
ये वो दौर था जब शाम में सेल्जुक सल्तनत की हुकुमत हुआ करती थी. सेल्जुक सल्तनत में खलीफ़ा सुल्तान अल्प अर्स्लान की खिलाफत कायम थी. कहानी के आग़ाज़ से पहले कुछ बातें इनके बारे में जान लेना ज़रूरी है. इनका असल नाम मुहम्मद बिन दावूद छगरी था. लेकिन उनका लक़ब अल्प अर्सलान पड़ा जिसे तुर्की ज़बान में “बहादुर शेर” कहा जाता है. सुल्तान अपनी इंसाफ़ पसंदी और रिआया के लिए श्फ़क्क्त के लिए मशहूर थे. उनका एक मशहूर कौल किताबों में मिलता है “मैं दुनिया में बस एक सिपाही हूँ जो अल्लाह की रज़ा के लिए जंग करता है. अगर जीत गया तो अल्लाह का शुक्र अदा करूँगा, अगर हार गया तो शाहदत मेरा इनाम होगी.”
इनकी हुकुमत में हर तरफ अमन-ओ-अमान था. किसी भी बाशिंदे को किसी दुसरे से कोई शिकायत न थी. अदल-ओ-इंसाफ़ का बोल बाला था. अगर किसी को कोई परेशानी होती या वो किसी के ज़ुल्म का शिकार होता तो खलीफ़ा का दरवाज़ा इंसाफ़ के लिए हमेशा खुला रहता. आज रमज़ान के 30 रोज़े पूरे हो चुके थे. खलीफा अपने महल की छत पर अपने दरबारीयों और अपने करीबियों के हमारा ईद का चाँद देखने की कोशिश कर रहे थे. आसमान साफ़ था जिससे ईद का चाँद साफ़ और शफ्फाफ नज़र आ रहा था.
हर कोई चाँद देख कर ख़ुशी मना रहा था. वहां पर मौजूद सभी ने खलीफ़ा को ईद का चाँद नज़र आने की मुबारकबाद दी. ख़लीफ़ा के हुक्म पर पुरे शहर में ईद का चाँद नज़र आने की खबर फैला दी गयी. पूरा शहर ईद की तैयारियों में लग गया. बाज़ारों में दुकाने सजने लगी. खरीद-ओ-फ़रोख्त का समां बंध गया. क्या अमीर और क्या गरीब सबके चेहरे जगमगा रहे थे. खलीफ़ा की तरफ से गरीबों, मिसकीनों और यतीमों में अनाज और कपड़े वगैरा तकसीम किया जाने लगा.
कोई भी मुस्ताहिक ईद की ख़ुशी से महरूम न रह जाए. इस मोके पर किसी के गुमान में भी न था के ऐसे ख़ुशी के मौके पर शाम में एक ऐसा भी शख्स था जो अपनी बदनसीबी और बदहाली का रोना रो रहा था. इसी शहर में एक बहोत ही मशहूर चौराहा था जिसके करीब एक पुराना खंडहर था जो देखने में किसी बादशाह का महल नज़र आता था लेकिन आज बिलकुल सुनसान और खंडहर था. इस खंडहर की खस्ताहाल दीवारें शानदार माज़ी की दास्तान सुना रही थी. खंडहर के नज़दीक एक फव्वारा था जो सुखा और बंद पड़ा था जो किसी ज़माने में सुहाने पानी की ठंडी फुहारे फ़िज़ा में बिखेरता था.

इसी फव्वारे के गिर्द एक चबूतरा बना हुआ था और उसके पास ही एक गोल लाल पत्थर भी गड़ा हुआ था. उसी लाल पत्थर पर खड़ा एक शख्स अपनी बद–नसीबी का रोना रो रहा था. अजीब–ओ–गरीब हुलिया, शक्ल सुरत से कई दिन का भूखा, चेहरे पर गाल की हड्डियां तक साफ़ नज़र आती, बदन पर लिबास के नाम पर मेले कुचेले छिथ्ड़े लटक रहे थे. उसका नाम अयाज़ था. वो रोज़ाना उसी सूखे बंद फव्वारे के पास था और गोल लाल पत्थर पर खड़ा हो जाता और फिर शहर वालों को अपनी बदनसीबी की दास्तान सुनाता. वो कहता सुन लो ए शाम के खुश–नसीब बाशिंदों मैं इस रुए ज़मीन पर सबसे बदनसीब इंसान हूं, मेरी जिंदगी सूखे बंद फव्वारे जैसी है जो सिर्फ नज़र आता है मगर किसी काम का नहीं. मेरे लिए कोई काम नहीं है, ना मेरे पास एक दिनार है और ना खाने के लिए कुछ मयस्सर, मेरे लिए कोई काम नहीं है.
उसके मुंह से आह निकली, फिर उसने ईद के चाँद की तरफ देखते हुए कहा, इस खुशी के मौके पर मेरे पास न दाना पानी का इंतज़ाम और न ही अच्छे कपड़ों का इंतज़ाम, शायद मेरी जिंदगी इस वीरान खंडहर के तले ही खत्म हो जायेगी. ये खंडहर जहां मैं रहता हूँ जिसकी दीवारें खस्ता और शिकस्ता, हर वक्त जिसके गिरने का खौफ़ लगा रहता है. ए मेरे खुदा, ए सारे जहां के मालिक, देख तेरा ये बंदा कितना मजबूर और कितना बद–नसीब है ये कह कर उसने अपने सर पर हाथ मारा. चौराहे से गुज़रने वाले राहगिरों के लिए ये रोज़ का मामुल बन गया. सभी उसकी तरफ़ तवज्जोह दिए बगैर उसके करीब से गुज़र जाते.
एक रोज़ किसी दरवेश का गुज़र उधर से हुआ जो गा रहा था “क्या भरोसा इस जिंदगी का, आदमी बुलबुला है पानी का.” अयाज़ के कानों में उसकी आवाज़ पड़ी, वो फौरन दरवेश से मुख़ातिब हुआ और कहने लगा ए नेक इंसान मगर यहां तो अपनी जिंदगी सूखे फव्वारे जैसी है जिसमें पानी ही नहीं है और पानी ही नहीं तो बुलबुला कहां से आएगा. दुर्वेश ने उसकी बातें सुनकर जवाब दिया बंदे मैं देख रहा हूँ तेरे दिन बहुत जल्द पलट जाएंगे. इतना कहकर वो दुर्वेश आगे बढ़ गया.
