
एक कहानी जो बड़ी सबक़ आमोज़ है. सदियों पुरानी बात है, कहा जाता है की किसी ज़माने में अलामुत नामी एक क़दीम शहर वाक्य हुआ करता था. इसी शहर में एक तंग और सुनसान गली हुआ करती थी जिसे हर्रान कहा जाता था. इस गली में हमेशा अँधेरा छाया रहता था. दिन के वक़्त भी सूरज की रौशनी गली तक पहुँचने में नाकाम रहती थी. ये गली अलामुत के दुसरे शहरों से अलग नज़र आती थी. इस गली हर्रान के बारे में लोग अजीब ओ गरीब कहानियाँ सुनाया करते थे. कुछ कहते के इस गली में जिन्नात का बसेरा है तो कुछ इसे बद-रूहों का थोकाना कहा करते थे.
अजीब बात ये थी की इसी गली के करीब एक कोने में एक फ़क़ीर रहा करता था. जिसका नाम मंसूर था. मंसूर की ज़िंदगी निहायत सादा और दुखभरी थी. वो दिनभर शहर के बाज़ारों में भीक माँगता और शाम होते ही उसी अँधेरी गली के करीब अपने एक कच्चे से मकान में लौट आता. मंसूर कमज़ोर और ज़ईफ़ था लेकिन दिल का बड़ा आली शख्स था. जब भी उसे ज़रूरत से ज़ायिद खाना मिलता तो वो उसे दुसरे फकीरों में बाँट दिया करता था.
एक शाम की बात है जब अलामुत की गलियाँ सुनसान थी और बहने वाले हवा में अजीब से सर्दी और ठंडक थी. मंसूर अपने मामुल के मुताबिक़ अपने घर की और लौट रहा था. अचानक उसकी नज़र गली के बीचों बीच एक बोसीदा और पुराने से संदूक पर पड़ी. संदूक पर धुल मिटटी जमी हुई थी और उस पर ऐसे निशानात थे जिनसे मालुम होता था की ये संदूक बहोत पुराना है.
मंसूर ने सोचा आज से पहले मेरा यहाँ से गुज़र होता रहा लेकिन मैंने कभी ये संदूक यहाँ नही पाया. उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा. उसने गली मैं यहाँ वह देखा लेकिन उसे कोई नज़र नही आया. सुनसान गली में एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी जिसे सिर्फ हवा की सरसराहट तोड़ रही थी. मंसूर हिम्मत जुटा कर आहिस्ता आहिस्ता उस संदूक के करीब पहुंचा. उसका ग़ालिब गुमान था की शायद ये संदूक किसी ने यहाँ छोड़ा है. हो सकता है इसमें कुछ कीमित चीज़ें मौजूद हों.
लेकिन कुछ ही लम्हे में उसे ख्याल आया की कहीं ये संदूक किसी आसीब ज़दा चीज़ का हिस्सा तो नही, वरना ये संदूक इस गली में क्यू कोई रख जाएगा. बहोत वक़्त बाद हिचकिचाते हुए मंसूर ने संदूक को हाथ लगाया. जैसे ही मंसूर ने संदूक के ढक्कन को उठान की कौशिश की, संदूक में से एक आवाज़ गूंजी जो पूरी गली में गूंज रही थी. “मंसूर ये खज़ाना तुम्हारे नसीब का इम्तिहान है. अगर तूने इसे खोला तो ये तुम्हारी ज़िन्दगी बदल सकता है लेकिन याद रख इसके साथ बड़ी बड़ी आज़माइशें भी ज़रूर आएगी.”
आवाज़ सुनते ही मंसूर खौफ़ के मारे पीछे हट गया. उसका दिल जोरो से धड़क रहा था. वो चाह रहा था की वो यहाँ से भाग जाएं लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी कशिश उसे संदूक के करीब होने पर मजबूर कर रही थी. उसने सोचा क्या वाकई ये संदूक मेरी किस्मत बदल सकता है. मंसूर ने गहरी सांस ली और फैसला किया की अ जो भी हो वो इस संदूक को ज़रूर खोलेगा. लेकिन मंसूर को ये पाता नही था की आखिर ये संदूक उसकी ज़िन्दगी को किस तरह बदलेगा.
