
कीसी ज़माने में याब्दा नामक एक गांव था. जिसमें एक भिखारी रहता था. उसकी खासियत थी की वो भीख मांगने में माहिर होने के साथ-साथ बहुत अकलमंद भी था. उस भिखारी का एक शागिर्द था जो बिल्कुल बेवकूफ था. भीख मांगने का तरीका उसने अपने उस्ताद से सीखा था. दोनों का इस दुनिया में कोई अज़ीज़ रिश्तेदार नहीं था इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. भिखारी अब बहुत बूढ़ा हो चुका था जबकी इसका शागिर्द बिल्कुल जवान था. एक दिन खुदा का करना ऐसा हुआ की इस गांव को सैलाब ने अपने लपेट में ले लिया. सारे गांव के कच्चे मकान थे जिस वजह से वो सैलाब में बह गए.
सैलाब में उनका कच्चा पक्का सा घर भी बह गया. सारे का सारा गांव दरहम बरहम हो गया. गांव के लोगों के साथ-साथ उन्होंने भी गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. एक रोज उन्होंने अपने गांव को खैर-बाद कह दिया और गांव से बाहर निकले. उन्होंने गांव को आखिरी मर्तबा देखा तो उनकी आंखों में आंसू भर आए, इस गांव में उन्होंने जिंदगी के ना जाने कीतने दिन गुज़ारे थे. गांव से रुखसत होकर वो नाक की सीध में चल पड़े. दोनों आपस में इधर-उधर की बातें भी कर रहे थे. चलते चलते सूरज ढलने ही वाला था की उन्होंने एक शहर के आसार देखे.
शागिर्द कहने लगा मुबारक हो उस्ताद आखिर हम एक शहर तक पहुंच ही गए. खुदा का शुक्र है बूढ़े के मुंह से निकला. दोनों तेजी से कदम उठाने लगे ताकी सूरज डूबने से पहले-पहले वो शहर में पहुंच सके. दोनों ठीक इस वक्त शहर में दाखिल हुए जब सूरज गुरूब हो रहा था. अचानक वो शागिर्द बेदम होकर नीचे गिरा और कहने लगा उस्ताद मुझ में तो अब एक कदम भी उठाने की हिम्मत नहीं है खुदा के लिए कुछ खाने का बंदोबस्त करो.
अच्छा तुम यहीं ठहरो मैं कीसी के घर से खाना लाता हूं बूढ़े उस्ताद ने कहा और चला गया. जल्द ही वो कुछ रोटियां और दाल ले आया, दोनों ने सब्र शुक्र से उन्हें खाया. पास के कुंएं से पानी पिया और एक दरख्त के नीचे लेटकर सो गए. सुबह हुई तो उन्होंने भीख मांगने का बा-कायदा प्रोग्राम बनाया, दोनों निकल खड़े हुए और सारा दिन भीख मांगते रहे. शाम हुई तो अपने ठिकाने पर लौट आए. ये एक घना दरख्त था, कल रात भी वो इसी के नीचे सोए थे. यहां पहुंचकर बूढ़े ने कहा अब हमारे पास कुछ पैसे जमा हो गए हैं तुम ऐसा करो बाज़ार से ज़रूरत की चीजें ले आओ हम जंगल में एक झोपड़ी डाल लेंगे और वही खाना पकाया करेंगे.
अच्छा उस्ताद मैं अभी लाता हूं शागिर्द ने खुश होकर कहा और पैसे लेकर चला गया. शागिर्द बाज़ार पहुंचा तो इसने सोचा थोड़ी सी मिठाई भी खरीद लूँ, तीन-चार दिन से कोई मीठी चीज़ नहीं खाई, ये सोचकर वो सीधा एक मिठाई की दुकान पर गया. बाजार बहुत बड़ा था और इसमें खूब चहल पहल थी, मिठाई की दुकान पर तरह-तरह की मिठाइयां रखी हुई थी. इसने दुकानदार से पूछा भाई साहब लड्डू कैसे दिए? दुकानदार ने कहा टके शेर. क्या कहा टके शेर? शागिर्द ने हैरान होकर पूछा! हां हां टके शेर दुकानदार ने कहा, और बर्फी क्या भाव है? शागिर्द ने पूछा. दुकानदार ने कहा हर चीज़ टके शेर है.
