
बहोत समय पहले की बात है, एक अज़ीम बादशाह हुआ करता था जिसे लोग मोहब्बत और इज़्ज़त से बादशाह सुलेयम कहते थे। वो सिर्फ़ एक हुक्मरान ही नहीं, बल्कि ऐसा रहनुमा था जो अपनी रिआया को अपनी औलाद की तरह चाहता था। उसके शहर में कोई भी भूखा नहीं सोता था, कोई मज़लूम इंसाफ़ से महरूम नहीं रहता था, और कोई यतीम मदद के बिना नहीं रहता था।
हर रात, जब पूरा शहर गहरी नींद में सो जाता, जब महल की रोशनियाँ धीमी पड़ने लगतीं, तब बादशाह सुलेयम अपनी शानो-शौकत को उतार फेंकता। वो एक आम आदमी के कपड़े पहनता, चेहरे पर हल्की गर्द मल लेता, और फिर चुपचाप महल के पिछले दरवाजे से बाहर निकल जाता। कोई उसे एक फ़क़ीर समझता, कोई एक मुसाफ़िर या कोई बेकरार मजबूर। बाज़ारों की तंग गलियों से लेकर गरीबों की बस्तियों तक, वो हर जगह जाता, हर किसी की बातें सुनता, और अगर कहीं किसी पर ज़ुल्म हो रहा होता या कोई भूख से तड़प रहा होता, तो उसके दिल में बेचैनी बढ़ जाती। अगले दिन सुबह जब वो दोबारा अपने शाहाना लिबास में तख़्त पर बैठता, तो वो उन्हीं मसलों पर इंसाफ करता जो उसने रात में देखे थे। लोग सिर्फ़ इतना जानते थे कि उनका बादशाह बहुत मेहरबान है, लेकिन ये सिर्फ़ कुछ खास वफादार वज़ीर जानते थे कि वो रातों को घूमकर अपनी रिआया का हाल ख़ुद देखता है। ये सिर्फ़ एक हुक्मरान का काम नहीं था, बल्कि एक वली का तरीका था—जो सिर्फ़ तख़्त पर नहीं, बल्कि लोगों के दिलों पर हुकूमत करता था।
उस रात भी, बादशाह सुलेयम रोज़ की तरह अपने शहर की गलियों में घूम रहा था। ठंडी हवा हल्के-हल्के बह रही थी, और शहर की ज़्यादातर बत्तियाँ गुल हो चुकी थीं। हर गली, हर मोड़ पर उसकी नज़र थी। कहीं कोई भूखा तो नहीं, कहीं कोई मजबूर तो नहीं, कहीं किसी पर ज़ुल्म तो नहीं हो रहा? वह एक सँकरी और अंधेरी गली से गुजर रहा था कि अचानक उसे धीमी-धीमी आवाज़ें सुनाई दीं। उसने कदम रोके और गौर से सुनने लगा। गली के कोने में चार लोग आपस में सर जोड़कर कुछ बात कर रहे थे। उनकी फुसफुसाहट में एक अजीब तरह की बेचैनी और चालाकी थी। बादशाह धीरे-धीरे उनके करीब हुआ और छुपकर उनकी बातें सुनने लगा।
वे चारों असल में चोर थे—शहर के सबसे शातिर और चालाक चोर। उनका नाम शाहिद, नसीर, अज़हर और करीम था। ये चारों अपने नए शिकार की योजना बना रहे थे।
शाहिद जो सबसे चालाक और तजरबेकार था, धीमी आवाज़ में बोला, “हमें इस बार बड़ी चालाकी से काम लेना होगा। पिछली बार कुछ गलती रह गई थी, लेकिन इस बार हमें कोई सुराग नहीं छोड़ना है।”
नसीर ने सिर हिलाया और बोला, “बिलकुल! शहर के सबसे अमीर सौदागर का माल हमारी झोली में होगा। बस हमें वक़्त का सही अंदाज़ा लगाना है।”
अज़हर ने अपने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई और बोला, “ज़रा धीरे बोलो, कोई हमें सुन न ले। मैंने सुना है कि बादशाह की जासूसी तेज़ हो गई है। पता नहीं, वह खुद भी किसी गरीब के भेस में घूमता रहता है।”
करीम ने हँसते हुए कहा, “अरे! वह बादशाह क्या करेगा? वह महल में बैठा ऐश करता होगा। हमें बस आज रात ही सही मौका मिलना चाहिए, फिर हम शाही सिपाहियों को भी चकमा दे सकते हैं।” बादशाह सुलेयम उनकी हर बात बड़े गौर से सुन रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। उसे अब यकीन हो चुका था कि शहर में यह चारों बड़े चोरों की टोली है। मगर सवाल यह था कि वह इन्हें कैसे पकड़वाए? रात गहरी होती जा रही थी। गली सुनसान थी, बस दूर कहीं एक कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आ रही थी। बादशाह सुलयम अब और इंतज़ार नहीं कर सकता था। उसने अपनी कमर सीधी की, अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाई और धीमे-धीमे उन चारों के करीब जाने लगा। वह इस तरह चल रहा था जैसे कोई आवारा मुसाफिर या कोई अजनबी हो जो किसी जगह की तलाश में हो।
जब वह उनके बिल्कुल पास पहुँचा, तो जानबूझकर ज़ोर से खँखार कर बोला,
“भाई लोगों, यहाँ क्या हो रहा है? रात के इस पहर इस सूनी गली में जमा होकर क्या कोई बड़ा शिकार पकड़ने की तैयारी कर रहे हो?” चारों अचानक चौकन्ने हो गए। अंधेरे में किसी अनजान शख्स की आवाज़ सुनकर वे थोड़े घबरा गए, लेकिन जब उन्होंने देखा कि यह बस एक साधारण सा, मैले-कुचैले कपड़ों में लिपटा आदमी है, तो थोड़ा बेफिक्र हो गए। शाहिद, जो इस गिरोह का लीडर था, आँखें सिकोड़कर बोला, “तू कौन है, बे? और तुझे क्या लेना-देना हमारे काम से?”