एक दिन वो मामूल के मुताबिक अपना दर्द ब्यान कर रहा था की एक आवाज़ ने उसे चौंका दिया. तुम एक कमज़ोर और काहिल इंसान हो. ये कोई और नही बल्कि अयाज़ की बीवी थी. अयाज़ की बीवी जिसका नाम सकीना था क़हर आलूद नज़रों से उसे देख रही थी और उसे घूरे जा रही थी. फिर बोली दुनिया में काम करने वालों के लिए काम की कोई कमी नहीं है. मुझे देख मैं अकेले इन बच्चों का पेट पाल रही हूँ. सकीना के पीछे उसके चार बच्चे फटे पुराने, मेले कुचेले कपड़ों में खड़े थे. सकीना ने कहा कम अज़ कम अपनी औलाद का तो ख्याल कर. ये सुनकर अयाज़ ने कहा तू फीर आ गई, मेरी परेशानियों में इज़ाफ़ा करने. जाने मेरी हालत कब बदलेगी.
अयाज़ की बात सुनकर बीवी बोली कामचोर और सुस्त इंसान, इस तरह सिर्फ बोलने से हालात नहीं बदलते, कोई ढंग का काम करो, खलीफा के दरबार में जाओ तुम्हें वहाँ किसी काम पर लगा दिया जाएगा या फिर दरबार में पहुंचकर कोई रास्ता निकालो, इस तरह सरेआम चिल्लाने से और यहां खड़े होकर अपनी बद–नसीबी की कहानी सुनाने से कुछ हासिल नहीं होगा. इस हालत के तुम खुद जिम्मेदार हो, हाथ पांव हिलाओ, खुदा ने दो हाथ दिए हैं काम करने के लिए, दिमाग दिया है सोचने के लिए, कुछ भी काम करके पैसा हासिल करो. तीन दिनों से खाने का एक निवाला भी मुंह में नहीं पड़ा, बच्चे भूख से तड़प रहे हैं बे–हिस इंसान.
अयाज़ की बीवी ने अपने दिल की भड़ास निकाली. अयाज़ ने गुस्से से कहा ए ना–माकूल औरत तू समझती है मैं काहिल और कामचोर हूं. अरे मेरी ऐसी हालत देखकर कौन खुदा का बंदा मुझे काम देगा. देख मेरी तरफ क्या मैं बोझ उठाने के लायक हूं, मैं कमज़ोर और बीमार हो गया हूं. जानती है क्यों जब से मैंने वो हैरतअंगेज और अनजाने ख्वाब को देखा है मेरा चैन और सुकून सब गारत हो गया है. मैं बेहाल हो गया हूं, नींद मेरी आंखों से कोसों दूर चली गई है, रातों को जब भी बिस्तर पर सोता हूं मुझे वही अंजाना ख्वाब नज़र आता है, ये ख्वाब शायद मेरी जान ले लेगा. मैं खुद बहुत थक चुका हूँ, अब तो मैं दिन में भी दूसरा कुछ सोच नहीं सकता, बस मुझे अब किसी भी सूरत में “क़ीफाह” चले जाना चाहिए शायद मेरी वहां तकदीर बदल जाए.

बीवी ने अयाज़ की बातें सुनकर कहा बेवक़ुफ़ आदमी तुम क़ीफाह जाओगे सिर्फ उस ख़वाब के लिए जिसका कोई सर पैर नहीं है. ख्वाब जो झूठे होते हैं जिनका सच से कोई वास्ता नहीं होता. मैं खूब समझती हूं तुम अपने बीवी बच्चों से पीछा छुड़ाकर क़ीफाह भाग जाना चाहते हो. सकीना आग बगुला होकर बोली कान खोल कर सन लो मैं तुम्हें खबरदार करती हूं हमें छोड़कर भागने की कोशिश मत करना वरना ख़लीफ़ा अर्सलान के सामने तुम्हारी शिकायत कर दूंगी और तुम जेल की चार दिवारी में बैठकर पत्थर तोड़ोगे और हाँ एक बात और कहे जाती हूं अपने उसी ख़वाब का किस्सा अब मुझे दुबारा न सुनाना समझे! इतना कहकर सकीना पैर पटकती हुई खंडहर की तरफ अपने ठिकाने चली गई और उसके पीछे उसके चारों बच्चे भी चले गए. सकीना मिटटी के बर्तन बनाती और उन्हें बाज़ार ले जाकर फ़रोख्त करती और अपने बच्चे ओर खुद का गुज़ारा करती.
हाय रे मेरी किस्मत में क्या करूं अयाज़ आसमान की तरफ़ मुंह उठाकर फ़रयाद करने लगा. अब तो मुझे दिन में भी क़ीफाह जाने का ख्वाब नज़र आने लगा है. हर पल, हर लम्हा दिन हो या रात उसकी आंखों में बस एक ही ख्वाब सजा रहता है की वो चला जा रहा है, दौड़ा चला जा रहा है, बस चला जा रहा है खुले आसमान के नीचे. उसके कानों में बस एक ही सदा आ रही होती क़ीफाह जाओ क़ीफाह, वही जाकर तुम्हारा नसीब जागेगा और तुम्हारे दिन भी बदल जाएंगे, दौलत तुम्हारे कदम चूमेगी, बीवी फटे पुराने कपड़ों के बजाए अच्छे अच्छे और कीमती कपड़े ज़ेबे तन करेगी, बच्चे शेहज़ादों की तरह रेशमी कपड़े पहनेगे, खाने के लिए उम्दा से उम्दा लज़ीज़ पकवान होंगे, रहने के लिए खंडहर की जगह बड़ा सा महल होगा.
