मेहनत-मज़दूरी करने में कोई दिलचस्पी थी। उसका यक़ीन था कि अक़्लमंदी से जो मिल सकता है, उसके लिए हाथ-पाँव गंदे करने की ज़रूरत नहीं। इसलिए जब भी उसे मौक़ा मिलता वो किसी ना किसी के घर में चोरी करने निकल पड़ता। चोरी करने में उसे ऐसी महारत हासिल हो चुकी थी कि आज तक कोई उसे पकड़ नहीं पाया था।
उसका तरीक़ा बड़ा ही समझदारी से भरा हुआ था. दिन के वक़्त वो चुपचाप किसी घर के पास बैठकर उसकी निगरानी करता। देखता कि उस घर में कौन-कौन रहता है, कौन कब आता-जाता है, और सबसे अहम बात कब घर खाली होता है। फिर जब रात का अंधेरा गहराता और पूरा शहर नींद में डूब जाता, फ़हीम दबे क़दमों से उस घर में दाख़िल होता और जो कुछ भी क़ीमती हाथ लगता, समेट लेता। एक रोज़ दोपहर के वक़्त फ़हीम ने इरादा किया कि आज किसी के घर से कुछ चुरा लिया जाए, जिससे कुछ दिनों का गुज़ारा आसानी से हो सके। यही सोचकर उसने एक पुराने मगर साफ़-सुथरे घर का चुनाव किया। वो लंबे वक़्त तक उस घर का जायज़ा लेता रहा, मगर उसे वहां कोई दिखाई नहीं दिया।

कुछ देर बाद अचानक एक बुज़ुर्ग शख़्स घर के अंदर से बाहर निकला। फ़हीम ने देखा कि वो बुज़ुर्ग एक लकड़ी के सहारे चीज़ों को टटोलते हुए चल रहा है। उससे अंदाज़ा हुआ कि वो शख़्स शायद नाबीना है। थोड़ी देर बाद वो बुज़ुर्ग वापस घर के अंदर चला गया। फ़हीम ने ये मौक़ा गँवाना मुनासिब नहीं समझा। वो भी आहिस्ता-आहिस्ता उस अंधे शख़्स के घर में दाख़िल हो गया। उसने चारों ओर देखा और यक़ीन हो गया कि बुज़ुर्ग वाक़ई देखने से महरूम है। फ़हीम ने फ़ौरन घर के कमरों का जायज़ा लेना शुरू किया। एक कमरे में उसे एक संदूक रखा हुआ दिखाई दिया। उसने धीरे से संदूक खोला तो देखा कि उसके अंदर कई अशर्फ़ियाँ और सोने-जवाहरात रखे हुए हैं। लालच में आकर फ़हीम ने कुछ अशर्फ़ियाँ उठाईं और बहुत एहतियात से, बग़ैर कोई आवाज़ किए, घर से बाहर निकल आया।
घर से बाहर आकर फ़हीम ने जेब में रखी अशर्फ़ियाँ निकालीं और गिनने लगा। चमकती हुई सोने की वो मुहरें उसकी आँखों में एक अजीब सा लालच भर रही थीं। वो सोचने लगा अगर उस घर में पूरी तरह से चोरी कर ली जाए तो इतना माल हाथ लग सकता है कि अगले दो-तीन साल तक बिना किसी काम और मेहनत के आराम से गुज़ारा हो सकता है।”
घर पहुंचते ही वो बेचैनी से टहलने लगा। उसके ज़हन में बार-बार वही संदूक और उसके अंदर भरा हुआ खज़ाना घूम रहा था। मगर फिर वो बेचैन में बड़बड़ाया, माल तो बहुत है, मगर अकेले मुझसे इतना सब कुछ उठाना और लेकर भागना आसान नहीं होगा. मुझे इस काम में किसी और की मदद लेनी होगी ताकि ज़्यादा से ज़्यादा माल चुराया जा सके।”