बादशाह ने हल्की हँसी हँसते हुए अपने फटे हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया और बोला, “अरे भाई, मैं भी तो तुम्हारी ही तरह हूँ। कौन कहता है कि सिर्फ तुम ही इस शहर में हुनरमंद हो? मैं भी एक ज़माने से यह धंधा कर रहा हूँ। बस, किस्मत कुछ ढीली पड़ गई थी, वरना इस वक़्त किसी शाही महल में आराम कर रहा होता।” नसीर ने शक भरी नज़रों से पूछा, “अच्छा? तो फिर बता, तूने अब तक कौन-कौन से बड़े काम किए हैं?” बादशाह ने थोड़ी संजीदगी से सिर हिलाया और एक गहरी साँस लेकर बोला, “भाई, बड़े नाम नहीं बताऊँगा, मगर इतना कह सकता हूँ कि मैंने ऐसे-ऐसे बड़े शिकार किए हैं कि तुम्हारी रूह काँप जाए। एक बार तो मैंने शाही खज़ाने तक पर हाथ साफ करने की सोची थी, मगर ऐन वक़्त पर पकड़ा गया।” अज़हर ने हँसते हुए कहा, “वाह! शाही खज़ाना! हाहाहा! तू कुछ ज़्यादा ही ऊँची उड़ान नहीं भर रहा?” करीम ने ज़ोर से ठहाका लगाया, “अच्छा! तो तू भी हमारे जैसा है! चल, अगर इतना ही बड़ा चोर है, तो सबूत दे।”
बादशाह ने चालाकी से उनकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा, “सबूत? भाई, सबूत तो काम के बाद दिया जाता है। अगर आज रात के काम में तुम मुझे शामिल कर लो, तो अपनी काबिलियत खुद दिखा दूँगा।” चारों चोर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। कुछ देर तक चुप्पी छाई रही। फिर शाहिद ने एक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और बोला, “ठीक है, आज रात हमारा इम्तिहान दे दे। अगर पास हो गया, तो हमारा हिस्सा बनेगा, वरना अपनी जान की फिक्र खुद कर लेना!” बादशाह ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया, “बात पक्की समझो, भाई!”
चांदनी रात थी, लेकिन गली में अंधेरा पसरा हुआ था। ठंडी हवा चल रही थी, और दूर किसी गली में कोई कुत्ता भौंक रहा था। बादशाह सुलेयम चोरों के गिरोह में शामिल होने के लिए पूरी तरह ढल चुका था। उसने चालाकी से अपनी पहचान छुपाए रखी थी। अब वह उन चारों चोरों के सामने खड़ा था और उनकी काबिलियत जानने के लिए बड़े इत्मिनान से सवाल करने लगा। बादशाह ने अपनी आवाज़ में एक हल्की दिलचस्पी दिखाते हुए कहा,
“अच्छा तो भाइयों, अगर मैं तुम सबका साथी बनने जा रहा हूँ, तो मुझे यह तो पता होना चाहिए कि किसका हुनर क्या है। आखिर जब मिलकर कोई बड़ा हाथ मारना है, तो अपनी ताकतें भी जाननी चाहिए, है ना?”