शागिर्द ने खुश होकर कहा अच्छा तो हर मिठाई मिलाकर एक शेर दे दो. मिठाई वाले ने मिठाईया एक शेर तोल दी. शागिर्द ने उसे एक टका दिया और सब्जी वाले की दुकान पर आया, भाई साहब गोभी क्या भाव है इसने पूछा. दुकानदार ने कहा टके शेर, और आलू शागिर्द ने हैरान होकर पूछा! दुकानदार ने कहा हर चीज़ टके सेर है. शागिर्द हैरान रह गया और सब कुछ छोड़ छाड़ कर दौड़ता हुआ अपने उस्ताद के पास पहुंचा. उस्ताद ने जो इस तरह भागते हुए देखा तो पूछा क्या बात है भागते क्यों आ रहे हो और ये क्या तुम सिर्फ एक लिफाफा उठाए हुए हो तुम्हें तो कीतनी चीजें लानी थी?
उस्ताद जी मज़े के दिन आ गए शागिर्द ने खुशी से अपने उस्ताद से कहा इस शहर में तो हर चीज दो पैसे शेर बिकती है. ये देखो ये एक शेर मिठाई दो पैसे की लाया हूं. यहां हर चीज़ ही दो पैसे शेर है मिठाई भी, घी भी, दाले भी, सब्जी भी, गर्ज़ हर चीज़ दो पैसे शेर है. यहां तो मजे आ जाएंगे खूब खाओ पियो. उस्ताद अब हम सारी उम्र यही रहेंगे. उस्ताद इसकी बातें सुनकर चुप रहा, उस्ताद को खामोश देखकर शागिर्द कहने लगा क्या बात है उस्ताद तुम्हें खुशी नहीं हुई? उस्ताद ने कहा नहीं बेटा मुझे सुनकर कोई खुशी नहीं हुई. मगर क्यों उस्ताद जी अब हम अच्छी-अच्छी चीजें टके सेर लेकर खाया करेंगे, ना कुछ पकाने की ज़रूरत, ना मुसीबत भरने की, बाजार से खरीद कर खा लिया करेंगे.
उस्ताद ने एक सांस भरी और फिक्र मंद होकर कहने लगा तुम बेवकूफ हो यहां रहना ठीक नहीं. उस्ताद की बातें सुन शागिर्द कहने लगा ये आप क्या कह रहे हो उस्ताद, मैं तो यहां से हरगिज़ वापस नहीं जाऊंगा इससे ज़्यादा मज़े और कहां आएंगे. भला कोई ऐसी जगह भी हो सकती है जहां हर चीज़ टके शेर से बिकती हो? उस्ताद ने कहा इसलिए तो कह रहा हूं की यहां रहना ठीक नहीं है ये अंधेर नगरी है. तुम कुछ भी कहो उस्ताद मैं इस जगह को छोड़कर नहीं जाऊंगा. उस्ताद ने पूछा अगर मैं यहाँ ना रहूं तो? तब भी मैं यही रुकूंगा शागिर्द ने कहा. लेकीन मैं कहता हूं तुम भी ना जाओ जिंदगी के बाकी दिन यही ऐश और आराम से गुज़ारेंगे.
नहीं मैं यहां नहीं रह सकता उस्ताद भी अपनी ज़िद्द पर अड़ गया. खैर दोनों ने मिठाई खाई और सो गए. सुबह हुई तो उस्ताद उठ खड़ा हुआ. कहां चले उस्ताद शागिर्द ने पूछा. मैंने कहा था ना की मैं यहां नहीं ठहर सकता. तो क्या अभी और इसी वक्त जा रहे हो? हां मुझे यहां रहने से खौफ आता है. मान जाओ उस्ताद यहां से ना जाओ दुनिया के तख्ते पर इतना ऐश कहीं नहीं जितना यहां है और अगर तुम जाए बगैर नहीं रह सकते तो दो चार दिन तो ऐश करते जाओ.