इसी ख़याल में डूबा हुआ फ़हीम एक जगह बैठ गया। तभी उसका ध्यान अपने दो पुराने दोस्तों नासिर और इकरार की तरफ़ गया। वो भी फ़हीम की तरह ही ग़रीब थे। बचपन से ही तीनों साथ थे. नासिर और इकरार दोनों ही बहुत ज़हीन थे, उनकी समझ, उनकी सूझ-बूझ दूसरों से कहीं बेहतर थी। लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी अक़्ल का इस्तेमाल मेहनत या अच्छे कामों में नहीं बस यूं ही ज़िंदगी गुज़ारते रहे। फ़हीम को यक़ीन था कि अगर वो दोनों उसका साथ दें, तो उस बूढ़े के घर से पूरा ख़ज़ाना उठाना बिल्कुल मुमकिन है।
इसी ख़याल में फ़हीम अपने दोस्तों की तलाश में निकल पड़ा। कुछ ही देर में उसे नासिर और इकरार खेत के किनारे एक पुराने पेड़ के नीचे बैठे नज़र आ गए। फ़हीम चुपचाप उनके पास गया, मुस्कुराते हुए बैठ गया और हालचाल पूछने लगा। कुछ देर तक आम बातें होती रहीं, फिर अचानक फ़हीम ज़रा धीमे लहजे में बोला, मेरे पास एक ऐसा काम है जो अगर हम कर जाएं, तो रोटियाँ सेंकने की ज़रूरत नहीं रहेगी। रोटियाँ ख़ुद हमारे दरवाज़े पर आएंगी। फ़हीम ने आगे कहा, तुम दोनों सारा दिन यूंही यहां-वहां भटकते हो। कोई काम-धंधा नहीं। अगर चाहते हो कि आने वाले कुछ साल आराम और ख़ुशहाली में गुजरें तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा। बस मेरी बात मानो, इस काम में मेरा साथ दो फिर देखना हम तीनों के पास भी इतना माल होगा कि संभालना मुश्किल हो जाएगा।”

फ़हीम की बात सुनकर दोनों दोस्त नासिर और इकरार ने उसे हैरत से देखा और एक साथ पूछा, कौन सा ऐसा काम है जिससे हम इतनी जल्दी अमीर हो सकते हैं? फ़हीम ने इधर-उधर देखा, फिर आवाज़ धीमी करते हुए बोला, तुम दोनों को बस मेरे साथ एक घर में चोरी करनी होगी। इतना माल है वहां कि ज़िंदगी भर मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।” उसकी बात सुनते ही दोनों दोस्त चौंक पड़े। उनके चेहरे पर डर और हैरानी साफ़ झलक रही थी। नासिर ने फ़ौरन कहा फ़हीम, ये चोरियों का काम हमारा नहीं। हमने कभी ऐसा नहीं किया और न ही करना चाहते हैं। इकरार ने भी सिर हिलाते हुए कहा, अगर ख़ुदा न ख़्वास्ता पकड़ लिए गए तो चोर की सज़ा जानते हो न? क़ाज़ी एक हाथ काट देगा और पूरे शहर में जो ज़िल्लत होगी वो अलग।
उनकी बातों को सुनकर फ़हीम ने कहा, फिक्र मत करो हम किसी हाल में पकड़े नहीं जाएंगे। जिस घर में हम जाने वाले हैं वहाँ एक बूढ़ा शख़्स रहता है जो आंखों से अंधा है। अगर चोरी करते वक़्त वो जाग भी गया तो हमें देख नहीं सकेगा। मैं उस घर का जायज़ा ले चुका हूँ. एक कमरे में बहुत कीमती चीज़ें और एक संदूक रखा है जिसमें ढेर सारी अशर्फ़ियाँ हैं। इतना कहकर फ़हीम ने अपने कपड़ों से वो अशर्फ़ियाँ निकालीं जो उसने पहले से चुरा रखी थीं और उन्हें नासिर और इकरार के सामने फैला दिया। लेकिन फिर भी दोनों दोस्तों ने सिर झुकाकर इंकार किया। हम इस ग़लत रास्ते पर नहीं चल सकते, नासिर ने कहा। ना ये हमारे बस की बात है, ना हमारा ज़मीर इसे मंज़ूर करता है, इकरार बोला।