चारों चोरों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, फिर शाहिद सबसे पहले आगे बढ़ा। पहला चोर – शाहिद हल्की मुस्कान के साथ बोला, “मेरा हुनर सबसे नायाब है। मैं किसी भी जगह खड़ा होकर सिर्फ सूंघकर बता सकता हूँ कि सोना, हीरे-जवाहरात या कीमती खज़ाना कहाँ छुपा है। मुझे सोने-चाँदी की महक दूर से ही महसूस हो जाती है। इसलिए जब भी कोई बड़ा खज़ाना चुराने की बारी आती है, मेरी नाक सबसे पहले काम करती है।” बादशाह ने उसकी तरफ देखते हुए हल्की हँसी दबाई और सिर हिलाया, “वाह! बड़ा काम का हुनर है तुम्हारा।”
अब दूसरा चोर – नसीर आगे बढ़ा और थोड़ा गर्व से सीना तानकर बोला, “मैं जानवरों की ज़ुबान समझ सकता हूँ। कुत्ते, बिल्लियाँ, घोड़े—सबकी बातें सुन सकता हूँ। वे एक-दूसरे से जो कहते हैं, वह मैं साफ-साफ समझ सकता हूँ। अगर कहीं कोई कुत्ता चौकन्ना हो जाए, अगर कोई घोड़ा बेचैन हो जाए, तो मैं जान सकता हूँ कि खतरा है या नहीं।” बादशाह ने यह सुनकर हैरानी जताई, “ओह! तो मतलब तू कुत्तों की बातें भी समझ सकता है?” नसीर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, “हाँ, और ये हुनर कई बार हमारी जान बचा चुका है।”
अब बारी थी तीसरे चोर – अज़हर की। उसने अपनी जेब से एक नन्हीं-सी तार निकाली और इधर-उधर घुमाते हुए फख्र से कहा, “मेरा हुनर सबसे जरूरी है। मैं बिना चाबी के कोई भी ताला खोल सकता हूँ। चाहे वह लोहे का हो, पीतल का हो या शाही खज़ाने का सबसे मजबूत ताला हो, मेरे हाथ में आते ही खुल जाता है।” बादशाह ने चुटकी लेते हुए कहा, “तो भाई, तेरे हाथों में तो जादू है!” अज़हर ने हँसते हुए जवाब दिया, “बिलकुल! और यही हुनर हमें सबसे बड़े घरों और महलों तक ले जाता है।”
अब सबसे आखिर में चौथा चोर – करीम आगे आया। उसने अपनी आँखों में ग़ुरूर के साथ कहा, “मेरा हुनर सबसे ख़तरनाक और काम का है। मैं एक बार किसी को अंधेरे में देख लूँ, तो उसे दोबारा पहचानने में कभी गलती नहीं करता। चाहे वह साया में छिपा हो, चाहे रोशनी न हो, मगर मेरी आँखें उसे फिर भी पहचान लेती हैं।” बादशाह ने हल्के अंदाज़ में कहा, “अच्छा! तो इसका मतलब अगर तू किसी को रात में देख ले, तो वो सुबह लाख छुपे, मगर तेरी नज़रों से नहीं बचेगा? “करीम ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, “बिलकुल! बादशाह अब समझ चुका था कि ये चारों कितने शातिर और हुनरमंद हैं। मगर साथ ही अब उसके ज़ेहन में एक बेहतरीन चाल भी आ चुकी थी। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “वाह, तो मतलब हमारी टोली ज़बरदस्त है! अब बताओ, आज रात का निशाना क्या है?”
चारों चोर बादशाह की बातें बड़े गौर से सुन रहे थे। उन्होंने अपने हुनर तो बारी-बारी से बता दिए थे, मगर अब उनकी आँखों में सवाल था। नसीर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “अच्छा, हम सबने अपना हुनर बता दिया, मगर तूने अब तक कुछ नहीं बताया। बता तो सही, तेरा हुनर क्या है?” बाकी तीनों भी दिलचस्पी से उसकी तरफ देखने लगे। बादशाह ने हल्के अंदाज़ में हँसकर अपनी फटी हुई चादर को सीधा किया और गहरी आवाज़ में बोला, “भाइयों, मेरा हुनर थोड़ा अलग और बड़ा अनोखा है। मैं किसी भी मुसीबत में फँस जाऊँ, किसी भी मुश्किल घड़ी में पड़ जाऊँ, तो सिर्फ एक नज़र ऊपर उठाकर देखता हूँ और फिर अपनी दाढ़ी को हल्का सा हिला देता हूँ… और देखो, बस! सज़ा भी टल जाती है और किस्मत भी बदल जाती है!”
चारों चोर चौंक गए। शाहिद ने हैरानी से कहा, “क्या? सिर्फ नज़र उठाने और दाढ़ी हिलाने से सज़ा टल जाती है?” अज़हर ने तालियाँ बजाकर कहा, “भाई, ये तो बड़ा कमाल का हुनर निकला!” नसीर ने उत्सुकता से पूछा, “यानी अगर कभी पकड़े भी गए, तो बस नज़र उठानी है और दाढ़ी हिला देनी है, और मामला खत्म?” करीम ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “भाई, फिर तो हमें तुझसे सीखना पड़ेगा! हम चोरी करते हैं और अगर पकड़े जाएँ, तो बड़ी मुश्किल में फँस जाते हैं। मगर तेरा हुनर तो गजब का है! न ताले खोलने की झंझट, न खज़ाना सूंघने की ज़रूरत, न जानवरों की भाषा समझने की फिक्र। बस एक नज़र और एक झटका, और सब हल हो गया!” चारों ज़ोर से हँस पड़े। शाहिद ने बादशाह के कंधे पर हाथ रखकर कहा,