अँधेरी गली में मंसूर ने जैसे ही वो संदूक खोला अचानक एक चमकदार रौशनी पूरी गली को रोशन कर गयी. मंसूर को समझ न आया की आखिर इसमें ऐसा क्या है जिससे इतनी रौशनी फ़ैल रही है. मंसूर ने जब संदूक में देखा तो उसे एक छोटा सा आइना नज़र आया और साथ ही एक अजीब पुरानी किताब नज़र आई जिस पर कुछ नुकूश बने हुए थे.
आइना देखने में आम आइनों जैसा नही था. आईने का उपरी हिसा किसी जादुई रौशनी से चमक रहा था. ऐसा लगता था मानों ये आइना कई राज़ अपने अंदर छुपाये बैठा है. मंसूर ने आइना उठाया और जैसे ही उनसे आईने के अंदर झांका तो उसे अपनी तस्वीर के पीछे एक अजीब सा मंजर दिखाई दिया. मंसूर ने देखा की एक बहोत हरा भरा जंगल है जिसकी शाखें हवा में फैली हुई है साथ ही उसे पत्तों से सुरीली और मद्धम आवाज़ें आ रही है.

जंगल के बीचों बिच एक बहोत बड़ा खज़ाना दिखाई दे रहा था लेकिन वहाँ तक पहुँचने के रास्ते दूंध से छुपे हुए थे. मंसूर ने आइना निचे रखा और उस किताब की तरफ देखा. किताब के सफ्हात बहोत पुराने थे और उनपर एक अजीब ज़बान में कुछ लिखा हुआ था जिसे मंसूर पढने में क़ासिर था. लेकिन जैसे ही मंसूर ने उस किताब को छुआ तो उस किताब के अलफ़ाज़ खुद बखुद उसकी ज़बान में तब्दील हो गए. किताब की पहली इबारत पढ़ते ही मंसूर के कान में एक आवाज़ गूंजी जो कह रही थी मंसूर ये खज़ाना तुम्हारा हो सकता है लेकिन इसके लिए तुम्हें दिल और दिमाग दोनों का इम्तिहान देना होगा. अगर तुमने लालच की तो सब कुछ खो दोगे और अगर सही से अपने दिल और दिमाग का इस्तेमाल किया तो ये खज़ाना तुम्हें मालामाल कर देगा.
मंसूर का दिल खौफ़ से भरा हुआ था. वो सोच रहा था क्या ये मेरे लिए कोई आज़माइश है. उसने सोचा आगे ये वाकई में ख़ज़ाना है तो इसकी तमाम मुश्किलात का कोई न कोई हल तो ज़रूर होगा. लेकिन उसे इस बात का भी अंदाज़ा था की ये कोई मामूली खेल नही है. गली में अब भी ख़ामोशी छाई हुई थी और हवा में सर्दपन महसूस हो रहा था. मंसूर ने वो संदूक उठाया और अपने मकान में लौट आया. लेकिन आज नींद उसकी आँखों से बिलकुल ओझल थी.
बैचिनी के आलम में जब उसने किताब को खोल कर और पढ़ने की कौशिश की तो उसे मालुम हुआ की जंगल तक जाने के लिए उसे एक ख़ास रास्ते पर जाना होगा जो अलामुत के पुराने बाज़ार के पीछे एक ख़ुफ़िया दरवाज़े से शुरू होता है. लेकिन किताबा ने मंसूर को खबरदार किया था की इस सफ़र में खतरे पेश आयेंगे और उसे हर क़दम पर अपनी दानिशमंदी का मुज़ाहिरा करना होगा.