आख़िरकार फ़हीम ने कुछ सोचते हुए कहा ठीक है, तुम लोग किसी चीज़ को हाथ मत लगाना। बस मेरे साथ चलना और जब मैं माल एक कपड़े में बाँध लूं, तो मुझे उसे घर से बाहर निकालने में मदद करना। इसके बदले मैं तुम्हें वही इनाम दूँगा जो तुम्हें चोरी में साथ देने पर मिलने वाला था। फ़हीम ने धीरे से कहा हम रात में चलेंगे। तुम लोग किसी भी बहाने से अपने-अपने घर से निकल जाना।
जैसे ही रात का अंधेरा पूरे शहर पर छाया, नासिर और इकरार ने अपने घरवालों से सेरो-तफ़रीह का बहाना बनाया और चुपचाप बाहर निकल आए। दोनों सीधे फ़हीम के घर पहुँचे, जहाँ फ़हीम पहले से उनका इंतज़ार कर रहा था। तीनों दोस्त अब खामोशी से उस बूढ़े शख़्स के घर की ओर चल दिए। कुछ ही देर में वो बूढ़े के घर पहुँच गए। फ़हीम ने चारों तरफ़ का जायज़ा लिया, हर कोना देखा, कोई हलचल नज़र नहीं आई तो वो बिना वक़्त गँवाए दीवार फाँदकर घर के अंदर दाख़िल हो गया।
उसके पीछे नासिर और इकरार ने भी वही रास्ता अपनाया और अब तीनों घर के अंदर थे। बूढ़ा शख़्स एक कमरे में चारपाई पर लेटा आराम कर रहा था। उसकी आँखें तो देख नहीं सकती थीं लेकिन उसके कान बेहद तेज़ थे। जैसे ही फ़हीम की आहट दरवाज़े के करीब से गुज़री वो चौंक गया। उसने घर में किसी के दाख़िल होने की आहट साफ़ महसूस की थी। अब वो समझ चुका था घर में कोई चोरी के इरादे से दाख़िल हुआ है.

लेकिन बूढ़ा शख़्स उसी तरह चारपाई पर लेटा रहा, जैसे कोई गहरी नींद में सोया हो ताकि देखने वाले को ज़रा सा भी शक न हो। फ़हीम और उसके दोनों दोस्त इत्मिनान से उस कमरे में दाख़िल हुए जहाँ क़ीमती सामान और अशर्फ़ियों से भरा संदूक़ रखा था। फ़हीम फौरन संदूक़ की तरफ़ बढ़ा और उसे खोलकर माल चुराने में मशग़ूल हो गया। मगर वो ये भूल गया था कि वो शख़्स भले ही आँखों से ना देख सके मगर अपने घर के हर कोने से वाक़िफ़ था। बूढ़ा बड़ी खामोशी से उठा। उसने धीरे-धीरे चलकर उस कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया बिलकुल बग़ैर आवाज़ किए। फिर वह लकड़ी के सहारे चलते हुए बाहर निकला और गली में जोर-जोर से शोर मचाना शुरू कर दिया, चोर! चोर! मेरे घर में चोर घुस आए हैं. उसकी आवाज़ सुनते ही आस-पास के पड़ोसी जाग गए और दौड़कर वहाँ पहुँच गए।