नहीं मैं सिर्फ दिन निकलने तक ठहर गया था अब एक मिनट भी नहीं रुकूंगा. उस्ताद ने अपना झोला कंधे पर डाला और शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर निकल गया. ठहरो उस्ताद मैं तुम्हें शहर के बाहर छोड़ आता हूं ये कहकर शागिर्द भी उस्ताद के पीछे लपका. फिर दोनों साथ-साथ कदम उठाने लगे. शागिर्द कहने लगा मैं हैरान हूं उस्ताद आखिर तुम्हें यहां रहने में क्या डर है क्या खतरा है? हमारा काम तो भीख मांगना है हमें कीसी से क्या डरना, हमें कौन नुकसान पहुंचा सकता है?
उस्ताद ने कहा इस वक्त तुम मेरी इन बातों को नहीं समझ सकते लेकीन एक दिन आएगा जब तुम मेरी बातें याद करोगे और कहोगे की काश मैंने अपने उस्ताद की बात मानी होती. मैं अब भी तुम्हें यही कहता हूं मेरे साथ चले चलो, लालच में ना आओ.हरगिज़ नहीं उस्ताद मैं इसी जगह रहूंगा.
अच्छा तो मेरी एक बात सुन लो अगर कभी तुम कीसी मुसीबत में गिरफ्तार हो जाओ तो अपने उस्ताद को जरूर दिल ही दिल में याद कर लेना हो सकता है की कुदरत मुझे तुम्हारी मदद के लिए भेज दे. शागिर्द ने कहा आप यूं ही फिक्र कर रहे हो उस्ताद मुझे यहां कोई तकलीफ नहीं है मुझ पर कोई मुसीबत नहीं टूटेगी.
मैं तुम्हें आखिरी बार कहता हूं मेरे साथ चलो उस्ताद ने मायूस होकर कहा. और अब मैं भी आखिरी बार कहता हूं मैं यही रहूंगा शागिर्द ने गुस्से भरे लहजे में कहा. इसके बाद उस शागिर्द ने अपने रहने के लिए घास फूस की एक झोपड़ी बना ली और इसमें मज़े से रहने लगा. वो हर फिक्र से आज़ाद था. सुबह उठकर भीख मांगने के लिए निकल खड़ा होता और जो दो चार आने हाथ लगते वो इसकी ज़रूरत से कहीं ज्यादा होते क्योंकी हर चीज़ टके शेर मिल जाती थी. वो मिठाइयां, घी, दूध, खुश्क मेवे पेट भर भर कर खाता और अपने उस्ताद को बेवकूफ ख्याल करके खूब हंसता और कहता काश उस्ताद यहां से ना जाते.
कुछ वक्त गुजरा की अब इससे कोई काम ना होता था, कई-कई दिन भीख मांगने भी ना जाता था. झोपड़ी में खाने पीने की चीजों का ढेर लगा रहता वो उनमें से लेकर खूब खाता और कहकहे लगाता. हर फिक्र से आजाद होने और खूब खाने और कोई मशक्कत ना करने की वजह से इसका जिस्म मोटा ताज़ा होने लगा, वो अपने मोटे होते जिस्म को देखकर बहुत खुश होता, सुस्त पड़े रहने और खाते रहने की वजह से रफ्ता रफ्ता इसका जिस्म फूलता चला गया और वो फूलकर इतना हो गया की अब इससे चलना भी मुश्किल हो गया था. जब पैसे खत्म होने लगते बाज़ार में जाकर कीसी मोड़ पर बैठ जाता, शहर के लोग इसके मोटापे पर हंसकर उसे कुछ ना कुछ दे देते थे जिस से वो फिर शेरों के हिसाब से चीजें खरीदकर झोपड़ी में जमा कर लेता और खाने लगता. अब यही इसकी जिंदगी थी और इसका मोटापा रोज़ बरोज़ बढ़ता चला जा रहा था.
अब इस मुल्क के बादशाह का हाल सुनिए. एक दिन वो अपने तख्त पर बैठा था, दरबार लगा हुआ था तमाम दरबारी हाजिर थे की इसके सामने एक शख्स को पकड़कर लाया गया. बादशाह ने पूछा ये कौन शख्स है?
बादशाह सलामत इस शख्स को बाज़ार से पकड़ा गया है. ये बाज़ार में क्या कर रहा था?
बादशाह सलामत इसने एक शख्स की जेब काटी है. वो कहां है जिसकी जेब काटी गई है बादशाह ने पूछा.