“भाई, हम सबमें सबसे अच्छा और सबसे फायदेमंद हुनर तो तेरा ही है! अगर तू हमारे गिरोह में आ जाए, तो हमें किसी चीज़ की फिक्र नहीं होगी!” बादशाह ने हल्की मुस्कान दबाए हुए सिर झुका लिया, जैसे उनकी बात से इत्तेफाक रखता हो। मगर उसके मन में अब एक नई चाल चलने का इरादा पक चुका था।
बादशाह ने एक गहरी साँस ली और फिर धीमी आवाज़ में कहा, “भाइयों, ये छोटी-मोटी चोरी से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर ज़िंदगी में असली ऐश चाहिए, तो सीधा बादशाह के खज़ाने पर हाथ साफ करते हैं! वहाँ इतना माल मिलेगा कि फिर किसी चीज़ की फिक्र नहीं करनी पड़ेगी। आराम की ज़िंदगी जिएँगे, और किसी के सामने झुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी! चारों चोरों की आँखों में लालच चमकने लगा। शाहिद ने जोश में कहा, “वाह! यह हुई न बात! अगर एक ही बार में इतना माल मिल जाए कि फिर चोरी करने की ज़रूरत ही न पड़े, तो इससे अच्छा क्या होगा? अज़हर ने सिर हिलाया, “बिलकुल! मेरा हुनर किसी काम का ही नहीं, अगर मैं शाही खज़ाने के मजबूत ताले न खोल सकूँ! करीम ने मुस्कुराकर कहा, “और मेरे जैसा शख्स अंधेरे में पहचान कर सकेगा कि कौन हमारे पीछे लगा है और कौन नहीं!” नसीर ने भी हामी भर दी, “हम सब तैयार हैं! अब बस जल्दी से वहाँ पहुँचें और काम तमाम करें! बादशाह ने हल्की मुस्कान दबाई। उसका इरादा कुछ और ही था, मगर फिलहाल वह उनकी हाँ में हाँ मिला रहा था।
अब वो सभी तेजी से शाही महल की ओर बढ़ रहे थे। गलियाँ सुनसान थीं, हवाओं में हल्की ठंडक थी, और रास्ता अंधेरे में डूबा हुआ था। लेकिन जैसे ही वो महल के करीब पहुँचे, एक कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा। कुत्ते की आवाज़ सुनते ही सब चौकन्ने हो गए। शाहिद ने तुरंत नसीर की तरफ देखा, क्योंकि वही था जो जानवरों की भाषा समझ सकता था। बादशाह ने भी उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, “ओ भाई, ये कुत्ता क्या बक रहा है? क्या कोई खतरा है?” नसीर ने थोड़ी देर तक कुत्ते की आवाज़ सुनी, फिर अचानक उसका चेहरा फक्क पड़ गया! उसकी आँखों में अजीब-सा डर झलकने लगा। “भाइयों… ये कुत्ता कुछ बहुत अजीब कह रहा है!” शाहिद ने बेचैनी से पूछा, “क्या कह रहा है? जल्दी बता!” नसीर ने काँपती आवाज़ में जवाब दिया, “ये कुत्ता कह रहा है कि… “तुम्हारे साथ इस वक़्त मुल्क का बादशाह चल रहा है!”
जैसे ही नसीर ने कुत्ते की बात बताई, एक पल के लिए माहौल में अजीब-सी ख़ामोशी छा गई। चारों चोर एक-दूसरे को देखने लगे, लेकिन फिर अचानक शाहिद ज़ोर से हँस पड़ा। ये क्या बेवकूफी की बात कर रहा है? बादशाह हमारे साथ चल रहा है? हद कर दी भाई तूने!” अज़हर ने भी ठहाका लगाया, “अबे, बादशाह कोई फ़कीर है क्या जो रात को हमारे साथ गली-कूचों में घूमेगा? उसकी तो सुनहरी पालकी होती है, सैकड़ों सिपाही उसके आगे-पीछे होते हैं। और तू कह रहा है कि वो हमारे साथ चोरी करने आया है?” करीम ने मज़ाक उड़ाते हुए नसीर के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराकर बोला, “भाई, तेरा हुनर तो वाकई गज़ब है! मगर लगता है इस बार तुझसे कुत्ते की भाषा ठीक से समझने में गड़बड़ हो गई।” नसीर ने खुद को संभालते हुए सिर हिलाया, “अरे, मैं तो बस बता रहा था जो कुत्ता कह रहा था… शायद उसने किसी और के लिए कहा हो।”
बादशाह, जो अब तक दिल ही दिल में मुस्कुरा रहा था, बड़ी संजीदगी से बोला, “अरे भाइयों, मुझे तो ये लग रहा है कि ये कुत्ता भूखा होगा। जब पेट खाली हो, तो दिमाग़ भी उल्टी-सीधी बातें करने लगता है। हम क्यों फ़ालतू में डर रहे हैं?”चारों ने सिर हिलाया और एक बार फिर हँस पड़े। शाहिद बोला, “बिलकुल सही कहा! चलो, अब इस बेकार की बात को छोड़ते हैं और असली काम पर ध्यान देते हैं। खज़ाना हमारा इंतज़ार कर रहा है!”सबने हामी भरी और बिना किसी शक-शुबहा के आगे बढ़ गए, लेकिन बादशाह के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। वह जानता था कि उसकी चाल धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है।