बूढ़े की बात सुनकर पड़ोसियों ने घर का दरवाज़ा खोला, कमरे का किवाड़ तोड़ा और तीनों चोरों को रंगे हाथों पकड़ लिया। फ़ौरन तीनों को आँगन में मौजूद एक बड़े दरख़्त से बाँध दिया गया ताकि सुबह होते ही उन्हें क़ाज़ी की अदालत में पेश किया जा सके. अब दोनों दोस्तों ने फ़हीम की तरफ़ देखा और बड़ी ही शर्मिंदगी से कहने लगे. हम तुम्हारी वजह से आज इस मुसीबत में गिरफ़्तार हुए हैं। काश हम न तो तुम्हारा साथ देते और न ही आज इस तरह ज़लील होते। उनमें से एक ने कहा, अब तो बस अल्लाह ही बचाए। मगर हम कल क़ाज़ी की अदालत में साफ़ इंकार कर देंगे कि हमारा इरादा चोरी करने का नहीं था। हम तो बस तुम्हारे साथ ऐसे ही चल दिए थे। दूसरे ने भी हामी भरी हाँ, हम कहेंगे हमें तो नहीं मालूम था कि तुम चोरी करने वाले हो।
फ़हीम ने उनकी बात सुनकर सर झुकाया और कहा, तुम सही कह रहे हो। हमें सबको मुक़र जाना चाहिए। कोई भी नहीं मानेगा कि असली चोर कौन है। इससे क़ाज़ी परेशानी में पड़ जाएगा और शायद हमारे हाथ कटने से बच जाएँ। तीनों अब दरख़्त से बंधे बैठे थे मगर उनके दिलों में डर और पछतावे की लपटें उठ रही थीं. अगले दिन तीनों को क़ाज़ी की अदालत में पेश किया गया। सबकी निगाहें उस बूढ़े शख़्स पर थीं जो लकड़ी के सहारे धीरे-धीरे चलकर क़ाज़ी के सामने आया।
उसने कहा: क़ाज़ी साहब मैं एक ना-बिना आदमी हूँ. मेरी आँखों की रौशनी बहुत साल पहले चली गई थी। मेरा एक बेटा है जो तिजारत के सिलसिले में शहर से बाहर गया हुआ है। मैं इन दिनों अपने घर में अकेला रहता हूँ। बीती रात ये तीनों मुझ गरीब को अकेला जानकर मेरे घर में चोरी करने घुसे। अल्लाह का करम था कि मैं उनकी आहट समझ गया और वक्त रहते उन्हें कमरे में बंद कर दिया। ये लोग चोर हैं और इरादा-ए-चोरी इन पर साबित है। मैं आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि इन चोरों को वही सज़ा दी जाए जो हमारे शरीअत के कानून में तय है, इनके हाथ काट दिए जाएँ ताकि ये सबक़ बनें और आगे कोई भी शख़्स चोरी करने से पहले हज़ार बार सोचे।
अब क़ाज़ी उन तीनों की तरफ़ मुख़ातिब हुआ और सख़्त लहजे में कहा क्या तुम लोगों के पास अपनी सफ़ाई में कुछ कहने को है? इस पर हर एक दोस्त बारी-बारी से बोल पड़ा। पहला बोला: मैं चोर नहीं हूँ! मैंने तो इन दोनों के कहने पर इनका साथ दिया। मैंने किसी चीज़ को हाथ भी नहीं लगाया। दूसरा झट से बोला: झूठ है! इसने ही कहा था कि चलो साथ दो बहुत माल मिलेगा। मैं तो बस इसके कहने पर गया था। असल चोर यही है! तीसरे ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी: दोनों झूठ बोल रहे हैं! मैं तो बस दरवाज़े पर खड़ा था। मुझे तो पता भी नहीं था कि ये क्या करने वाले हैं!