इतना देख कर थोड़ी देर बाद अयाज़ हकीकत की दुनिया में वापस आ जाता और सोचता उसकी बीवी ठीक ही तो कहती है ख्वाब की हकीकत ही क्या होती है, सिर्फ ख्वाब देखने के बाद क़ीफाह जाने का मुश्किल सफर करना सरासर नादानी के सिवा कुछ नहीं. भला ख्वाब से भी किसी की जिंदगी के दिन बदलते हैं. वो खुद पर दीवानों की तरह हंसने लगा. नहीं मैं क़ीफाह नहीं जाऊंगा और फिर वो सूखे फव्वारे को टेक लगाकर बैठ गया. जाने कब उसकी आंख लग गई. उसने देखा वो उड़ा चला जा रहा था,
दूर कहीं दूर नीले आसमानों और सहराओं को पार करते हुए उसके सामने एक शहर नमूदार हो गया, जहां ऊंचे ऊंचे बुलंद मीनार थे और फिर उसके कानों में आवाज़ आने लगी अयाज़ क़ीफाह जाओ, क़ीफाह जाओ. इस आवाज़ की गूंज से उसकी आंख खुल गई. अब तो उसकी हालत पागलों जैसी हो गई, हर वक्त उसपर क़ीफाह जाने का भूत सवार रहने लगा. अगर दिन में भी आंख बंद करता तो उसे क़ीफाह के महलों के मीनार दिखाई देते. उसका चैन और सुकून छीन गया.
दिन गुजरते रहे अयाज़ जिस खंडहर की दीवार से लगकर अपना ठिकाना बनाकर रहता था उसके पास ही एक मीठे पानी का कुँवा था. तिजारत की गर्ज़ से आने वाले ताजिरों, सौदागरों और मुसाफिरों के काफिले अक्सर वहां आकर पड़ाव डालते और खैमा लगाकर वहाँ आराम करते. कई–कई दिन सौदागर वहां कयाम करते, कुएं के मीठे पानी से लुत्फ़–अंदोज़ होते और फिर शहर में जाकर तिजारत का सामान फ़रोख्त करते और वहाँ से नई–नई चीज़ें खरीद कर अपने शहर वापस ले जाते. अयाज़ उन काफिले वालों के ऊँटों के चारे पानी का इंतज़ाम करता और उन आने वाले ताजिरों और मुसाफिरों की शहरे शाम तक रहनुमाई भी कर देता और जब वो क़ाफिला रवाना होने लगता तो काफिले का सरदार अयाज़ को उसकी इस खिदमत के बदले नए कपड़े, खाने–पीने की चीज़ें और कुछ दिनार दे देता. इस तरह अयाज़ के कुछ दिन आराम से कट जाते.

मगर क़ाफ़िले रोज़ रोज़ तो नहीं आते थे. कभी कभी तो हफ्तों इंतजार करना पड़ता जिससे उसकी माली हालत बिगड़ जाती और फ़ाकों की नौबत आ जाती. इत्तेफाक से एक रोज़ अयाज़ खंडहर की दीवार से टेक लगाए बैठा था की ताजिरों का एक क़ाफिला आ कर ठहरा. अयाज़ क़ाफिले को देख उनकी तरफ़ दौड़ा दौड़ा गया. क़ाफिले के सरदार के ऊंट की नकेल पक़ड़ ली और ऊंट की गर्दन पर हाथ फेरने लगा. फिर ऊंट पर लदे समान के थेलों को उतरवाने लगा. इन थैलों में खुश्क मेवे, काजू, बादाम और अखरोट भरे हुए थे. सामान उतरवाने के बाद कुएं से मीठा पानी लाकर उन्हें पिलाने लगा. ये देख क़ाफिले का सरदार बहोत खुश हुआ और उससे वादा कर लिया की जाते वक्त अच्छा सा इनाम देगा.
काफिले का क़याम वहां कई दिनों तक रहा. सौदागर अपना सामान शहर के बाज़ारो में लेकर निकल जाते और वहाँ ख़रीद–ओ–फ़रोख्त करते. साथी खलीफ़ा की खिदमत में कीमती तोहफ़े पेश करते. कुछ वक़्त बाद जब क़ाफ़िला रवाना होने लगा तो सरदार ने अपने वादे के मुताबिक अयाज़ को बहुत सारा इनाम दिया और कहा आइंदा जब कभी हमारा गुज़र होगा हम यहां कयाम करेंगे और तुम्हारे यहां का मीठा और लज़ीज़ पानी नोश फरमाएंगे. अच्छा अल्लाह हाफ़िज़ अब हमारा क़ाफ़िला क़ीफाह की तरफ़ रवाना होगा. अयाज़ ये सुनकर चौंक गया और उसने कहा क्या कहा क़ीफाह.
अयाज़ को अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था. सरदार ने कहा हाँ अब हमारा काफिला क़ीफाह की सिम्त रवाना होगा. अयाज़ को फ़ौरन अपना ख्वाब याद आ गया. सरदार मैं भी क़ीफाह जाने की ख्वाहिश अपने दिल में रखता हूं मुझे भी अपने साथ क़ीफाह ले चलो मैं आप लोगों की खिदमत करूंगा, मेरा बहुत बड़ा काम हो जाएगा, आपका एहसान मुझपर क़र्ज़ रहेगा. क़ाफिले का सरदार एक लम्हा कुछ सोचता रहा फिर कहने लगा ठीक है लेकिन मेरी एक शर्त है रास्ते में तुम क़ाफ़िले के ऊँटों की देखभाल करोगे मंज़ूर हो तो चलो.
अयाज़ यही तो चाहता था. मरता क्या न करता, अंधा क्या चाहे बस दो आंखें. अयाज़ फौरन राज़ी हो गया. वो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में था. कुदरत ने खुद उसे मौका फराहम कर दिया. अयाज़ अपने ख़्वाब की तकमील के लिए क़ाफ़िले के साथ चुपके से रवाना हो गया, किसी को कानो कान खबर ना हुई. अयाज़ ने शेहरे शाम को खैरबाद कह दिया और क़ाफ़िले के साथ हो लिया. जाते जाते एक बार उसने उजड़े हुए खंडहर को देखा.