वो बाहर मौजूद है सिपाही बोला.
बादशाह ने कहा उसे पेश करो. उस शख्स को पेश कीया गया. बादशाह ने उससे पूछा क्या इस शख्स ने तुम्हारी जेब काटी है? उस शख्स ने जवाब दिया जी हां. तुमने उसे जेब काटने ही क्यों दी बादशाह ने गुर्रा कर पूछा? ये सुनकर जिस शख्स की जेब काटी गई थी वो शख्स घबरा गया. बादशाह ने कहा तुम्हारी गफलत की सज़ा तुम्हें दी जाएगी. जेब कतरे को छोड़ दो क्योंकी ये तो लोगों को होशियार करने का फ़र्ज़ अंजाम दे रहा था और जिसकी जेब कटी है इसे पकड़ लो इसने अपनी जेब कटने ही क्यों दी, कल सुबह उसे शहर के चौराहे पर फांसी पर लटका दिया जाए.
बादशाह का हुकम सुनते ही जेब कतरे को छोड़ दिया गया और जिसकी जेब कटी थी उसे पकड़ लिया गया. दूसरे दिन चौराहे पर तील धरने की जगह ना थी इस बेगुनाह शख्स को ज़ंजीरों में पकड़कर चौराहे पर लाया गया. वो गरीब थरथर कांप रहा था. लोगों की तादाद में लमहा बलमहा इज़ाफा हो रहा था. आखिर में बादशाह सलामत की सवारी आई.
बादशाह एक ऊंची जगह पर खड़ा हो गया और इसने इशारा कीया की फांसी दे दी जाए. जल्लाद आगे बढ़ा इसने फंदा उस आदमी की गर्दन में डाला लेकीन फंदा ढीला था और वो शख्स बहुत दुबला पतला था. जल्लाद में भी इतनी अकल कहां थी की फंदे के गिराह को तंग कर देता. हैरान और परेशान कभी फंदे और कभी इस आदमी की गर्दन को देखने लगा.
क्या बात है तुम इसे फांसी क्यों नहीं देते? बादशाह ने गुस्से के आलम में कहा. जहांपना फांसी का फंदा ढीला है और इसकी गर्दन पतली है अब मैं इसे फांसी दूं तो कैसे दूं? बादशाह ने ये सुना तो सोच में डूब गया. इसके वज़ीर और अमीर परेशान हो गए. सब मिलकर सोचने लगे की फांसी कैसे दी जाए. लेकीन कीसी को समझ में ना आया की फंदे की गिरह को तंग करके फांसी दी जा सकती है. जब कीसी की समझ में ना आया तो बादशाह बोला तुम सब बिल्कुल बेवकूफ गधे हो जो इतनी सी बात भी नहीं सोच सकते की अगर इस शख्स की गर्दन में फांसी का फंदा नहीं आता तो उसे छोड़ दो और शहर में जिसकी गर्दन में ये फंदा फिट आ जाए उसे फांसी दे दो, लेकीन फांसी देने से पहले हमें ज़रूर इत्तिला दी जाए क्योंकी हम ये तमाशा अपनी आंखों से देखना चाहते हैं.
बादशाह का हुकम सुनकर सब लोग इसकी अकल मंदी की दाद दिए बगैर ना रह सके. बादशाह ने कीतनी शानदार तरकीब बताई है और वो सब कीतने बेवकूफ है की इतनी सी बात भी ना सोच सके. फंदा उतार कर सिपाहियों को दे दिया गया और वो ऐसे शख्स की तलाश में निकल खड़े हुए जिसकी गर्दन में ये फंदा फिट आ सके. सबसे पहले वो एक मोटे हलवाई के पास पहुंचे उन्होंने सोचा ये आदमी काफी मोटा है इसलिए उम्मीद है की इसकी गर्दन में ये फंदा फिट आ जाएगा. उन्होंने उससे कहा नीचे उतरो. हलवाई सरकारी आदमियों को देखकर बहुत घबराया, मगर मरता ना क्या करता नीचे उतर आया. सिपाहियों ने फंदा इसकी गर्दन में डालकर देखा लेकीन फंदा अभी भी ढीला था. उन्होंने मायूस होकर फंदा इसकी गर्दन से निकाल लिया और कहा जाओ तुम फांसी के लायक नहीं. तुम्हारी गर्दन इतनी मोटी नहीं जितना की ये फंदा है.