रात अपनी स्याही फैला चुकी थी। चारों चोर और उनके साथ भेष बदले बादशाह, अब शाही महल के भीतर घुस चुके थे। सबकी साँसें तेज़ चल रही थीं, मगर किसी को डर नहीं था—बल्कि उनके दिलों में जोश था, आँखों में लालच की चमक। जैसे ही वो महल में पहुँचे, शाहिद ने अपनी आँखें बंद कीं और ज़मीन की मिट्टी को उंगलियों से उठाकर सूँघने लगा। उसकी साँसें तेज़ हुईं और फिर उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “खज़ाना ज्यादा दूर नहीं है… इसकी खुशबू इस तरफ़ से आ रही है! मेरे पीछे चलो!” चारों ने आँखों में चमक लिए उसकी तरफ देखा और उसके पीछे-पीछे बढ़ने लगे। हर गलियारा पार करते हुए वे खज़ाने के करीब पहुँच रहे थे।
कुछ ही देर में वो एक बड़े दरवाज़े के सामने आ खड़े हुए। दरवाज़ा भारी था, मजबूत था, और उस पर एक बड़ा ताला लटका था। अज़हर आगे बढ़ा, अपनी जेब से एक पतली सी धातु निकाली, और ताले में घुसेड़ दी। उसकी उंगलियाँ बड़ी सफ़ाई से घूम रही थीं, और कुछ ही सेकंड में… “टक!” ताला खुल चुका था! अज़हर मुस्कुराकर बोला, “देखा? इस हुनर के आगे कोई भी ताला टिक नहीं सकता!” बाकियों ने दबी आवाज़ में तालियाँ बजाईं और फिर धीरे-धीरे दरवाज़े को खोला। जैसे ही दरवाज़ा खुला, अंदर की चमक-दमक देखकर सबकी आँखें चौंधिया गईं! हर तरफ सोने के सिक्के, हीरे-जवाहरात और बेशुमार दौलत पड़ी थी। करीम ने तो झट से एक चमचमाता हार उठा लिया और बोला, “भाइयों, ये दौलत हमारी हो चुकी है! अब ज़िंदगी ऐश से गुज़रेगी!” बादशाह भी वहाँ खड़ा सब कुछ देख रहा था। मगर उसके दिल में कोई और इरादा था।
घना जंगल, ऊँचे-ऊँचे दरख्त, रात की ख़ामोशी और बीच में एक टूटी-फूटी झोपड़ी यही उन चारों चोरों का ठिकाना था। रात के सफ़र की थकान के बावजूद, चारों की आँखों में चमक थी। उनके सामने ढेरों सोने-चाँदी के सिक्के, हीरे-जवाहरात और बेशुमार दौलत थी। चोरों ने जल्दी-जल्दी अपने हाथों में चमचमाते सिक्के लिए और हँसी-मज़ाक के बीच अपनी-अपनी झोलियाँ भरने लगे। करीम ने सोने की एक मोटी ज़ंजीर उठाई और हँसते हुए कहा, “भाइयों! हमने तो सोचा था कुछ ही मिलेगा, लेकिन ये तो हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा है! अब ज़िंदगी मज़े से कटेगी!”
अज़हर ने भी सोने के कंगन घुमाते हुए कहा, “अब कोई ताले खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी! ख़ुद के लिए ही इतना माल है कि पूरी उम्र आराम से निकल जाएगी!” बादशाह भी वहीं बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था। चारों ने अपने-अपने हिस्से बाँट लिए और फिर एक पल के लिए ठहरकर बादशाह की तरफ देखा। शाहिद ने सोने की एक भारी थैली उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “भाई, ये रहा तेरा हिस्सा! तू भी तो हमारे साथ था, तो तुझे भी बराबरी का माल मिलना चाहिए।” बादशाह ने हल्की मुस्कान दी और सिर हिलाया, “नहीं भाइयों, मैं तो बस यूँ ही तुम्हारे साथ आ गया था। मुझे इसकी ज़रूरत नहीं, तुम ही रख लो।” चारों ने हैरानी से उसे देखा। करीम ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, “अरे, तू क्यों मना कर रहा है? इतनी दौलत भला कौन ठुकराता है?” बादशाह ने ठंडी साँस लेते हुए कहा, “बस, मेरी तक़दीर में शायद इतना बड़ा माल नहीं लिखा था! तुम सब खुश रहो, मेरी दुआएँ तुम्हारे साथ हैं।” चारों ने कंधे उचकाए, उन्हें क्या! उनके हिस्से में और दौलत आ रही थी। वे हँस पड़े और सिक्के गिनने लगे।
फिर, बादशाह एक-एक चोर के पास गया और उनसे गले मिलते हुए उनके पते पूछने लगा। “शाहिद भाई, तुम ज़्यादातर कहाँ मिलते हो?” शाहिद ने हँसते हुए कहा, “अरे मैं तो बाज़ार के पास वाली सराय में अक्सर रहता हूँ। अगर फिर कभी कोई बड़ा हाथ मारना हो, तो वहीं आ जाना!” बादशाह ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया और फिर अज़हर की तरफ देखा, “और तुम अज़हर भाई?” अज़हर ने बड़े गर्व से कहा, “मेरा ठिकाना पुराने पुल के पास वाली गली में है। मैं हमेशा वहीं मिलूँगा!” फिर नसीर और करीम ने भी अपने ठिकाने बता दिए। बादशाह ने सबकी बातें ध्यान से सुनीं और मुस्कुराते हुए कहा, “चलो भाइयों, फिर जल्दी ही मुलाक़ात होगी। लेकिन अब मैं निकलता हूँ, थोड़ी नींद की ज़रूरत है।” चारों चोर अब तक पूरी तरह लूटे गए ख़ज़ाने में मशगूल हो चुके थे। उन्हें क्या पता था कि जिसे वो अपना साथी समझ रहे थे, वही उनका अपना बादशाह था.