अगली सुबह मंसूर ने फैसला कर लिया की वो इस खज़ाने की तलाश में निकलेगा. मंसूर अपने साथ उस आईने और किताब को लेकर घर से चल पड़ा. वो सोच रहा था पता नही ये सफ़र उसकी ज़िन्दगी को किस तरह बदल देगा लेकिन इसी के साथ ये सफ़र उसके हौसले और निय्यत का भी इम्तिहान होगा. मंसूर किताब और आईने को साथ लेकर अलामुत के पुराने बाज़ार की जानिब रवाना हो गया. बाज़ार पहोंच कर मंसूर ने देखा की बाज़ार में बहोत भीड़ खरीद ओ फरोख्त के लिए जमा है. किताब में ब्यान करदा ख़ुफ़िया दरवाज़े का सिरा तलाश करना आसान नही था. किताब के मुताबिक़ ख़ुफ़िया दरवाज़ा एक पुरानी किले नुमा दूकान के पीछे था. काफी ढूंढने के बाद आखिर कार मंसूर को वो दूकान नज़र आई जो किला नुमा बनी हुयी थी.
मंसूर जब उस दूकान के करीब पहुंचा तो उसे वहां एक दुकानदार नज़र आया जिसकी आँखों में गहरी चमक थी. दुकानदार ने मंसूर को देखा और मुस्कुराते हुए बोला क्या तुम कुछ ख़ास तलाश कर रहे हो? मंसूर ने झिझकते हुए जवाब दिया जी मुझे एक रास्ता चाहिए जो इस किताब के मुझे बताया है. मंसूर की बात सुन दुकानदार कुछ देर ख़ामोश रहा, फिर आहिस्ता से कहने लगा ये रास्ता तुम्हें ज़रूर मिलेगा लेकिन याद रखना इस रास्ते के हर मोड़ पर तुम्हारे इरादे और निय्यत का इम्तिहान लिया जाएगा. अगर तुम्हारे दिल में ज़रा भी लालच हो तो वापस पलट आ जाना.
ये कह कर दुकानदार ने एक पुराना दरवाज़ा जो ज़ंग आलूद था खोला जो उस दूकान क पीछे छुपा हुआ था. दरवाज़ा खुलते ही मंसूर ने देखा की एक लम्बी मगर अँधेरी सुरंग थी जिसके आखरी सिरे पर कुछ मद्धम सी रौशनी नज़र आ रही थी. मंसूर ने गहरी सांस ली और कदम आगे बढ़ा लिया. सुरंग के अंदर जाते ही अजीब ओ गरीब आवाज़ें मंसूर को सुनाई देने लगी. दीवारों पर तरह तरह के नुकूश बने हुए थे. माहोल डरावना होने के बावजूद दिलकश नज़र आ रहा था. जैसे ही मंसूर आगे बढ़ा सुरंग का फर्श हिलने लगा और अचानक एक आवाज़ सुनाई दी को कह रही थी “पहला इम्तिहान इमानदारी या लालच”
थोड़ी देर बाद मंसूर के सामने ज़मीन से एक याकूत का संदूक नमूदार हुआ जिस पर लिखा था ये ख़ज़ाने से भरा हुआ है तूम चाहो तो इसे लेकर यहाँ से चले जाओ. मंसूर ने संदूक को गौर से देखा तो इसके अंदर सोने जवाहिरात नज़र आ रहे थे. उसके दिल में ख्वाहिश जगी के इसे ले ले. लेकिन उसे किताब की वो इबारत याद आई की लालच तुमसे तुम्हारा सब कुछ छीन लेगी.
कुछ देर सोचने के बाद मंसूर ने संदूक को छुए बगैर सर झुका कर आगे बढ़ने का फैसला किया. उसका आगे बढ़ना था की एक नया दरवाज़ा उसके सामने नमूदार हुआ. दरवाज़े के खुलते ही मंसूर ने देखा की उसके सामने एक बहोत घाटी है जिसका दुसरा किनारा बहोत दूर नज़र आ रहा था. घाटी के दरमियान एक पूल बना हुआ था और पूल के निचे आग बह रही थी.
मंसूर को इस पूल को पार करके दूसरी तरफ जाना था लेकिन हर कदम पर एक नई मुश्किल मंसूर का इंतज़ार कर रही थी. मंसूर ने पूल के किनारे खड़े हो कर एक लंबी सांस ली. पूल देखने में बड़ा कमजोर लग रहा था और निचे बहती हुई आग मंसूर के दिल को और भी जयादा खौफ़ज़दा कर रही थी. पूल के हर तख्ते पर अजीब ओ गरीब तहरीरें लिखी हुई थी जिन्हें मंसूर पढने की कौशिश कर रहा था.