तीनों दोस्त एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे थे। कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि वही चोर है। क़ाज़ी साहब की पेशानी पर बल पड़ गए। उन्होंने एक नज़र बूढ़े शख़्स पर डाली और फिर बोले: अब मेरे लिए ये तय करना मुश्किल होता जा रहा है कि इन तीनों में से असल चोर कौन है। बूढ़े ने फिर सिफ़ारिश करते हुए कहा: हुज़ूर! मैं कहता हूँ कि ये तीनों ही चोर हैं। ये तीनों मेरे घर में चोरी की नीयत से दाख़िल हुए थे। मेरी इल्तिज़ा है कि इन तीनों के हाथ काटे जाएँ तभी इनसाफ़ होगा! लेकिन क़ाज़ी ने ठंडे लहजे में जवाब दिया: नहीं. हाथ सिर्फ़ उसी का काटा जाएगा जो असल चोर हो। लेकिन ये तीनों ही इल्ज़ाम एक-दूसरे पर डाल रहे हैं। जब तक यक़ीनी तौर पर ये साबित न हो जाए कि चोर कौन है मैं ऐसा हुक्म नहीं दे सकता।
फिर उसने ग़ुस्से से उन तीनों को देखा और कहा तुम में से जो भी चोर है, बेहतर है कि अपना जुर्म खुद कुबूल कर ले वरना बाद में पछताना पड़ेगा। क़ाज़ी साहब ने हर मुमकिन कोशिश की, सवालात किए, जिरह की, डराया भी लेकिन तीनों अपने-अपने बयान पर क़ायम रहे किसी ने भी जुर्म कुबूल नहीं किया। क़ाज़ी ने जब देखा कि तीनों में से कोई भी अपना जुर्म क़बूल नहीं कर रहा, तो उसने सोचा कि इनका कोई इम्तिहान लेना चाहिए शायद कोई सुराग मिल जाए।
क़ाज़ी ने अपने बावर्ची को बुलाकर हुक्म दिया इन तीनों को खाना पेश करो। बावर्ची ने सबसे पहले फ़हीम के सामने गोश्त का एक प्याला रखा। फ़हीम ने ज़रा सा निवाला लिया मुँह में डाला ही था कि फौरन थूक दिया और बोला ये तो किसी कुत्ते का गोश्त लग रहा है! मैं ये नहीं खा सकता! क़ाज़ी ये सुनकर हैरान रह गया। उसने फौरन बावर्ची की तरफ़ देखा और पूछा ये क्या बक रहा है? क्या वाक़ई ये कुत्ते का गोश्त है?

बावर्ची ने काँपते हुए जवाब दिया: नहीं क़ाज़ी साहब, ये गोश्त कुत्ते का नहीं है। मैं इसे एक कसाई की दुकान से लाया हूँ। आप चाहें तो तस्दीक करवा सकते हैं। क़ाज़ी ने फ़ौरन कसाई को बुलवाया और सख़्त लहजे में पूछा क्या तुम अपनी दुकान पर कुत्ते का गोश्त बेचते हो? अगर ऐसा है तो तुम्हें बहुत बड़ी सज़ा दूँगा!
कसाई डर गया और काँपते हुए बोला नहीं हुज़ूर! ये गोश्त एक बकरे का ही है। लेकिन इसमें एक अजीब बात ज़रूर है. जब ये बकरा पैदा हुआ था तो उसी वक़्त इसकी माँ मर गई थी। मैं परेशान था कि इसे पालूँ कैसे। एक दिन देखा कि ये ख़ुद ही एक कुतिया का दूध पीने लगा। मैंने उसे रोका नहीं, बल्कि उसी के साथ पलने दिया। बचपन से ही ये बकरा उसी कुतिया का दूध पीता रहा और कुत्तों के साथ ही बड़ा हुआ। शायद इसी वजह से इसके गोश्त में भी कुत्ते जैसी बू आ रही हो।
क़ाज़ी ने ये सुनकर फ़हीम की ज़हनत पर हैरत से भर गया। ये तो बड़े ग़ौर और तजुर्बे से बात की है. इस शख़्स की सूंघने की ताक़त और तफ्तीश करने का अंदाज़ मामूली नहीं है। अब क़ाज़ी को शुब्हा होने लगा था कि इन तीनों में जो सबसे ज़्यादा होशियार है शायद वही असल चोर है।
