
पेशे खिदमत है एक अनोखी दास्तान गरीब मछुआरे और एक ताक़तवर जिन्न की. सदियों पुरानी बात है “शहरे बिसात” में एक गरीब मछुआरा रहा करता था. कच्चा पक्का सा मकान, घर में एक बीवी और अपने 2 छोटे बच्चों के साथ रहा करता था. मछुआरे के नाम “इसरार” था. अपना घर चलाने के लिए वो मछलियाँ पकड़ता और उन्हें बेच कर अपना गुज़ारा कीया करता था. इसरार की आदत थी की वो दिन में सिर्फ 4 बार ही जाल पानी में डालता. इसी आदत की वजह से उसके घर कई कई दिनों तक चुल्हा जलने की नौबत न आती थी.
कई दिनों का फ़ाका हो जाने के बाद इसरार अपने मामुल के मुताबिक़ जाल डालने के लिए समन्दर कीनारे गया. 3 बार जाल पानी में फेंकने पर उसके हाथ कोई चीज़ न लगी. अपनी बदकीस्मती पर अफ़सोस करता हुआ वो आसमान की तरफ देखने लगा और अपनी बे-बसी की शिकायत करने लगा. उसे अपने भूखे बच्चों और बीवी की याद मानों सताने लगी. उसने सोचा की अब ये एक आखरी बार जाल पानी में फेंकना है अब की बार अगर मछली जाल में न फंसी तो अपने घर वालों के लिए क्या लेकर जाऊंगा.
यही सोच कर उसने अपना जाल पानी में फेंका. कुछ देर बाद जब उसने जाल पानी से बाहर निकाला तो क्या देखता है की उसके जाल में एक क़दीम ज़माने की सुराही उसके जाल में फंसी हुई है. वो धात की एक अजीब बोतल थी. जिसके मुंह पर मुहर लगी हुई थी. इसरार ने जाल से उस सुराही को बाहर निकाला और उसपर लगी मुहर को हटाकर उसका मुंह खोल दिया. सुराही का मुंह खुलते ही उसके अंदर से धुआं निकलना शुरू हो गया.
अभी कुछ ही देर गुजरी थी की इसरार के सामने एक कवि, ताकतवर और बड़ी ही जसामत वाला जिन्न उसके सामने मौजूद था. जिन्न की गरजदार हंसी और उसका रंग ओ रूप देखकर इसरार के जिस्म में मानों जान ही न बची हो. इसरार ने ब-मुश्किल जिन्न से सवाल कीया ए जिन्न! तू कौन है और इस सुराही के अंदर क्यों क़ैद था? इसरार की बात सुन कर जिन्न इसरार की तरफ मुतवज्जा हुआ और कहने लगा. इसका जवाब मैं तुझे बाद में दूंगा. लेकीन इससे पहले में तुझपर एक एहसान करना चाहता हूँ.
इसरार जिन्न की बातें सुनकर सोचने लगा शायद ये जिन्न मेरी गरीबी दूर करने वाला है. मुझे माल ओ दौलत से नवाज़ना चाहता है. उसने जिन्न से कहा मैं जानता हु तू मुझे माल-ओ-दौलत देना चाहता है. मेरी तंग-दस्ती को दूर करना चाहता है. जिन्न ने कहा नही, मैं तुझपर ये एहसान करना चाहता हूँ की तू जिस तरह मुनासिब समझे मैं तुझे मार दूंगा. जिन्न की ये बात सुनकर इसरार जिन्न के क़दमों में गिर गया. उससे अपनी जान की भीख मांगने लगा. जिन्न की बातें सुनकर इसरार ने कहा आखिर तू मुझे क्यों मारना चाहता है, मैं ने तो तुझे आज़ादी दी है. क्या एहसान करने का यही सिला मिलता है? लेकीन जिन्न अपनी बात पर कायम रहा. उसने इसरार से कहा देर न कर ए आदम-ज़ात. जल्द अज़ जल्द बता तुझे कीस तरह मारू?
जिन्न की बात सुनकर इसरार ने कहा ए जिन्न अगर तु मुझे मारना चाहता है तो ठीक है, लेकीन अगर मैं तुझे दो ऐसी कहानियां सुनाऊं जो तुझे खुश कर दें तो क्या तू मेरी जान बख्श देगा? इसरार की बात सुनकर जिन्न ने हंसते हुए कहा मुझे तेरी कहानियाँ सुनने में कोई हर्ज़ नही. मैं सदियों से इस सुराही में बंद था. अगर तू मुझे खुश कर दें और तेरी कहानी सबक आमोज़ हुई तो मैं तेरी जान बख्श दूंगा और तुझे ज़िन्दगी का एक सबक़ भी ज़रूर दूंगा.