पूल पर कदम रखते ही एक आवाज़ मंसूर के कानों से टकराई जो कह रही थी यहाँ तुम्हारी निय्यत और अक्ल का इम्तिहान लिया जाएगा. अगर खौफ़ और लालच में तुम मुब्तिला हुए तो पूल गिर जाएगा. मंसूर ने खुद को संभालते हुए पहले तख्ते पर कदम रखा. इस पर लिखा था “दो लोग तुम्हारी मदद के तलबगार है लेकिन तुम सिर्फ एक की मदद कर सकते हो. तो बताओ तुम किस का इन्तिखाब करोगे?”
अचानक मंसूर के सामने दो तसावीर ज़ाहिर हुई. एक बूढ़ी औरत थी जिसके चेहरे पर बे-बसी के आसार थे और दूसरा एक नौजवान था जो ज़ख़्मी हालत में ज़मीन पर पड़ा था. मंसूर ने सोचा अगर वो नौजवान को बचाता है तो हो सकता है वो शख्स अपनी ज़िन्दगी में कई और लोगों की मदद कर सकेगा, लेकिन बूढ़ी औरत की हालत भी रहम के काबिल थी. मंसूर ने चंद लम्हों के अंदर ही फैसला किया की नौजवान को बचाना ही ज़यादा अक्लमंदी होगी. जैसे ही मंसूर ने ये सोचा तख्ता रोशन हो गया और पूल का दूसरा हिस्सा उसके सामने खुल गया.
अब मंसूर दुसरे तख्ते की और बढ़ा. उसपर लिखा था दौलत और सुकून. इसी के साथ दो रास्ते ज़ाहिर हुए. एक रास्ते पर सुनेहरी सिक्कों के ढेर लगे हुए थे जबकि दुसरा रास्ता सुनसान और ख़ामोश नज़र आ रहा था. मंसूर को याद आया की किताब में लिखा था दौलत आरज़ी है जबकि सुकून हमेशा के लिए है. बगैर किसी हिचकिचाहट के मंसूर ने सुकून के रास्ते का इंतिखाब किया. जैसे ही मंसूर ने कदा आगे बढ़ाया पुल का वो हिस्सा भी रौशन हो गया और तीसरा हिस्सा ज़ाहिर हो गया.
तीसरे हिस्से पर पहोंचते ही उसे आवाज़ सुनाई दी जो कह रही थी अपना सबसे बड़ा खौफ़ बयान करो वरना पूल निचे गीर जाएगा. मंसूर को ये इम्तिहान सबसे मुश्किल लगा. उसने पुल के निचे बहती आग को देखा और अपने दिल में झांका. मंसूर ने अपनी आँखें बंद की और बुलंद आवाज़ में कहा में नाकामी से डरता हूँ और इस बात से के मेरी मेहनत, मेरी कोशिशें सभी रायगा न चली जाएँ. ये कहते ही वो हिस्सा भी रोशन हो गया और पूल का आखरी हिस्सा उसके सामने नमूदार हुआ जिसे मंसूर ने जल्दी से पार कर लिया. पूल के दुसरे सिरे पर पहोंचते ही वो एक बड़े और खुबसुरत बाग़ में आ गया जहां हर तरफ हरियाली और फूलों की महक मंसूर को मदहोश किये जा रही थी. बाग़ के बिच में एक और संदूक रखा हुआ था. संदूक के करीब एक तख्ती पर लिखा हुआ था यही तुम्हारा इनाम है लेकिन याद रखना इसे दिल से कुबूल करना होगा न के लालच से
मंसूर ने जैसे ही संदूक को खोला तो इसके अंदर कीमती जवाहिरात, सोने के सिक्के और एक छोटा अजीब शीशे का मर्तबान रखा हुआ था. मंसूर ने जैसे ही उस मर्तबान को छुआ तो उसमें से रौशनी निकली जो सारे बाग़ में फ़ैल गयी. मंसूर को उसी बूढ़े दुकानदार की आवाज़ सुनाई दी जो कह रहा था यही तुम्हारी असल दौलत है और ये तुम्हें तुम्हारी निय्यत के मुताबिक़ इनाम देगी. मंसूर ने उस मर्तबान को एहतियात से उठाया और संदूक बंद कर दिया. मंसूर जान चुका था की ये खज़ाना उसकी इमानदारी और हिम्मत की दैन है.