एक हफ्ते तक उनका क़ाफिला रेगिस्तान की रेत पर चलता रहा. रास्ते में अयाज़ ऊँटों के दाना पानी का खूब ख्याल रखता, रात होने पर क़ाफिला किसी मुनासिब मुकाम पर ठहर जाता. आज पहली बार ठंडी रेत पर अयाज़ बेफिक्र होकर सो गया. उसे कोई ख्वाब दिखाई नहीं दिया वो चैन की नींद सोया. कई दिनों के सफ़र के बाद आखिरकार उनका काफिला क़ीफाह की सरहद में दाखिल हो गया. दाखली दरवाज़े पर काफिले के सरदार ने वहां का मुहाफ़िज़ों को अपना मकसद बयान किया तो उन्हें शहर में दाखिल होने की इजाजत मिल गई.
सुबह हो चुकी थी क़ीफाह के बाज़ारो में चहल पहल होने लगी. काफिले में शामिल ताजिर अपने खादिमों की मदद से अपना सामान लेकर बाज़ार की तरफ़ निकल पड़े और उनमें जो मुसाफिर थे वो अपने घरों की तरफ रवाना हो गए. काफिले का सरदार भी अयाज़ को खुदा हाफ़िज़ कह कर अपनी मंज़िल की और चल दिया. जब काफिले के तमाम लोग एक-एक करके चले गए तो अयाज़ तन्हा रह गया. खुले आसमान में सूरज सर पर आ गया. अयाज़ की समझ में नही आ रहा था की इस अंजान शहर में कहां जाए, ऊपर से उसे भूख भी महसूस होने लगी. जेब थी की उसमें एक फूटी कौड़ी नही थी सब्र करके रह गया.
चलते चलते उसे पानी की एक जगह नज़र आई जहां उसने जी भर के पानी पीया. उसे जिस्म में कुछ तवानाई का एहसास हुआ और फिर बिना किसी मकसद के गली कुचों में अजनबी निगाहों से एक-एक चीज़ को देखने लगा. आखिरकार सफ़र की थकान उस पर ग़ालिब आ गई और वो थक कर एक हवेली नुमा मकान की दीवार पर पीठ लगाकर बैठ गया. उसे कुछ राहत हुई फिर बैठे-बैठे लेट गया, जल्द ही नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया.
न जाने वो कब तक सोता रहा, सच है नींद एक ऐसी चीज़ है जो कांटों के बिस्तर पर भी आ जाती है. नींद में उसे ऐसे लगा जैसे कहीं तूफान आ गया है. फीर तेज़ तेज़ आवाज़ें आने लगी. चलो बदमाश उठो यहाँ से. अयाज़ ने सोते में ही गुस्से से भरी एक आवाज़ सुनी और साथ ही कुछ सख्त चीज़ उसके कमर में चुभती हुई महसूस हुई. वो चौंककर उठ बैठा और हैरत से देखने लगा की कौन खड़ा है. लिबास से वो शहर का कोतवाल लगा जो शक़ की निगाहों से उसे घूरे जा रहा था. उसके हाथ में एक मोटा सा डंडा था.
अयाज़ घबराकर खड़ा हो गया. उसने कहा अब मेरी सूरत क्या देख रहे हो जल्दी से दफ़ा हो जाओ यहां से, जानते नहीं हो ये क़ाज़ी–ए– शहर की हवेली है. युम्हें सोने के लिए क्या यही जगह मिली है ना–माकूल, अभी लेने के देने पड़ जाएंगे.कोतवाल ने कहा शहर में नए लगते हो. जी हुज़ूर अयाज़ सहम कर बोला. कोतवाल ने एक नज़र उसके हुलिए पर डाली डाली और तंज़िया हंसी हंसने लगा. मैं सब समझता हूं आखिर मैं क़ीफाह के सबसे बड़े क़ाज़ी का खास आदमी हूं. मुझे मालूम है तुम शाम से यहां आये हो बोलो ठीक कहा ना मैंने? जी हुज़ूर अयाज़ से दबी आवाज़ में जवाब दिया.
मैं सब समझता हूं तुम भीख मांगने के मक़सद से यहां आए हो. मैं यहां का कोतवाल हूं, मैं सब जानता हूं पूरा क़ीफाह तुम जैसे फकीरों से भरा पड़ा है, कमबख्त चले आते हैं. अयाज़ ने जावा दिया जी मैं यहां भीख मांगने नहीं आया, मैं तो बस अपना ख्वाब… चुप रहो बहाने बाज़ी मत करो कोतवाल गुस्से से चिल्लाया और हाथ में लिया मोटा डंडा ज़मीन पर पटका. एक दिन तुम सबको को जेल में बंद कर दूंगा इतना कहकर वो अयाज़ को धक्का देता हुआ सड़क पर ले आया. अयाज़ बेबसी से मिन्नत समाजत करने लगा. मगर कोतवाल ने एक ना सुनी और उसे ले जाकर जेल में बंद कर दिया. जेल की कोठी में जाकर अयाज़ एक कोने में खामोशी से बैठ गया फिर चारों तरफ नज़रें घुमाई.
वहां पहले ही उस जैसे और भी कई लोग किसी जुर्म में क़ैद थे. अयाज़ सोच में पड़ गया या खुदा कहां फ़स गया इस अजनबी शहर में. इस ख्वाब के चक्कर ने तो मुझे मुसीबत में डाल दिया. इलाही यहां पर तो मेरी न किसी से जान ना पहचान, कौन मेरी मदद को आएगा. इस क़ैदखाने में तो जिंदगी यूँही खत्म हो जाएगी. मेरे बच्चे यतीम हो जाएंगे, इससे तो अच्छा मैं शाम में था जहां आज़ादी से रहता था.
उसने अफ़सोस करते हुए कहा हाय मेरी किस्मत अब ज़िन्दगी में ये दिन भी देखना बाक़ी रह गया था की जेल की रोटी खाऊं और फिर वो अपने आप को कोसने लगा. दूसरे कैदी उसे हैरत से देख रहे थे. इस तरह कैद खाने में कई रोज़ गुज़र गए. इस दौरान उसे किसी लम्हे भी चैन न मिला और वो ख्वाब जो वो हमेशा देखा करता था एक दफा भी दिखाई न दिया. अलबत्ता नींद में वो बराबर करवट बदलता रहता. फिर एक दिन वही कोतवाल उस कैदखाने में आया. अयाज़ का गिरेबान पकड़ा और कड़क आवाज़ में कहा, चलो आज तुम्हें क़ाज़ी की अदालत में हाजिर करना है और उसे साथ लेकर जाकर काज़ी के सामने पेश कर दिया.

