Nyay Ka Khazana, Sach, Raham, Aur Niyyat – Islamic Moral Story

सदियों पुरानी बात है अर्वाद नामी एक क़दीम शहर हुआ करता था. जहां अदहम नामी एक ताजिर रहा करता था. अदहम कपड़ों का कारोबार करता और अपनी ईमानदारी और समझदारी के लिए पुरे शहर में मशहूर था। उसका मिज़ाज पुर सुकून और ग़ौरो फिक्र वाला था. लेकिन उसके अंदर आज़माइशों का मुक़ाबला करने की बेमिसाल सलाहियत मौजूद थी। अदहम हमेशा ज़रूरतमंदों की मदद करता, लेकिन उसके हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे थे। कारोबार में मुसलसल नुक़सान हो रहा था, फिर भी उसने नेक दिली से ग़रीबों की मदद करना बंद नहीं की. लोग उसकी तारीफ़ करते थे, मगर कुछ उसे बेवकूफ़ समझते थे।

एक दिन, जब अदहम बाज़ार से वापस लौट रहा था, उसने देखा कि सड़क किनारे एक बूढ़ा दरवेश बैठा था। वो निहायत कमज़ोर और थका हुआ मालूम हो रहा था। अदहम ने बिना कुछ सोचे-समझे अपने झोले से रोटियाँ निकालीं और दरवेश को दे दीं। बूढ़े दुर्वेश ने रोटियाँ ले ली और अदहम को अपने क़रीब बिठाया. बूढ़े ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, तुम एक नेक दिल इंसान हो। क्या तुम अपनी तक़दीर आज़माना चाहोगे?”

अदहम ने ताज्जुब से उसकी तरफ देखा और पूछा “आपका क्या मतलब है, बाबा?” दुर्वेश ने कहा मैं एक बूढ़ा ज़ईफ़ शख्स हूँ लेकिन मैं अपने सीने मेंईसे राज़ दबाए बैठा हूँ जो हर किसी पर इसे वाज़ेह नही कर सकता. तुम एक नेक दिल और अमानतदार शख्स हो इसलिए मैं तुम्हें इस राज़ के बारे में बताना चाहता हूँ. दरवेश ने एक पुराना, और बोसीदा काग़ज़ का टुकड़ा निकाला और कहा, “ये एक पुर असरार ख़ज़ाने का नक़्शा है। मगर इसे हासिल करना आसान नहीं होगा। तुम्हें तीन सख़्त आज़माइशों से गुज़रना होगा। अगर तुम इनमें कामयाब होते हो, तो ये ख़ज़ाना तुम्हारा होगा। लेकिन अगर तुम नाकाम हुए, तो तुम्हारा माल तो ज़ाय होगा ही शायद तुम उस रास्ते दुबारा यहाँ कभी न आ सको.

अदहम दुर्वेश की बातें सुनकर कुछ देर ख़ामोश रहा. थोड़ी देर बाद उसने दुर्वेश से वो नक्षा माँगा. अदहम ने नक़्शे को देखा। ये एक घने और बहोत ही डरावने जंगल के दरमियान किसी मुक़ाम की तरफ इशारा कर रहा था। वो कुछ देर सोचता रहा, फिर उसने हिम्मत जुटाई और बोला, “मैं इसे आज़माना चाहता हूँ, बाबा।” दरवेश ने सर हिलाया और कहा, “याद रखना, तुम्हारी सबसे बड़ी आज़माइश तुम्हारा अख़लाक़ होगा। अगर तुम लालच, झूट और खुदग़र्जी से बच पाए, तो ख़ज़ाना तुम्हारा होगा।” दुर्वेश से नक्शा ले कर अदहम अपने घर की ओर चल पड़ा. पूरी रात वो उस नक्शे के बारे में सोचता रहा और उसके दिल में ख्याल आ रहे थे की क्या उसके दिल में किसी तरह का कोई लालच तो नही. अदहम इस बात से बखूबी वाकिफ था की माल ओ दौलत की हिर्स इंसान को बर्बादी की और ले जाती है. इन्सान की लालच का पेट सिवाय उसके कब्र की मिटटी के अलावा और कोई नही भर सकता.

अगली सुबह, अदहम नक़्शे के मुताबिक जंगल की तरफ रवाना हुआ। रास्ता बड़ा तंग और अँधेरी गलियों से गुजरता हुआ एक घने जंगल में जा पहुंचा. जंगल बड़ा की डरावना, मुश्किल और ख़तरनाक था। घने जंगल के दरमियान से गुज़रते हुए, उसे दरिंदों की आवाज़ें सुनाई दीं, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। कई बार वो रास्ता भटकने के करीब था, लेकिन अपनी अक़्लमंदी और नक़्शे की मदद से सही राह पर क़ायम रहा।

चलते-चलते उसकी मुलाक़ात एक बूढ़े शख्स से हुई, जो उसी जंगल के रास्ते पर जा रहा था। उस बूढ़े मियाँ ने कहा तुम कहा जा रहे होये रास्ता आगे बाधा खतरनाक है. बूढ़े मियां ने अदहम को लालच देने की कोशिश की और कहा, “तुम्हें ये सफ़र तय करने की क्या ज़रूरत है? मेरे साथ आओ, हम दोनों मिलकर कारोबार करें और दौलतमंद बन जाएँ। “अदहम को बूढ़े की ये पेशकश पसंद आई, लेकिन तभी उसने सोचा, “मैं अपने मक़सद से भटक नहीं सकता। “असली ख़ज़ाना सिर्फ मेहनत और सब्र से मिलता है।” वो उस बूढ़े मियाँ को छोड़कर आगे बढ़ गया।