अब क़ाज़ी ने दूसरे दोस्त के सामने दूध का एक प्याला रखवाया। दोस्त ने जैसे ही प्याले की तरफ़ देखा, उसने प्याले को हाथ भी नहीं लगाया और फौरन कहने लगा मैं ये दूध नहीं पी सकता, इस दूध में ज़हर मिलाया गया है! क़ाज़ी ने फिर हैरत से बावर्ची की तरफ़ देखा और गुस्से में पूछा: ये क्या कह रहा है? क्या वाक़ई दूध में ज़हर है? क़ाज़ी ने हुक्म दिया कि दूध को किसी और बर्तन में उंडेल कर देखा जाए।
जब दूध को एक साफ़ कटोरे में उंडेला गया, तो सबके होश उड़ गए दूध में एक मरी हुई छिपकली तैर रही थी।
क़ाज़ी भी हक्का-बक्का रह गया। ये शख़्स भी बड़ा होशियार है. अभी तक दूध को चखा भी नहीं और इसे ज़हर का इल्म हो गया! अब क़ाज़ी की नज़र ग़ौर से उस दूसरे दोस्त पर पड़ी। क़ाज़ी के ज़ेहन में अब शक और भी गहरा हो गया था कि इन तीनों में से असल मुजरिम को पकड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि तीनों ही किसी ना किसी अंदाज़ में ज़हीन और चालाक़ थे।
अब तीसरे दोस्त के सामने खाने में चने पेश किए गए। उसने जैसे ही चनों की तरफ़ देखा एक अजीब सा चेहरा बनाया और फौरन कहने लगा मैं ये चने नहीं खा सकता. ये वही चने हैं जो पहले किसी घोड़े ने खाए हैं। अब उसी के बचे हुए चने मुझे खाने को दिए जा रहे हैं! ये सुनकर क़ाज़ी फिर चौंक गया। उसने एक बार फिर बावर्ची की तरफ़ देखा और कहा, क्या ये भी सच कह रहा है?
बावर्ची कुछ घबराया फिर झिझकते हुए बोला क़ाज़ी साहब. हो सकता है ये शख़्स सच कह रहा हो। कल मैंने आपके घोड़े को एक थैले से चने खिलाए थे। बाद में वही थैला मैं बावर्ची ख़ाने में रख आया। वहीं पास ही एक दूसरा थैला भी पड़ा था जिसमें साफ चने रखे थे। आज गलती से शायद मैंने उसी थैले से चने निकाल लिए जिनमें से कल घोड़े ने खाया था। अब क़ाज़ी बिल्कुल हैरानी में डूब चुका था।
ये तीसरा भी उतना ही ज़हीन निकला जितने पहले दो थे. इनका दिमाग़ मामूली चोरों जैसा बिल्कुल नहीं है।
क़ाज़ी सोचने लगा अगर ये तीनों ऐसे होशियार हैं तो ये बग़ैर किसी बड़ी चालाकी के चोरी नहीं कर सकते थे. लेकिन इनमें से असल चोर कौन है? ये तय करना बहुत मुश्किल है. क़ाज़ी ने थोड़ी देर ख़ामोशी में सबको देखा, फिर हुक्म दिया इन तीनों को क़ैदख़ाने में डाल दो। अब इनका फ़ैसला कल होगा! जब सब चले गए और क़ाज़ी अपने कमरे में अकेला रह गया तो वो देर तक सोचता रहा इनमें से असल चोर को कैसे पकड़ा जाए? कौन है जो वाक़ई गुनहगार है? रात धीरे-धीरे गहराती गई और क़ाज़ी उसी सोच में डूबा रहा. क़ाज़ी का बेटा अपने बाप को परेशानी में देख रहा था। कुछ देर वो ख़ामोश रहा फिर नर्मी से बोला बाबा आप बहुत परेशान नज़र आ रहे हैं। क्या बात है? क़ाज़ी ने गहरी साँस ली और और फिर सारा माजरा सुनाया.