इसी तरह वो सब लोगों के गले में फंदा डाल डाल कर देखते रहे लेकीन फंदा जो बहुत ढीला था इसलिए कीसी की गर्दन में फिट ही नहीं आया. अचानक सिपाहियों को एक मोटा आदमी नज़र आया वो उसे देखकर बहुत खुश हुए और इसकी तरफ बढ़ने लगे. वो शख्स एक मिठाई की दुकान पर खड़ा था. शागिर्द तीन चार दिन से बाहर नहीं गया था, झोपड़ी में पड़े खाने की चीजें खत्म हो गई थी और इसके पास पैसे भी नहीं थे इसलिए वो बाज़ार की तरफ चल पड़ा. बाजार पहुंचते पहुंचते इसको तीन चार आने भीख मिल चुके थे इसलिए वो सबसे पहले एक मिठाई की दुकान पर गया और इससे पांच सेर मिठाई तोलने के लिए कहा. हलवाई मिठाई तोलने लगा अचानक इसके हाथ से तराज़ु छूटकर नीचे गिर पड़ा.
क्या बात है क्या तुम्हारे हाथों में जान नहीं है? वो आ रहे हैं मिठाई वाले ने खौफ ज़दा होकर कहा. कौन आ रहे हैं तुम इस क़द्र डर क्यों रहे हो शागिर्द ने हैरान होकर पूछा? इतने में सिपाही फंदा लिए वहां पहुंच गए. उन सिपाहियों को शागिर्द ही नज़र आया था जिसे देखकर वो बहुत खुश हुए थे. पहलवान ज़रा अपनी गर्दन तो इधर करना एक सिपाही ने मुस्कुरा कर कहा. क्यों क्या बात है शागिर्द ने हैरान होकर कहा? मामला ये है की एक शख्स को फांसी दी जाने वाली थी लेकीन इसकी गर्दन में ये फंदा फिट नहीं आया इसलिए हमारे बादशाह सलामत का हुक्म है की जिस शख्स की गर्दन में ये फंदा फिट आ जाए उसे फांसी पर चढ़ा दो. हम सुबह से कीसी आदमी की तलाश में है लेकीन अभी तक कोई आदमी ऐसा ना मिला जिसकी गर्दन में ये फंदा फिट आ जाए. अब तुम नज़र आए हो उम्मीद है की तुम्हारी गर्दन में ये फंदा ज़रूर फिट आ जाएगा.
अरे मगर ये क्या इंसाफ है शागिर्द ने चिल्लाकर कहा. ये हमारे बादशाह सलामत का इंसाफ है इसके खिलाफ कोई आवाज़ नहीं उठा सकता. यहां हर चीज़ टके सेर इनके हुकम से बिकती है सिपाही ने कहा और एक ने अपने साथियों को इशारा कीया, शागिर्द को जकड़ लिया गया. फांसी का फंदा इसके गले में डाला गया तो वो बिल्कुल फिट आया, सिपाही ये देखकर बहुत खुश हुए और उसे क़ैद खाने की तरफ ले चले.
अब शागिर्द को मालूम हुआ की उसका उस्ताद यहां रहने से क्यों डरता था, लेकीन अब पछताने से क्या हासिल हो सकता था. उसे कैद खाने में डालकर बादशाह को ये खबर सुना दी गई की एक ऐसा शख्स मिल गया है जिसके गले में फांसी का फंदा फिट आ गया है. बादशाह इस खबर को सुनकर बहुत खुश हुआ. इसने उसी वक्त हुकम दिया की उसे कल शहर के चौराहे पर फांसी पर लटका दिया जाए. शागिर्द को अपने उस्ताद की बातें बहुत बुरी तरह याद आने लगी.