बादशाह जब जंगल की तंग गलियों से होते हुए अपने महल की तरफ़ बढ़ा, तो उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उल्टा, वह हल्की मुस्कान लिए गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसने चोरों को सज़ा देने की बजाय, उनकी क़ाबिलियत पर ध्यान दिया था। “ये लोग भले ही चोर हैं, लेकिन इनके हुनर बेमिसाल हैं… अगर यही हुनर किसी नेक राह में लगाया जाए, तो क्या ये मेरी सल्तनत के सबसे क़ीमती सिपाही नहीं बन सकते?” बादशाह ने दिल ही दिल में सोचा। उसके ज़हन में उन चारों की तस्वीर उभरने लगी—
शाहिद—जिसकी नाक सोने की ख़ुशबू तक सूँघ सकती थी। क्या अगर उसे ख़ज़ाने की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा सौंपा जाए, तो कोई सोना चोरी कर सकेगा?
अज़हर—जो हर ताला खोल सकता था। अगर वह दुश्मनों के क़िले में घुसने के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो क्या वह जासूसी में कमाल नहीं कर सकता?
नसीर—जो जानवरों की भाषा समझ सकता था। अगर वह शाही घोड़ों और हाथियों की देखभाल करे, तो क्या सल्तनत का फ़ायदा नहीं होगा?
करीम—जिसकी नज़र अंधेरे में भी देख सकती थी। क्या वह बादशाह के लिए सबसे बेहतरीन ख़ुफ़िया जासूस नहीं बन सकता? बादशाह ने गहरी सांस ली और हल्का मुस्कुराया। “अगर मैं इन्हें पकड़ कर जेल में डाल दूँ, तो इनकी क़ाबिलियत बर्बाद हो जाएगी… लेकिन अगर इन्हें सही रास्ते पर डाल दूँ, तो ये मेरी सल्तनत के सबसे कीमती लोग बन सकते हैं।” उसने आसमान की तरफ़ देखा, चाँदनी चारों तरफ़ फैली हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे ख़ुदा भी उसकी इस सोच से राज़ी है। अब बादशाह के दिल में एक नया इरादा पक्का हो चुका था। वह सिर्फ़ उन्हें सज़ा देने नहीं, बल्कि उनकी ज़िन्दगी बदलने के लिए भी आगे बढ़ चुका था…
सुबह का सूरज निकला तो पूरे शहर में हंगामा मच चुका था। महल से एक बड़ी ख़बर आई थी, बादशाह का शाही ख़ज़ाना लूट लिया गया था! सारे वज़ीर, सलाहकार और दरबारी महल के भव्य दरबार में जमा थे। हर तरफ़ बेचैनी थी, हर कोई अपनी राय दे रहा था। ये ज़रूर कोई बाहरी गिरोह होगा, जो शहर के बाहर से आया होगा! हमें पूरे बाज़ार में छानबीन करनी चाहिए! हर दुकान, हर गली में तलाश करो! शायद कोई महल के अंदर का आदमी भी मिला हुआ हो! दरबार शोर से गूँज रहा था। हर कोई अपने-अपने सुझाव दे रहा था, मगर असली जवाब किसी के पास नहीं था। बादशाह अपने शाही तक़्त पर बड़ी ग़ैर मामूली शांति से बैठा था। उसकी आँखों में वो तेज़ चमक थी, जो किसी गहरी चाल का इशारा देती थी। फिर अचानक, उसने एक हल्की मुस्कान के साथ अपना हाथ उठाया और कहा “मुझे अपनी रिआया की फितरत अच्छी तरह पता है… मैं जानता हूँ कि ये चोरी किसने की है, और चोर इस वक़्त कहाँ हैं!”
ये सुनकर पूरा दरबार सन्नाटे में आ गया। सारे वज़ीर और सिपाही हैरानी से बादशाह की तरफ़ देखने लगे। हुज़ूर! क्या सच में आपको पता है? वज़ीर-ए-आज़म ने झुककर कहा। बादशाह ने गहरी नज़र घुमाई और बेहद इत्मिनान से चार नाम ले डाले “शाहिद, अज़हर, नसीर और करीम… ये चारों ही चोर हैं।” दरबार में खलबली मच गई! बादशाह ने बेपरवाही से हाथ हिलाया और सिपाहियों की तरफ़ देखा “हर एक चोर अपने ठिकाने पर ही मिलेगा। उन्हें पकड़ो और मेरे सामने हाज़िर करो।” सिपाही तुरंत हरकत में आ गए!