क़ाज़ी का बेटा थोड़ी देर सोचता रहा फिर बोला बाबा अगर आप इजाज़त दें तो क्या मैं भी एक कोशिश कर सकता हूँ? कहो बेटा, क्या करना चाहते हो? बस एक बार मुझे इन तीनों से बात करने दीजिए शायद मैं कुछ ऐसा कर सकूं जो हकीकत को सामने ले आए। अगली सुबह क़ाज़ी की अदालत में फिर से वही तीनों शख़्स पेश किए गए। इस बार अदालत में क़ाज़ी के साथ उसका बेटा भी मौजूद था। क़ाज़ी के बेटे ने मुस्कुराते हुए तीनों की तरफ़ देखा और नर्म लहजे में कहा मैं तुम लोगों को एक क़िस्सा सुनाना चाहता हूँ ध्यान से सुनना…
एक शहर में एक लड़की अपने शौहर के साथ रहती थी। उसका शौहर मज़दूरी करता था। एक दिन लड़की को अपने मायके से ख़त मिला कि उसके वालिद की तबीयत बहुत नाज़ुक है अगर फ़ौरन इलाज ना कराया गया तो जान भी जा सकती है। शौहर के पास ज़्यादा पैसे तो न थे लेकिन उसके पास एक बकरी थी। उसने वो बकरी बेचकर पैसे अपनी बीवी को दिए और कहा तुम फौरन गांव चली जाओ और अब्बा का इलाज करा दो। लड़की पैसे लेकर रवाना हो गई।

रास्ते में एक उसे एक शख़्स मिला. लड़की को अकेला पाकर उसकी निय्यत बिगड़ गयी और उसके दिल में उसके साथ बुराई करने का ख्याल आया. उसने उसके साथ बुराई करने की कौशिश की. लड़की ने अपने हालात बताए और कहा, तुम्हारे घर में भी माँ, बहन, बेटी होंगी अल्लाह के वास्ते मुझ पर रहम करो। उस शख़्स के दिल पर असर हुआ उसने माफ़ी माँगी और उसे जाने दिया। थोड़ा और आगे गई तो एक चोर मिल गया जो लोगों को लूट लिया करता था। उसने भी लड़की को रोक लिया और पैसे छीनने की कोशिश की। लड़की ने उसे भी अपने हालात बताए और इल्तिजा की। चोर का दिल भी पसीज गया और उसने भी उसे जाने दिया। लड़की गांव पहुंची, बाप का इलाज करवाया और उसकी जान बच गई। क़ाज़ी का बेटा अब चुप हो गया। फिर वो बोला अब तुम तीनों में से कोई मुझे ये बता सकता है उस लड़की पर असली एहसान किसने किया?
क़ाज़ी का बेटा सबसे पहले नासिर की तरफ़ मुतवज्जा हुआ और पूछा तुम बताओ, उस लड़की पर सबसे बड़ा एहसान किसका था? नासिर बोला उसका शौहर ही असल मुहसिन था। अगर वो अपनी बकरी ना बेचता तो लड़की के पास सफ़र के लिए पैसे ही न होते और वो अपने वालिद का इलाज भी न करवा पाती। क़ाज़ी का बेटा मुस्कुराया, फिर इकरार से पूछा और तुम क्या सोचते हो? इकरार ने इत्मिनान से जवाब दिया मैं समझता हूँ असल एहसान उस बद-किरदार शख़्स का था। जिसने बुराई का इरादा तो किया मगर लड़की की हालत सुनकर अफ़सोस किया और उसे इज़्ज़त से जाने दिया। क्योंकि एक लड़की की इज़्ज़त उसकी जान से भी बढ़कर होती है।
अब क़ाज़ी का बेटा आख़िरी दोस्त फ़हीम की तरफ़ मुड़ा। अब तुम बताओ असल एहसान किसका था? फ़हीम ने बेझिझक कहा उस लड़की पर सबसे बड़ा एहसान उस चोर का था। अगर वो उसके पैसे छीन लेता, तो वो लड़की अपने बाप का इलाज नहीं करवा पाती और शायद उसका बाप मर जाता। इसीलिए सबसे बड़ा एहसान उसी चोर का है। ये सुनते ही क़ाज़ी का बेटा खड़ा हो गया और ऊँची आवाज़ में बोला क़ाज़ी साहब! यही है असली चोर! क़ाज़ी हैरान रह गया. क़ाज़ी ने हैरत भरी निगाहों से अपने बेटे की तरफ़ देखा और पूछा, तुम्हें कैसे यक़ीन हुआ कि फ़हीम ही असली चोर है?