क़ाज़ी की अपनी मसनद पर बैठा हुआ था.क़ाज़ी ने एक निगाह अयाज़ पर डाली और कहा क्या नाम है तुम्हारा अजनबी? अयाज़ ने अपना बताया. क़ाज़ी ने फिर पूछा तुम कहाँ से आए हो? अयाज़ ने अदब से जवाबा दिया मुल्के शाम से आली मर्तबा. क़ाज़ी ने कहा भला इतनी दूर से इतनी तकलीफ़ें उठाकर सफर करके यहाँ आने का मकसद ब्यान करो. अयाज़ ने कहा सिर्फ एक ख्वाब की वजह से जो दिन रात मुझे परेशान किए रहता था. कैसा ख़वाब? क़ाज़ी का तजस्सुस बढ़ गया. ज़रा तफसील से बताओ हमें.
अयाज़ ने अपना अजीब–ओ–गरीब ख्वाब बयान कर दिया जो हर रोज़ उसे परेशान किए रहता था. उसे सिर्फ क़ीफाह दिखाई देता और एक आवाज़ सुनाई देती जो कहती क़ीफाह जाओ वहीं तुम्हारी किस्मत चमकेगी, मगर अफ़सोस मेरी किस्मत ने मुझे यहां लाकर जेल में पहुंचा दिया. क़ाज़ी के दरबार में मौजूद सभी लोग अयाज़ की बातें सुनकर हंसने लगे. क़ाज़ी ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और वहां खामोशी छा गई. क़ाज़ी ने फिर उससे पूछा क्या तुम्हारी बीवी बच्चों को पता है तुम क़ीफाह आ गए हो? नही क़ाज़ी साहब मैं एक क़ाफ़िले के हमराह यहाँ आ गया हूँ. इतना कहकर उसने अपना सर झुका लिया. क़ाज़ी ने कहा तुम एक नादान और बुज़दिल इंसान हो, सिर्फ एक ख्वाब की बदौलत क़ीफाह भाग आये हो. भला सिर्फ ख्वाब देखने से तकदीर बदलती है, मुझे तुम पर रहम आता है अजनबी शख्स.
फिर कुछ सोचकर दोबारा कहा. अपनी बीवी बच्चों को बे-यारो मददगार छोड़ कर आ गए हो, ठीक नहीं किया तुमने. देखो मुझे तुम्हारी बातें सुनकर तुम पर रहम आता है. मैं तुम्हें आज़ाद करता हूं और कुछ अशर्फियां तुम्हें देता हूँ ताकि तुम मुल्के शाम वापस जा सको और दोबारा क़ीफाह की सेहरा पर दिखाई नहीं देना वरना कैद खाने में सख्त सजा के मुस्ताहिक करार पाओगे. क़ाज़ी ने अपना फैसला सुना दिया और सिपाहियों को उसे रिहा करने का इशारा कर दिया. फैसला सुनकर अयाज़ की आंखें भर आई और क़ाज़ी को दुआएं देने लगा. फिर जैसे उसे कुछ याद आ गया और पूछा जनाबे आली मैं शाम किस तरह वापस जाऊंगा? क़ाज़ी ने हैरत से उसकी तरफ़ देखा और कहा ये तुम्हारा मसला है की तुम कैसे शाम वापस जाते हो.
मैं सिर्फ इतना जानता हूँ की तुम आज के बाद क़ीफाह की सड़कों पर दिखाई नही दोगे बस, वरना क़ैदखाने में बाकी उम्र कटेगी समझ गए. इसलिए मेरी नसीहत पर अम्ल करो शाम वापस जाकर कोई अच्छी सी मेहनत मज़दूरी करो और ख्वाब देखना बंद कर दें एहमक़ इंसान. इतना कहकर क़ाज़ी एक लम्हे के लिए रुका. उसे कुछ याद आ गया फिर कहने लगा सुनो अजनबी शख्स. तेरे ख्वाब पर से मुझे अपनी खुद की एक बात याद आ गई वो मैं तुझे सुनाता हूं जिससे तुझे कुछ सबक हासिल हो और आइंदा ख्वाब देखने से तौबा कर लो. अयाज़ हैरत से क़ाज़ी का मुंह तकने लगा.
अब क़ाज़ी ने कहना शुरू किया. एक दिन में एक थका देने वाले मुकद्दमे का फैसला सुना कर घर आया. थकान से चूर था. बगैर कुछ खाए पिए बिस्तर पर चला गया. नींद कब आ कर मुझ पर तारी हो गयी मुझे पता ही नही चला. मैंने बड़ा ही अजीब ख्वाब देखा. मैंने देखा मैं शाम पहुंच गया हूं. वहां की सड़कों पर पैदल चला जा रहा हूं, मेरे सामने अचानक एक पुराना टूटा फूटा खंडहर आ गया. क़ाज़ी की बातों के दरमियान अयाज़ बोल पड़ा. आली पनाह मैं उसी खंडहर में रहता हूँ. क़ाज़ी ने अयाज़ को डांटते हुए कहा ख़ामोश, खामोश ए बेवकूफ इंसान! बीच में टोको मत. क़ाज़ी को गुस्सा आ गया. जब तक मैं अपनी बात खत्म न कर लूं बोलना नहीं.
फिर क़ाज़ी ने कहा हाँ तो मैंने वहां खंडहर देखा और उसके नज़दीक एक खस्ता हाल हौज़ बना हुआ हैऔर उसमें एक बंद फ़व्वारा है. क़ाज़ी ने अपनी बात जारी रखी, दूसरी और अयाज़ को अपनी सांसे रुकती महसूस हुई. अयाज़ फिर बोल पड़ा आगे क्या हुआ क़ाज़ी साहब. क़ाज़ी ने कहा फिर मेरे कानों में जैसे किसी ने कहा की फव्वारे के बाजू में जो लाल गोल पत्थर है उस जगह खुदाई कर. खुदाई के दौरान वहाँ एक पत्थर मिलेगा. उसके नीचे एक लकड़ी का संदूक है जिसके अंदर चमड़े की एक थैली है. वो थैली सोने की अशरफियों से भरी पड़ी है. वहां एक पुराना ख़ज़ाना दफ़न है.