सबसे पहले, सिपाही बाज़ार की सराय पहुँचे, जहाँ शाहिद अक्सर बैठा करता था। उसे देखते ही चार सिपाहियों ने उसे घेर लिया। शाहिद की आँखें हैरत से फैल गईं “ये… ये तुम लोग क्या कर रहे हो?” चलो, तुम्हारी असलियत बादशाह तक पहुँच चुकी है!” एक सिपाही ने कहा और शाहिद को पकड़कर घसीटते हुए ले गए।
दूसरी टोली पुराने पुल की गली में पहुँची, जहाँ अज़हर चैन से बैठा सिक्कों को गिन रहा था। जैसे ही उसने सैनिकों को देखा, वो भागने लगा, मगर वो ताला खोल सकता था, तेज़ नहीं दौड़ सकता था! “अरे! मैं कुछ नहीं जानता!” अज़हर चिल्लाया, मगर सिपाहियों ने उसे भी पकड़कर बाँध दिया। इसी तरह, बाकी दोनों चोरों को भी उनके ठिकानों से खींचकर लाया गया। करीम ने भागने की कोशिश की, मगर अंधेरे में देखने की क़ाबिलियत ने उसे दिन में धोखा दे दिया। नसीर बेचारा समझ ही नहीं पाया कि ये सब इतनी जल्दी कैसे हो गया! अब दरबार में चारों चोर, रस्सियों से बंधे खड़े थे। उनके चेहरे पर हैरानी और डर साफ़ दिख रहा था। वो सोच भी नहीं सकते थे कि उनके नाम और ठिकाने इस तरह से बादशाह तक कैसे पहुँच गए होंगे!
चारों चोर दरबार के बीचों-बीच, रस्सियों में जकड़े खड़े थे। महल के ऊँचे स्तंभों पर टंगी मशालों की रोशनी उनके चेहरों पर पड़ रही थी, मगर उनके दिलों में अंधेरा छा चुका था। बादशाह पूरे रौब और शान के साथ अपने तख़्त पर बैठा था, उसके चेहरे पर वही पुरानी रहस्यमयी मुस्कान थी। अचानक, करीम की निगाहें बादशाह के चेहरे पर जमीं रह गईं! वो आँखें फाड़कर घूरने लगा, जैसे कोई पहेली हल कर रहा हो। कुछ ही पल में उसके चेहरे का रंग उड़ गया। “ये… ये तो वही है…!” वो बुदबुदाया। उसके दिमाग़ में पिछली रात का हर लम्हा तेज़ी से घूम गया—वही चाल, वही आवाज़, वही अंदाज़… और अब वही चेहरा सुल्तान के रूप में! उसने घबराकर बाकी साथियों की तरफ़ देखा और धीमी सहमी आवाज़ में बोला, “अरे, ये तो हमारा वही पाँचवाँ साथी है! जो रात को हमारे साथ ख़ज़ाना लूटने गया था! कुत्ता सही भौंक रहा था… ये कोई आम आदमी नहीं, बल्कि सुल्तान ख़ुद था!”
तीन चोरों ने करीम की बात को नकार दिया। शाहिद बोला: “तू पागल हो गया है क्या? ये कैसे हो सकता है कि बादशाह ख़ुद हमारे साथ चोरी करने जाए?” अज़हर ने सिर झटकते हुए कहा: “अबे, तुझे कोई गलतफ़हमी हुई है। बादशाह हमारी तरह कोई मामूली चोर नहीं हो सकता।” नसीर ने हँसकर कहा: “अगर ये ही सुल्तान होता, तो फिर ख़ज़ाना क्यों लूटता? और ऊपर से अपना हिस्सा भी हमें ही दे दिया! सोचना ज़रा…” तीनों चोरों ने करीम को झिड़क दिया, मगर करीम अब भी बादशाह को देख रहा था। “मुझे तुम्हारी बातें नहीं सुननी! मैं अंधेरे में एक बार जिसे देख लूँ, उसे दोबारा कभी नहीं भूल सकता… और मैं कहता हूँ कि यही हमारा पाँचवां साथी था!” करीम की आवाज़ अब काँप रही थी, मगर उसकी बातों में पूरा यक़ीन था। बादशाह बस मुस्कुरा रहा था… लेकिन अब सवाल ये था—क्या वो इस राज़ को कबूल करेगा?
दरबार अब भी सन्नाटे में डूबा था। सबकी निगाहें बादशाह और करीम पर टिकी थीं। करीम अब और आगे बढ़ा, उसकी आँखों में अब कोई शक नहीं था। उसने सीधे बादशाह की तरफ़ देखा और गहरी आवाज़ में कहा— “बादशाह सलामत! मैंने कहा था कि मैं अंधेरे में जिसे एक बार देख लूँ, उसे दोबारा कभी नहीं भूल सकता… और मैं आज भी अपनी बात पर क़ायम हूँ। मगर कल रात आपने हमारा हुनर अपनी आँखों से देखा, अब हम भी तो आपका हुनर देखना चाहेंगे!” ये सुनते ही दरबार में एक हलचल मच गई! लेकिन तभी… बादशाह ज़ोर से हँस पड़ा! उसकी हँसी पूरे महल में गूँज उठी। उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी, बल्कि वही पुरानी रहस्यमयी मुस्कान थी। फिर बादशाह ने कहा ठीक है तो मैं भी अपना हुनर तुमपर ज़ाहिर करता हूँ. फिर बादशाह ने धीरे-धीरे अपनी नज़र ऊपर उठाई… और अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा! बस इतना करना था कि सिपाहियों ने फ़ौरन आदेश समझ लिया! चारों चोरों की रस्सियाँ खोल दी गईं! पूरे दरबार में फुसफुसाहट शुरू हो गई। सबकी आँखें हैरान थीं कि आख़िर माजरा क्या है?