अब उस्ताद की सुनिए, उस्ताद इस शहर से निकला तो बहुत उदास था क्योंकी इस शहर ने उसका शागिर्द छीन लिया था. वो शहर शहर और गांव गांव घूमता फिरता जो रूखी सूखी मिलती रही उसी पर गुज़ारा करता रहा और अगला दिन निकलने पर फिर भीख मांगने चला जाता. इसकी जिंदगी के दिन यूँ ही गुज़र रहे थे की एक दिन अचानक उसे अपने शागिर्द का ख्याल आया, इसने सोचा की चलकर देखना चाहिए की वो कीस हाल में है खैरियत से तो है. ये सोचकर उसने इस शहर का रुख कीया. सारा दिन और सारी रात चलते रहने के बाद वो शहर में दाखिल हुआ और उस जगह पर पहुंचा जहां उन्होंने कयाम कीया था. इस जगह इसने एक झोपड़ी देखी लेकीन इसके अंदर इसका शागिर्द मौजूद नहीं था. वो उसे ढूंढता हुआ शहर के चौक की तरफ चल पड़ा.
रास्ते में उसे हर कोई शख्स चौक की तरफ बढ़ता हुआ नज़र आया, इसने एक आदमी से पूछा की ये सारे लोग चौक की तरफ क्यों जा रहे हैं तो इसने बताया की आज एक आदमी को चौराहे पर फांसी दी जाएगी ये सब लोग वही तमाशा देखने जा रहे हैं. वो भी चौराही की तरफ बढ़ने लगा. एक तरफ से उसे सात आठ सिपाही आते हुए नज़र आए, उनके साथ एक मोटा ताज़ा आदमी ज़ंजीरों में पकड़ा हुआ था. उस्ताद ने इस मोटे आदमी को देखा तो पहचान ना सका. जब वो करीब आया तो शागिर्द की नज़र अपने उस्ताद पर पड़ी, वो चिल्ला उठा उस्ताद उस्ताद.
उस्ताद के कान खड़े हुए, अब जो इस मोटे आदमी को गौर से देखा तो उसे पहचान लिया और हैरान होकर बोला ये तुम हो? हां उस्ताद. तुम इस हाल में कैसे पहुंचे? शागिर्द ने सारा माजरा कह सुनाया. उस्ताद ये सुनकर सोच में पड़ गया फिर शागिर्द के कान के करीब मुंह ले जाकर बोला अब तुम्हें बचाने की सिर्फ एक ही तदबीर है. वो क्या उस्ताद शागिर्द ने खुश होकर पूछा? जब तुम्हें फांसी दी जाने लगे तो मैं कहूंगा की फांसी मुझे दो, तुम कहना की नहीं ये फांसी मुझे ही दो. मैं कुछ समझा नहीं उस्ताद शागिर्द ने हैरान होकर कहा? मैंने तुमसे जो कहा है वही करना आगे तुम्हें बचाना मेरा काम है. बहुत अच्छा उस्ताद शागिर्द खुश हो गया.
वो चलते चलते चौराहे तक पहुंच गए. शागिर्द को फांसी के तख्ते पर खड़ा कर दिया गया. फांसी का फंदा इसकी आंखों के सामने झूल रहा था. वो उसे देखकर सहम गया की कहीं इसका उस्ताद उसे बचाने में नाकाम ना हो जाए. आखिर बादशाह की सवारी आई. लोगों ने उसे देखकर खुशी से नारे लगाए. बादशाह अपनी मखसूस जगह पर खड़ा हो गया. उसने एक नज़र सारे मजमे पर डाली और बुलंद आवाज़ में कहने लगा ए मेरी रिआया! आखिर हम ऐसे आदमी को पाने में कामयाब हो ही गए जिसके गले में ये फंदा फिट आ गया है, अब मैं हुकम देता हूं की उसे फांसी दे दी जाए.
जल्लाद ये सुनकर फांसी का फंदा हाथ में पकड़ा और उस शागिर्द की गर्दन में फसाने लगा, ऐन उसी वक्त उस्ताद ज़ोर से चिल्लाया ठहरो! इसको फांसी ना दो बल्कि फांसी मुझे दो. सारे मजमे में सन्नाटा तारी हो गया. जल्लाद के हाथ रुक गए, बादशाह चौंक उठा, सब मुड़ मुड़कर उस्ताद की तरफ देखने लगे जो मजमे से निकलकर फांसी के तख्ते की तरफ़ आ रहा था. कौन हो तुम और सरकारी कामों में दखल देने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बादशाह ने पूछा? इसकी जगह मुझे फांसी दे दो उस्ताद ने कहा.