अयाज़ ने कहा तो क्या आपने वो ख़ज़ाना हासिल कर लिया? क़ाज़ी ने कहा मैं तुम्हारी तरह पागल नही हूँ जो एक ख्वाब देखकर उसके लिए मुल्के शाम भागा चला जाऊं और कंधे पर कुदाल रखकर मुल्के शाम की गली कुचों में उस उजड़े फ़व्वारे को तलाश करता फिरूं. क़ाज़ी ने उसे डांट लगाई और कहा ए नादान इंसान ख्वाब ख्वाब होते हैं जिनका हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं होता. इतना कहकर क़ाज़ी खामोश हो गया.
आपने ठीक ही कहा हुज़ूर ख्वाब ख़वाब ही होते है, ख़वाब का हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं होता. आपका महल तो क़ीफाह में है, भला आप क्यों मुल्के शमा जाने लगे. अयाज़ ने क़ाज़ी की खुशामद की, वो दोबारा किसी नई मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता था. क़ाज़ी खुश हो गया और कहा मुझे खुशी है की तुम्हारी समझ में मेरी बात आ गई इसलिए अब जितनी जल्दी मुमकिन हो अपने वतन शाम लौट जाओ जहां तुम्हारे बीवी बच्चे तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे. जी हुज़ूर मैं आज ही मुल्के शाम के लिए रवाना हो जाउंगा.
क़ाज़ी के दरबार से निकलकर अयाज़ क़ीफाह की सड़कों पर कुछ देर यूं ही बे–मकसद घूमता रहा. एक गली में दाखिल होता और दूसरी तंग गली से निकल जाता. इसी तरह जब बाज़ार से गुज़रा तो उसे खाने पीने की चीज़ें दिखाई दी और उसे भूख सताने लगी, पेट में चूहे दौड़ने लगे. उसने जेब में हाथ डाला तो जेब में क़ाज़ी के दिए हुए सिक्कों में से एक सिक्का निकाला और एक दुकान से खाने पीने की चीज़ें खरीदी जिसे खाकर पेट की आग बुझाई. क़ाज़ी ने उसे मंज़िल का पता बता दिया था. वो आहिस्ता आहिस्ता आगे बढ़ाने लगा. चलते–चलते उसे एक तंदूर नज़र आया वहाँ उसने वह मौजूद नान–बाई से रोटियाँ खरीदी और अपने थैले में डाल दी. अयाज़ सोचने लगा हाय रे मेरी किस्मत ख़वाब में दिन रात क़ीफाह देखा करता था और यहाँ आकर क़ैदखाने की चार दीवारी मिली. मगर शुक्र है खुदा का की उसने मुझे रास्ता दिखा दिया.

इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ अयाज़ वापस मुल्के शाम जाने वाली सड़कों पर पैदल ही चल पड़ा, मगर अब उसे अपने वजूद में एक खुशगवारी महसूस हो रही थी. एक अंजनी सी कुव्वत का एहसास हो रहा था. अब उसकी सिर्फ एक ही ख्वाहिश और कौशिश थी की वो जल्द अज़ जल्द मुल्के शाम पहुंच जाए. वो तेज़ क़दमों से बढ़ा चला जा रहा था. उसने रुक कर किसी काफिले का इंतजार भी नहीं किया. सहराई इलाक़ा, पथरीली ज़मीन पर भी उसके क़दम तेज़ी से बढ़ते चले जा रहे थे. भूख लगने पर थैले से रोटी निकाल कर खा लेता और मश्किज़े से पानी पी लेता और बस इसी तरह पैदल चलते हुए कई दिन हो गए.
अयाज़ थकन से बेहाल हो गया, सर पर सूरज आग बरसा रहा था, तेज़ गर्म हवाएं चल रही थी, हलक सूखकर काँटा हो जाता तो मश्कीज़े से सिर्फ मुंह लगा लेता क्योंकि उसमें पानी खत्म हो चुका था. वो सिर्फ तसल्ली के लिए मुंह लगा लेता और सूखे होंटों को पोंछ लेता. कई दिन की मसाफ्त के बाद चलते चलते दूर से उसे खजूर के दरख्त नज़र आये और उसके क़दम तेज़ हो गए. दरअसल वो एक नखलिस्तान था जहां मीठे पानी का एक तालाब था. अयाज़ बे–सब्री से तालाब पर पहुंचा और दोनों हाथों से खूब सेर होकर पानी पिया. फिर ख़जूर के दरख्त के ठंडे साए में आराम करने लगा. थकन की वजह से न जाने उसे कब नींद आ गयी. जब उसकी आंख खुली तो सूरज गुरूब हो चुका था. अयाज़ को नखलिस्तान में कुछ चहल पहल सी लगी, वहां एक क़ाफिला आ ठहरा हुआ था. इधर उधर ऊंट सुखी, खारदार झाड़ियों पर मुंह मारते फिर रहे थे शायद कोई तिजारती क़ाफिला था.
अयाज़ क़ाफिले के सरदार से मिला. उसे मालूम हुआ क़ाफिला सवेरे मुल्के शाम की तरफ़ रवाना होगा. ये सुनकर अयाज़ खुश हो गया और सरदार से इल्तिजा करने लगा की वो भी उनके साथ मुल्के शाम चलेगा मगर उसके पास सवारी नहीं है. सरदार उसके लिए सवारी का इंतजाम कर दे. सरदार एक रहमदिल इंसान था उसने अयाज़ को साथ लेकर चलने का वादा कर लिया, बदले में वो उनके सामान और ऊँटों की देखभाल करेगा जिसके लिए अयाज़ राज़ी हो गया. अंधेरा फैल चुका था, काफिले वालों ने अपनी अपनी मशाल रोशन की और सब उसके इर्द गिर्द बैठ गए.