फिर बादशाह ने गहरी आवाज़ में कहा “इन चोरों को गिरफ़्तार करने की कोई ज़रूरत नहीं… ये सिर्फ़ चोर नहीं, बल्कि हुनरमंद लोग हैं। कल रात की दास्तान मैं खुद सुनाऊँगा!” अब सबकी निगाहें बादशाह पर थीं… बादशाह ने हल्की मुस्कान के साथ बीती रात के हर वाक़िए का सिर्फ़ इशारा किया—कैसे वो ख़ुद चोरों के साथ चोरी पर गया, कैसे उसने उनका भरोसा जीता, और फिर कैसे उसने हर एक का नाम और ठिकाना जान लिया… ये सुनते ही चारों चोरों की रूह काँप गई!
वो तुरंत बादशाह के क़दमों में गिर पड़े, आँसू बहाते हुए माफ़ी माँगने लगे। हमें माफ़ कर दीजिए, बादशाह सलामत! हमने आपको पहचानने में देर कर दी… मगर अब आपकी अमानत लौटाने आए हैं! अब हम अपनी आख़िरी साँस तक आपके वफ़ादार रहेंगे! उनकी आवाज़ में अब डर नहीं, बल्कि सच्चा पश्चाताप था। बादशाह ने मुस्कुराकर कहा: “तुम चोर तो हो, मगर तुम्हारे हुनर अनमोल हैं! अगर यही काबिलियत मुल्क की ख़िदमत में लगाओ, तो तुमसे बढ़कर कोई नहीं।”
फिर उसने हर एक को उसके हुनर के मुताबिक़ ऊँचे ओहदे पर फ़ाइज़ कर दिया—करीम (जो अंधेरे में किसी को भी पहचान सकता था)—बादशाह ने उसे सदर-ए-हिफ़ाज़त बना दिया, ताकि वो हर दुश्मन को दूर से ही पहचान ले और किसी भी बग़ावत या साज़िश को नाकाम कर सके।
शाहिद (जो बिना कुंजी के ताले खोल सकता था)—उसे मुहाफ़िज़-ए-ख़ज़ाना बना दिया, ताकि वो सल्तनत के ख़ज़ाने की निगरानी करे और उसे महफूज़ रखे।
अज़हर (जो जानवरों की ज़ुबान समझ सकता था)—उसे सदर-ए-अस्तबल और शिकारी दस्ते का सरबराह बनाया गया, ताकि वो शाही घोड़ों, हाथियों और जंगलात की देखरेख करे और किसी भी ख़तरे को पहले ही भाँप सके।
नसीर (जो सिर्फ़ सूंघकर सोने-चाँदी की जगह बता सकता था)—उसे निज़ाम-ए-दौलत का ज़िम्मेदार बनाया गया, ताकि वो हर ग़ैर मशहूर ख़ज़ाने और गुप्त दौलत का सुराग़ लगाए और सल्तनत को माली तौर पर और भी मज़बूत कर सके। चारों चोर जो कभी चोरी के लिए बदनाम थे, अब बादशाह के सबसे वफ़ादार और क़ाबिल सलाहकार बन गए! वक़्त गुज़रा और वही चार चोर बादशाह के सबसे वफ़ादार और कामयाब लोग साबित हुए। उन्होंने बादशाह की कई फतहों में उसका साथ दिया, उसकी सल्तनत को और भी बुलंदियों तक पहुँचाया! “जो हुनर गलत राह पर था, उसे सही रास्ता मिल गया और आज वो ही हुनर पूरी सल्तनत की ताक़त बन गया।” सच ही कहा गया है— इंसान ग़लत राह पर चले तो बदनाम होता है, और सही राह पकड़े तो एक तारीख़ बनाता है!
बेहतरीन सबक़:
इंसान की असल पहचान उसके फ़न और किरदार से होती है, ना कि उसके गुज़रे हुए अअमाल से। अगर किसी के अंदर कोई सलाहियत मौजूद हो, तो उसे सही राह पर डालकर मुल्क और क़ौम की तरक़्क़ी में इस्तेमाल किया जा सकता है।
हर शख़्स को दूसरा मौक़ा मिलना चाहिए। चारों चोरों के हुनर अगर बुराई में बरते जाते, तो वो हमेशा गुनहगार बने रहते, मगर बादशाह की सूझबूझ ने उन्हें नेक राह पर ला खड़ा किया और वो सल्तनत के सबसे क़ाबिल अफ़राद बन गए।
इल्म, हिकमत और अक़्ल से हर मुश्किल हल की जा सकती है। बादशाह ने ताजो-तख़्त की ताक़त का नहीं, बल्कि अपनी तदबीर और अक़्ल का इस्तेमाल किया और चारों चोरों को सुधार कर सल्तनत को और भी मजबूत बना दिया।
अच्छाई और बुराई में सिर्फ़ एक फ़ैसले का फ़ासला होता है। सही फ़ैसला इंसान को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुँचा सकता है, और ग़लत राह उसे तबाही की तरफ़ धकेल सकती है।
इसीलिए कहा गया है— हर शख़्स में कोई ना कोई हुनर होता है, बस ज़रूरत इसे सही राह पर लगाने की होती है! इसके साथ ही ये दास्तान अपने अंजाम को पहुँचती है, मगर इस कहानी का सबक़ हमेशा ज़िंदा रहेगा!
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