बादशाह सलामत ये ज़ुल्म ना कीजिए फांसी मुझे ही दे इसका शागिर्द बोला.
हरगिज़ नहीं फांसी मुझे ही दे उस्ताद बोला, नहीं फांसी मुझे दी जाए, उस्ताद और शागिर्द की तकरार जारी थी और सब लोग हैरान थे, आज तक उन्होंने अपनी जिंदगी में कोई ऐसा आदमी नहीं देखा था जो अपने आप को फांसी दिलाने के लिए ज़िद्द करे और यहां तो ऐसे दो आदमी मौजूद थे. बादशाह की हैरत का भी कोई ठिकाना नहीं था. आखिर इसने चिल्लाकर कहा आखिर क्या बात है तुम क्यों फांसी पाना चाहते हो? बस यूं ही आप इसको छोड़ दे और मुझे फांसी दे दे उस्ताद ने कहा.
बादशाह ने हैरान होकर कहा तुम दोनों फांसी पाने के लिए इतने बेचैन क्यों हो? बादशाह की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. दूसरे लोग भी सांसें रोके खड़े थे. उस्ताद ने बताना शुरू कीया बात दरअसल ये है बादशाह सलामत की आज का दिन बहुत ही मुबारक है. आज के दिन जो भी फांसी पाएगा सीधा जन्नत में जाएगा. मरना तो एक दिन है ही इसलिए इस मोटे की बजाय आप मुझे फांसी दे दे. ये सुनना था की दरबार में चारों तरफ से शोर सुनाई दिया, वज़ीर ने कहा मैं यहां का वज़ीर हूं इसलिए आप मुझे फांसी दें ताकी मैं सीधा जन्नत में चला जाऊं, बादशाह ने चौंक कर उसे देखा. उसी वक्त दूसरे कई लोग चिल्ला उठे फांसी मुझे ही दी जाए, फांसी मुझे ही दी जाए.
बादशाह परेशान हो गया की फांसी कीसे दे और कीसे ना दे. शागिर्द कभी हैरान होकर उस्ताद को देखता और कभी मजमे को और दिल ही दिल में खुश हो रहा था. बादशाह ने हाथों के इशारे से मजमे को खामोश कीया और बोला सबसे ज्यादा हकदार मैं हूं, मैं तुम्हारा बादशाह हूं इसलिए आज फांसी पर चढ़कर मैं जन्नत में जाऊंगा. सब लोग हैरान हो गए, बादशाह के आगे कौन क्या कर सकता था, सब लोग बादशाह को फांसी के तख्ते पर जाते देखते रहे, यहां तक की वो तख्ते पर चढ़ गया.
इसने मोटे आदमी को नीचे उतारने का इशारा कीया. शागिर्द खुदा का शुक्र अदा करते हुए नीचे उतरा, बादशाह ने जल्लाद को हुक्म दिया की वो एक नया फंदा लाए जो बादशाह की गर्दन में फिट आ सके. जल्लाद ने हुक्म की तामील की और बादशाह के गले में एक नया फंदा डाल दिया. चुनांचे बादशाह को फांसी दे दी गई. बादशाह की फांसी का ये मंज़र लोग बड़ी हैरत से देखने में मशगूल थे की उनका बादशाह सीधा जन्नत में जा रहा है. इस मौके से फायदा उठाते हुए उस्ताद और शागिर्द दोनों चुपचाप दरबार से बाहर निकल आए और खुदा का शुक्र अदा कीया और ऐसी बेवकूफ़ाना कौम को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
यहां सीखने की बात ये है की लालच इंसान को इसके मकसद से दूर ले जाता है और मसाइल पैदा करता है. दूसरी बात ये है की जिंदगी में सही रहनुमाई पर अमल करना ज़रूरी है क्योंकी इससे मुश्किलात और परेशानियों से निकलने में मदद मिलती है. तीसरा कीसी मसले का हल तलाश करने के लिए फौरी सोच और ज़हानत की ज़रूरत होती है, और आखिर में गलतियों से सीखना और उनको बेहतर बनाना ही जिंदगी का असल सबक़ है.