मंसूर मर्तबान को गौर से देखने लगा. उसके दिल में सवाल पैदा हुआ क्या ये वाकई जादुई मर्तबान है? क्या ये वही इनाम है जिसकी तलाश में वो यहाँ तक आया है. बाग़ में बैठ बैठे मंसूर ने उस मर्तबान को खोलने की कौशिश की. इस बार उस मर्तबान से आवाज़ आई “सोच समझ कर खोलना क्यूंकि तुम्हारी निय्यत ही फैसला करेगी के तुम्हें क्या मिलेगा.”
आवाज़ सुनकर मंसूर कुछ देर ख़ामोश हुआ और सबसे पहले उसने अपनी तमाम ख्वाहिशात और अपने ख्वाबों के बारे में सोचा. मंसूर अपने गाँव और लोगों की मदद करना चाहता था, उनके दुःख दर्द को दूर करना चाहता था, लेकिन उसके दिल में ये खौफ़ भी था की ये ताक़त कहीं उसे मगरूर, लालची और ज़ालिम न बना दें. आखिर कार उसने हिम्मत की और मर्तबान का उपरी सिरा खोल दिया. उसके खुलते ही उसमें से धुवां निकल कर आसमान पर फ़ैल गया. धुवां खत्म होने के बाद मंसूर के सामने एक नक्शा ज़ाहिर हुआ. ये नक्शा किसी और खजाने का पता दे रहा था. लेकिन इसपर किखा था ये खज़ाना सिर्फ उनके किये है जो दूसरों के लोए सोचते है.
मंसूर ने नक्शा उठाया और उसे गौर से देखा. उसपर अजीब से निशानात बने हुए थे. उन्हें समझने के लिए मंसूर को एक अक्लमंद शख्स की ज़रूरत थी. थोड़ी ही देर में उसी बाग़ में एक दरवाज़ा नमूदार हुआ. उस दरवाज़े के ऊपर लिखा था ये दरवाज़ा सिर्फ उनके लिए ही खुलेगा जो सच्चाई के रास्ते पर है. मंसूर ने बगैर किसी डर के दरवाज़े की तरफ कदम बढ़ाया. दरवाज़े के करीब पहोंचते ही दरवाज़ा खुद ब खुद खुल गया. मंसूर उस दरवाज़े से अंदर दाखिल हो गया. ये असल में एक गार थी जो अंधेरों में डूबी हुई थी. गार की दीवारों पर कई तरह के नक़्शे बने हुए थे और ज़मीन पर कई फटी पुरानी बोसीदा किताबें और हड्डियां बिखरी पड़ी थी.
मंसूर ने आगे कदम बढ़ाएं. हर कदम के साथ गार की दीवारें करीब आती जा रही थी जिससे मंसूर को सांस लेने में परेशानी होने लगी. कई घंटों की मेहनत के बाद वो ग़ार के आखरी कमरे में जा पहुंचा जहां एक पत्थर पर एक बहोत ही ज़ईफ़ बूढ़ा बैठा हुआ था. बूढ़े शख्स के हाथों मेंएक चिराग था जिसकी रौशनी पुरे कमरे को रौशन कर रही थी. बूढ़े ने मंसूर को देखा और मुस्कुरा कर कहा तुम वही जो जिसके बारे में पैशन गोई की गयी थी.
ये चराग तुम्हारी अमानत है लेकिन याद रखना इसका इस्तेमाल सिर्फ दूसरों की भलाई के लिए करना, मंसूर ने एहतराम से चराग को अपने हाथों में लिया और बूढ़े का शुक्रिया अदा किया. जैसे ही वो चराग को लेकर बाहर निकला उसने महसूस किया की ग़ार की तारीकी रौशनी में बदल रही है और उसका दिल सुकून से भर गया है. ग़ार से बाहर आकर मंसूर अपने गाँव की और चल पड़ा. उसके हाथ में जादुई चिराग था और दिल में एक नई उम्मीद जगमगा रही थी.