चांदनी रात थी, सेहरा की ठंडी हवाएं माहोल को और खुशगवार बना रही थी, मशाल के गिर्द बैठे हुए गुलाम कोई सहराई नगमा गाने लगे, डफ की आवाज़ और हवाओं की सरसराहट माहौल को बहुत खुबसुरत बना रही थी. आधी रात तक जश्न का समां छाया रहा. अयाज़ की थकान दूर हो चुकी थी वो भी उन खादिमों में शामिल होकर गाने लगा. अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही क़ाफिला रवाना हो गया. ऊँटों की क़तार एक लकीर की तरह दिखाई दे रही थी. अयाज़ के लिए भी क़ाफ़िले के सरदार ने एक ऊंट का इंतज़ाम कर दिया था. अयाज़ ऊंट की पीठ पर बैठा सोच रहा था की कल उसके पास भी ऐसे ही ऊंट होंगे जिनका वो अकेला मालिक होगा.
आखिर कई दिनों की मसाफ्त के बाद उनका सफ़र खत्म होने को आया. उन्हें शहर की हदें नज़र आई. उसके बाद बुलंद दरवाज़ा दिखाई दिया. काफिले वाले वहां आकर रुक गए. रात हो चुकी थी और दरवाज़ा भी बंद हो चुका था. आखिर मैं शाम पहुंच ही गया अयाज़ ज़ोर से चिल्लाया और अपने सफ़र की थकन को भूल गया. अयाज़ फौरन ऊंट से नीचे उतरा और सरदार से रुखसती ली. सरदार ने उसे कुछ तोहफे दिए जिसे लेकर अयाज़ रवाना हो गया. अभी हर तरफ अँधेरा छाया हुआ था. थोड़ी देर बाद चाँद भी बादलों से निकल आया. अयाज़ का इंतज़ार अब जवाब दे रहा था वो जल्द अज जल्द खंडहर के पास पहुंचना चाह रहा था जहां पर बंद सूखा फ़व्वारा था.
आखिरकार अयाज़ खंडहर के करीब फव्वारे के पास पहुंच गया. उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. उसकी नज़र फ़व्वारे के गिर्द उस गोल पत्थर पर पड़ी जिसका ज़िक्र क़ीफाह में क़ाज़ी ने किया था जिसे उसने ख्वाब में देखा था. उस पत्थर पर खड़े होकर अयाज़ रोज़ाना अपना दुखड़ा सुनाया करता था जिसे वो एक आम मामूली सा पत्थर समझता था. मगर उसी पत्थर के नीचे दबी हुई उसकी किस्मत के चमकने की चाबी थी जिस पर वो खड़ा रहता था.
चांदनी रात थी आसपास की चीज़ें साफ़ दिखाई दे रही थी. हर तरफ़ खामोशी और सन्नाटा छाया हुआ था. अयाज़ ने खामोशी से आसपास निगाह दौड़ाई की कोई उसे देख तो नहीं रहा, क्योंकि अब वो जो कुछ करने जा रहा था वो एक राज़दारी का काम था, वो नहीं चाहता था की इस बात का किसी को पता चले. इत्मीनान कर लेने के बाद बे–सब्री से कोई नोकदार चीज़ तलाश करने लगा. उसके हाथ एक नुकीला पत्थर लगा, बस फिर क्या था गोल पत्थर के अतराफ़ की मिट्टी को हटाया और नुकीले पत्थर से उसके इर्द गिर्द की मिट्टी को खोदने लगा. थोड़ी सी कोशिश में पत्थर को अपनी जगह से सिरका दिया. उसके नीचे उसे कुछ नज़र नहीं आया. न जाने कहां से उसके हाथों में ताक़त आ गई वो दोनों हाथों से मिट्टी की तह हटाने लगा.
खोदते खोदते वहाँ एक गढ़ा नमूदार हो गया. फिर भी अयाज़ बराबर मिटटी खोदता रहा. अचानक उसकी उंगलियाँ निचे किसी सख्त चीज़ से टकराई. चाँद की रौशनी में उसे निचे एक लकड़ी का संदूक दिखाई दिया. जल्दी से अयाज़ ने उसपर जमी मिट्टी साफ कर दी. संदूक ज्यादा बड़ा नहीं था इसलिए फ़ौरन उसे गढ़े से बाहर निकाला. संदूक में एक पुराना ताला लगा हुआ था जिसे नोकदार पत्थर की एक ही मार से तोड़ दिया और संदूक को एहतियात से खोला. संदूक के अंदर एक चमड़े की एक बड़ी सी थैली थी. अयाज़ ने बेचैनी से चमड़े की थैली को संदूक से बाहर निकाला. थैली क़ाफ़ी वज़नदार थी. थैली का मुंह चमड़े की डोर से बंधा हुआ था, थोड़ी सी कोशिश से वो खुल गया. अचानक कोई चीज़ थैली से निकल कर उसके पैर पर गिरी. अयाज़ की नज़र पैर पर पड़ी वो सोने का एक सिक्का था जो चांदनी रात में चमक उठा था.
उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा उसे क़ीफाह का वो क़ाज़ी याद आ रहा था जो ख्वाब को एक मज़ाक मानता था. अगर वो अपने ख्वाब को सच समझता और मुल्के शाम आता तो यकीनन उसे दौलत मिलती. उसने कहा वाह रे मेरे नसीब ये दौलत तो मेरे नसीब में लिखी थी. चमड़े की थैली सोने की अशरफियों से भरी हुई थी. अयाज़ ने थैली में हाथ डाला और मुठ्ठी भरकर अशर्फियां बाहर निकाली. अयाज़ ने देखा की अशरफियों के साथ हीरे जवाहिरात और मोती भी उसमें शामिल हैं.