क़ाज़ी का बेटा मुस्कुराया और बोला बाबा, इंसान अकसर उन्हीं आदतों को पसंद करता है जो उसके अपने अंदर होती हैं। फ़हीम ने सीधे उस चोर की तारीफ़ की जो लोगों का माल लूटता था। ये साबित करता है कि वो ख़ुद भी ऐसा ही है यही उसकी सोच है और यही उसकी फितरत। क़ाज़ी ने सर हिलाया और फ़ौरन अपने सिपाहियों को हुक्म दिया इस शख़्स की अच्छी ख़ातिरदारी करो और ज़रा सच का पता लगाओ! जब सिपाहियों ने फ़हीम पर सख़्ती की उसे सवालात से घेरा, वक़्तन-फ़वक़्तन तन्कीद की और दबाव बढ़ाया तो आख़िरकार फ़हीम का सब्र जवाब दे गया।
उसने सब कुछ सच-सच क़बूल कर लिया हाँ, मैंने ही उस बूढ़े के घर चोरी करने की योजना बनाई थी। नासिर और इकरार मेरे साथ थे लेकिन उन्होंने सिर्फ़ मेरा साथ दिया असल चोर मैं ही था। जब ये बात क़ाज़ी के सामने पहुंची तो क़ाज़ी ने बुलंद आवाज़ में फ़ैसला सुनाया फ़हीम का एक हाथ काट दिया जाए ताकि लोगों को इबरत हो कि जो हाथ हराम में उठे वो हमेशा के लिए काट दिया जाए। और फिर नासिर और इकरार की तरफ़ देखते हुए कहा तुम दोनों ने चोर का साथ दिया इसलिए तुम्हें तीन-तीन साल की क़ैद की सज़ा दी जाती है ताकि तुम दोबारा किसी गुनाहगार के हमराज़ न बनो।”

क़ाज़ी की अदालत से जब फ़हीम का हाथ कटा और नासिर और इकरार को क़ैद में भेजा गया, तो पूरे शहर में ये खबर आग की तरह फैल गई। लोग इस फ़ैसले को सुनते ही काँप उठे। हर कोई कह रहा था: क़ानून ने आज सच में इंसाफ़ किया है. ना सिर्फ़ चोर को सज़ा मिली बल्कि उन लोगों को भी जो चुपचाप उसकी मदद कर रहे थे! इस वाक़िये के बाद शहर में एक अजीब सी ख़ामोशी थी, लेकिन इस ख़ामोशी में एक बहुत बड़ी आवाज़ छुपी थी सबक़ की आवाज़। लोग अब अपने बच्चों को ये किस्सा सुनाकर कहते देखो बेटा, बुराई सिर्फ़ वो नहीं जो चोर करता है, बुराई वो भी है जो उसका साथ देता है। जो गुनाह को देखकर चुप रहे वो भी गुनाहगार है।
इस कहानी ने तीन बड़ी बातें सिखाईं:
- हर बुराई का अंजाम ज़रूर होता है, चाहे वो कितनी भी चालाकी से की गई हो। फ़हीम ने चालाकी दिखाई, दूसरों पर इल्ज़ाम डाला, लेकिन आख़िर में हक़ सामने आकर ही रहा।
- बुराई का साथ देना, ख़ुद बुराई करने जितना बड़ा गुनाह है। नासिर और इकरार ने ख़ुद चोरी नहीं की लेकिन फ़हीम का साथ दिया। और वो साथ उन्हें जेल तक ले गया। जो गुनाहगार का साथी हो वो भी गुनाहगार ही कहलाता है।
- हक़ और सच की राह देर से दिखती है, मगर एक बार जब सामने आती है तो हर झूठ बेज़ार हो जाता है। क़ाज़ी के बेटे की समझदारी और सब्र से सच्चाई सामने आई ये भी सीख है कि हिकमत और दिमाग से बड़े से बड़ा झूठ भी बेनक़ाब हो सकता है।
और आख़िर में… अगर तुम्हारे सामने ज़ुल्म हो रहा हो और तुम चुप रहो तो याद रखो, तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारे खिलाफ़ गवाही बन जाएगी। कभी भी बुराई से डरकर उसका साथ मत दो क्योंकि बुराई का साथ देना, इंसान को बर्बादी के दरवाज़े तक ले जाता है।