कुछ घंटे चलने के बाद, उसे एक सुनहरी रोशनी नज़र आई। जब वो करीब पहुँचा, तो देखा कि एक बड़ा, चमचमाता संदूक उसके सामने रखा हुआ था।

संदूक के पास एक पत्थर की तख़्ती रखी थी, जिस पर लिखा था:
“अगर तुम इस संदूक को खोलोगे, तो तुम्हें फ़ौरन बेपनाह दौलत मिल जाएगी, लेकिन तुम्हारी अक़्ल हमेशा के लिए चली जाएगी।”

अदहम सोच में पड़ गया। ये बहुत लुभावना मौक़ा था, लेकिन उसने दरवेश की बात याद की। वो जानता था कि अगर उसने इस संदूक को खोला, तो वो असली ख़ज़ाने तक नहीं पहुँच पाएगा।

उसने गहरी सांस ली और ख़ुद से कहा, “सच्चा ख़ज़ाना सब्र और मेहनत से मिलता है, न कि आसान रास्तों से।”
वो बिना संदूक खोले आगे बढ़ गया। जैसे ही उसने आगे क़दम बढ़ाया, संदूक और रोशनी अचानक ग़ायब हो गए। वो समझ गया कि ये उसकी लालच और अक्लमंदी की पहली आज़माइश थी, जिसमें वो कामयाब रहा।

आगे बढ़ते हुए, अदहम को एक गुफ़ा दिखाई दी। जैसे ही वो अंदर गया, वहाँ उसे एक बूढ़ा आदमी मिला, जो लकड़ी के तख़्त पर बैठा था। उसकी आँखों में गहरी हिकमत थी। उसने अदहम से पूछा:

“अगर तुम सच्चे ताजिर हो, तो बताओ – क्या तुमने कभी झूट बोला है?”
अदहम झिझक गया। उसने कई बार अपने कारोबार में सच्चाई अपनाने की कोशिश की थी, मगर कुछ मौक़ों पर उसने अपने फ़ायदे के लिए छोटे-मोटे झूट भी बोले थे।

लेकिन वो जानता था कि ये आज़माइश उसकी ईमानदारी की है। उसने सर झुकाया और कहा, “हाँ, मैंने कभी-कभी झूट बोला है, मगर मैंने हमेशा अपनी इस ग़लती को सुधारने की कोशिश की है। अब मैं पूरी तरह सच के रास्ते पर हूँ।”

बूढ़े आदमी की आँखों में चमक आ गई। उसने सर हिलाया और कहा, बेशक “सच मानने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है। तुमने सच कहा, तुमने अपनी गलतियों पर मजीद झूठ बोलने की बजाए अपनी गलती और झूठ का एतेराफ किया. तुमने दूसरी आज़माइश पास कर ली है।”
गुफ़ा का दरवाज़ा खुल गया, और अदहम आगे बढ़ गया।

अब अदहम आख़िरी मरहले में पहुँच चुका था। दूर से उसे एक बड़ा पत्थर दिखाई दिया जिसके नीचे ख़ज़ाना दबा हुआ था। मगर जैसे ही वो पत्थर के पास पहुँचा, उसने देखा कि एक ज़ख़्मी आदमी वहीं पड़ा दर्द से तड़प रहा था।

वो प्यासा था और मदद की पुकार कर रहा था। अदहम के पास थोड़ा सा पानी बचा था, जिसे उसने अपने लिए रखा था। वो सोचने लगा – क्या उसे पहले ख़ज़ाना निकालना चाहिए या फिर इस आदमी की मदद करनी चाहिए?
मगर फिर उसे एहसास हुआ कि ख़ज़ाने से ज़्यादा अहम किसी की जान बचाना है। उसने फ़ौरन अपना पानी निकालकर उस आदमी को पिला दिया और उसके ज़ख़्मों की मरहम-पट्टी की।

जैसे ही उसने ये किया, वो आदमी अचानक ग़ायब हो गया और वहाँ एक नूरानी रोशनी फैल गई। वही दुर्वेश जिसने अदहम को वो कागज़ का टुकड़ा दिया था वो ज़ाहिर हुआ और बोला, “तुमने अपनी आख़िरी आज़माइश भी पास कर ली है। तुमने साबित कर दिया कि सच्चा इंसान वही है, जो दूसरों की भलाई को अपने नफ़ा और अपने फायदों से ऊपर रखे।” ये कह कर वो दुर्वेश वहां से गायब हो गया.

अचानक, ज़मीन हिलने लगी, और पत्थर के नीचे से सोने-चाँदी और अनमोल जवाहरात से भरी संदूक निकल आई। मगर अदहम अब जान चुका था कि असली ख़ज़ाना उसकी सचाई, रहमदिली और अक़्लमंदी है। उसने अहद किया की वो उस दौलत का इस्तेमाल ग़रीबों की भलाई के लिए करेगा और अपने शहर को और भी ज़यादा ख़ुशहाल बनाएगा।

ये कहानी कई सबक दे जाती है. पहला सबक़ “असल ख़ज़ाना सोना-चाँदी नहीं, बल्कि नेकनीयती, सच और रहम है।” दूसरा सबक “सच्चा ख़ज़ाना सब्र और मेहनत है. हालात चाहे जैसे भी इन्सान को अपनी मेहनत हमेशा जारी रखनी चाहिए और अपनी अज़्माइशों पर सब्र से काम लेना चाहिए. तीसरा सबक़ अपनी गलतियों को मानना ये सबसे बड़ी हिम्मत की बात है. चौथा और आखरी सबक़ सच्चा इंसान वही है, जो दूसरों की भलाई को अपने नफ़ा और अपने ज़ाती फायदों से ऊपर रखे।

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