लगता है ये किसी बादशाह ने बगावत के ज़माने में भागते वक्त यहां अपना खज़ाना छुपा दिया और उसे ख़ज़ाना निकलने का मौका नहीं मिला और ख़ज़ाना यहां दफ़न रह गया ऐसा अयाज़ ने सोचा, मगर ये सोचने का वक्त नहीं था. अयाज़ ने चमड़े की थैली को बंद करके अपने कंधे पर रखा और खामोशी से खंडहर की तरफ़ चुपके से चल दिया. खंडहर से थोड़ी फासले पर एक दरख्त की आड़ से खलीफा के जासूस अयाज़ की सारी नकल–ओ–हरकत देख रहे थे. जब अयाज़ वहां से चला गया तब दोनों जासूस दरख्त की आड़ से निकले और फव्वारे के पास खोदी हुई ज़मीन को देखा, फिर खामोशी से ख़लीफ़ा के महल की तरफ़ वापस लौट गए.

दूसरी तरफ अयाज़ खंडहर में दाखिल होकर अपने मकान के दरवाज़े पर आया और आहिस्ता से अपनी बीवी सकीना को पुकारने लगा. सकीना अपने मकान से निकल कर बाहर आई, उसके चेहरे का रंग बदल गया. क्यों चिल्ला चिल्ला कर आसमान सर पर उठा रहे हो जहां ग़ायब थे वहीँ डूब मरते वापस क्यों आ गए कामचोर काहिल. उसने अपने माथे पर हाथ मारा या अल्लाह मैं क्या करूं मुझे कब निजात मिलेगी इससे. तुझे अब कुछ करने की ज़रूरत नहीं, ज़रा चुप रहे तो कुछ बोलूं, अपनी जुबान को आराम दे अयाज़ नर्म लहजे में बोला. सकीना उसे घूर जा रही थी.
अयाज़ ने कहा सुन मेरी बात नसीब को कोसन वाली औरत खुदा ने हमारी दुआ सुन ली, आज से हमारा शुमार भी अमीरों में होगा, तेरे कानों में सोने के ज़ेवर और हाथों में हीरों के कड़े होंगे, हमारे बच्चे फटे पुराने कपड़ों के बजाए शेहज़ादों की तरह रेशमी लिबास ज़ेब–तन करेंगे. घर में काम करने वाले गुलाम होंगे, खाने पकाने के लिए खादिमायें होंगी समझी तू. तू मुझे कामचोर, आलसी कहती है मगर अब मैं मुल्के शाम का मालदार तरीन शख्स हूँ. इतना कह कर अयाज़ ने अपना हाथ चमड़े की थैली पर फेरा और थैले में से एक सोने की अशरफी निकाल कर उसे दिखाई.
चमकती सोने की अशरफी देख कर सकीना का गुस्सा शांत हो गया वो कभी अयाज़ की तरफ़ देखती तो कभी उस थैली की तरफ़ देखती. उसके होश-ओ-हवास जाते रहे. फिर उसने फ़ौरन लपककर चमड़े की थैली को अयाज़ से लेकर अपने क़ब्ज़े में कर लिया. रात गुज़र गयी और दूसरे दिन अचानक ख़लीफा के सिपाही खंडहर में आ गए और अयाज़ को गिरफ्तार करके खलीफा के दरबार में पेश कर दिया क्योंकि बीती रात खलीफा के जासूस फव्वारे के पास का सारा वाक़िया खलीफा को बता चुके थे.
खलीफा का दरबार भरा हुआ था, खलीफा ने अयाज़ से हकीकत जानना चाहि, तब अयाज़ ने शुरू से आखिर तक अपने ख्वाब और क़ीफाह तक जाने का हाल बयान किया जिसे सुनकर खलीफा हंसने लगा और कहने लगा, नादान इंसान तू एक ख्वाब देखकर खामोश बैठा रहता था और अपने नसीब को रोता था मगर जब तूने हरकत की और अपनी अक्ल का इस्तेमाल किया और अपने हाथ पाऊँ का इस्तेमाल किया मेहनत की तो क़ुदरत ने भी तुझे इसका सिला दे दिया. अब तो तू समझ गया होगा की “हरकत में बरकत है” बेकार बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं होता, हालात चाहे जैसे भी हो उसे जद्दोजहद करते रहना चाहिए ना की काहिलों की तरह बैठकर अपने नसीब को कोसता रहे. ख़लीफ़ा ने अयाज़ से कहा जा और खुदा की अदा करदा दौलत का सही इस्तेमाल कर. फिर अयाज़ दरबार से रुखसत हो गया.
कुछ दिनों बाद अयाज़ ने मुल्के शाम के उसी चौराहे पर रेशमी कपड़ों की एक दुकान खोली, रहने के लिए छोटी सी एक हवेली बनवा ली और खंडहर को खैरबाद कह दिया. अयाज़ रात को चैन की नींद सोता, अब उसे कोई ख्वाब परेशान नहीं करता, उसने अपना नसीब पा लिया था. अयाज़ ने एक और काम किया, बरसों से सूखे बंद पड़े फव्वारे को फिर से तामीर करके जारी करवा दिया जहां पर खड़े रहने से उसकी क़ाया पलट गई थी. फव्वारे के हौज़ में रात दिन रंग बिरंगी मछलियां तैरती रहती, उसे जब भी फुर्सत मिलती वहां आकर हौज़ में तैरती रंगीन मछलियों को दाना डालता और खुदा का शुक्र अदा करता की उसने अपने ख्वाब को हक़ीक़त में बदल दिया. खुदा यूं ही सबके दिन पलटे बेशक अल्लाह जिसे चाहता है बेपनाह दौलत और शोहरत से नवाज़ता है, वो बड़ा मेहरबान और अपने बंदों पर रहम करने वाला है.
इस कहानी का सबसे ख़ास सबक़ यही है की अपनी किस्मत और हालात पर रोने से अच्छा है मेहनत करे. नसीब में अगर लिखा है तो वो आकर ही रहता है. किसी के नसीब का कोई और नही खा सकता. हर कोई अपने नसीब का ही खाता है.
उम्मीद है की अयाज़ की ये कहानी आप सबको बहोत पसंद आई होगी. अपनी राय का इज़हार ज़रूर करें और विडियो को like करना न भूले. ऐसी ही और भी अनगिनत सबक़ आमोज़ कहानियों को सुनने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब ज़रूर कर लीजिये. जल्दी ही फिर मुलाक़ात होगी एक और दिलचस्प सबक आमोज़ कहानी के साथ.