मंसूर जानता था की ये चराग महज़ एक ताकतवर चीज़ नही बल्कि ये उसकी आज़माइश है जो उसके इरादों और निय्यत को जांचने के लिए उसे दिया गया है. गाँव पहुँच कर मंसूर ने हर गरीब और परेशान हाल लोगों की मदद करनी शुरू कर दी. जो भी हीरे जवाहिरात वो अपने इस सफर से साथ लाया था वो लोगों की भलाई में खर्च करने लगा. कुछ ही वक़त में उसकी सखावत की शोहरत पुरे गाँव में फ़ैल गयी. बड़ी सी बड़ी परेशानी को वो उस चिराग के सामने खड़ा हो कर दिल में सोचता वो चीज़ उसके पास हाज़िर हो जाती.
लोगों को उसने अपने सफर का सारा हाल कह सुनाया और बताया की किस तरह सारी मंजिलें तै करके उसने जादुई चिराग हासिल किया है. लेकिन ये चिराग दिलों की निय्यत पर ही फैसला करता है. मंसूर के पास मौजूद चिराग की खबर पुरे गाँव में फ़ैल गयी. हर कोई उससे अपनी मुश्किलात के हल की दरख्वास्त करने आता. कोई बीमार था, कोई क़र्ज़ में डूबा हुआ था तो किसी के पास खाने को कुछ न था. मंसूर हर एक की मदद करता रहा. लेकिन कुछ ही वक़्त के बाद मंसूर ने महसूस किया की हर दफ़ा चराग का इस्तेमाल उसे जिस्मानी तौर पर कमज़ोर करता जा रहा है.
एक दिन गाँव के सबसे जयादा लालची ताजिर ने जमाल के पास आकर कहा मुझे अपने लिए एक बड़ी हवेली और बेशुमार खज़ाना चाहिए. मंसूर ने उसे समझाया के ये चिराग सिर्फ ज़रूरतमंदों के लिए है. लेकिन ताजिर ने इसरार किया और गुस्से से कहने लगा अगर तुमने मेरी ख्वाहिश पूरी न की तो मैं तुम्हें सख्त सज़ा दूंगा. मंसूर ने चराग की तरफ देखा और उससे कहा ये चराग तुम्हें उस चीज़ की ताक़त दे सकता है जिसकी तुम्हें ख्वाहिश है लेकिन लालच का इंजाम कभी अच्छा नही होता.
ताजिर ने चिराग को ज़बरदस्ती छिनने की कौशिश की. लेकिन जैसे ही ताजिर ने चराग को हाथ लगाया उसमें से आवाज़ आई जो कह रही थी लालच बुरी बला है. इसके बाद चिराग ने खुद को रोशन किया और एक तहरीर ज़ाहिर हुई जिसपर लिखा था ये चिराग़ सिर्फ उनके लिए है जो दूसरों की भलाई चाहते है.. ये वाकिया पुरे गाँव के लिए एक सबक़ बन गया. लोग जान गए के ताक़त और दौलत सिर्फ उस वक़्त मायने रखती है जब उसका इस्तेमाल नेकी के लिए किया जाए.
मंसूर ने चिराग को अपने साथ रखा लेकिन अब इसका इस्तेमाल सिर्फ इन्तेहाई ज़रूरत के वक़्त किया. जल्द ही गाँव में अमन और सुकून का दौर दौरा हो गया. लोग एक दुसरे की मदद करने लगे और गाँव खुशहाल हो गया. मंसूर को हमेशा याद रखा गया एक ऐसे शख्स के तौर पर जिसने अपनी नेक बख्ति और नेट नियति से सबकी ज़िन्दगी को बदल दिया.
मंसूर की कहानी बताती है हालात चाहे जितने भी ना-गवार क्यूँ न हो खुद पर ऐतेमाद रखना और आगे बढ़ते रहना ही ज़िन्दगी का असल मकसद है. दौलत मिलने के बाद भी खुद को झुकाए रखना और ज़रूरतमंदों की मदद करना ही असल इंसानियत है. लालच और खुद गर्ज़ी इंसान को बर्बाद कर देती है लेकिन नेक नियति और ख़िदमते खलक खुद को और दुनिया और आखिरत को भी संवार देती है.