इसरार ने अपनी कहानी का आगाज़ करते हुए कहा ये कहानी है पांच दिरहम और कभी हार न मानने के जज़्बे की. बहोत पुरानी बात है मीज़ान में एक बादशाह हुआ करता था. जिसका नाम बिन यामिन था. एक दिन बादशाह बहोत फिक्र मंद अपने मसनद पर बैठा हुआ था. उसके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. आँखों से बहोत उदासी छलक रही थी जैसे कोई चीज़ उसे परेशान कर रही हो. वो मायूसी से अपने इर्द गिर्द देख रहा था. बहोत कोशिश के बाद भी जब उसकी तबियत में सुधार न हुआ तो उसने अपने वज़ीर युनुस को बुलवाया.
बादशाह का हुक्म पाते ही युनुस फौरन खलीफा की खिदमत में हाजिर हुआ. बादशाह ने अपने ख़ास वज़ीर को अपना हाले दिल सुनाया और कहा की ऐसी कोई तरकीब बताओ की मेरी हालत ठीक हो जाए. ये सुनकर युनुस गहरी सोच में डूब गया, कुछ देर बाद उसने खलीफा से कहा हुज़ूर इसका तो मुझे एक ही हल नज़र आ रहा है, क्यों ना हम भेस बदलकर ऐसी जगह जाएं जहां हमारी आम रिआया बिल्कुल सादा जिंदगी गुज़ारती है. वो लोग कभी फिक्र मंद और मायूस नज़र नहीं आते. हो सकता है वहां जाकर आप सारे गम भूल जाए और दोबारा खुश और खुर्रम नजर आने लगे. खलीफा ने वजीर की राय को बहोत पसंद कीया. उसने अपने हब्शी गुलाम जिसका नाम बशीर था उसको बुलावा भेजा. बशीर भी फौरन हाजिर हो गया और इस तरह वो तीनों रात के अंधेरे में भेस बदलकर महल से बाहर निकल गए.
रात गुजरती जा रही थी और वो तीनों इधर-उधर भटक रहे थे. अचानक उन्हें दूर से कीसी के गाने की आवाज़ सुनाई दी, गीत बहोत प्यारा था और गाने वाले की आवाज़ बहोत सुरीली और मीठी थी. गीत के एक-एक लफ्ज़ से खुशी और मुसर्रत का इज़हार हो रहा था. वो तीनों उस तरफ बढ़े जिधर से आवाज़ आ रही थी. कुछ देर बाद वो एक टीले के पास पहुंचे, सितारों की रोशनी में उन्होंने देखा की टीले को काटकर सीढियां बनाई गयी हैं और ऊपर एक मामूली सा घर बना हुआ है. टीला बहोत ऊंचा नहीं था इसलिए जल्द ही वो तीनों ऊपर पहुंच गए.
मकान की खिड़की खुली हुई थी और अंदर एक शख्स दोनों हाथों में कांच के टुकड़े लिए उन्हें बजा बजाकर खूब मसरूर होकर गा रहा था. खलीफा ने कहा यकीनन मेरे दुख का इलाज यही है. खलीफ़ा ने बशीर से कहा इस शख्स को आवाज़ दो की वो हमें अंदर आने दें. बशीर ने दरवाज़ा खटखटाया. कीसी ने फौरन खिड़की में से सर निकाल कर गुस्से से पूछा कौन बदतमीज है जिसने मेरे गाने में खलल डाला? क्या चाहते हो मुझसे?
खलीफा ने जवाब दिया हम लोग ताजिर हैं और बहोत दूर से आए हैं, अगर आप इजाज़त दें तो हम सिर्फ रात को कुछ देर तक यहां आराम करें और सोए. कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला और उनके सामने मकान का मालिक खड़ा था. उसने कहा तुम लोग मुझे ताजिर नज़र नहीं आते. खैर तुम लोग अंदर आ सकते हो लेकीन याद रखना मुझसे कुछ खाने पीने के लिए मत मांगना और मैं अपनी शराब का एक कतरा भी तुम्हें नहीं दूंगा. एक बात और याद रखो तुम तीनों वादा करो की यहां जो कुछ देखोगे और सुनोगे उसके बारे में यहां से जाने के बाद कीसी से कुछ नहीं कहोगे और ना मेरे मुताल्लिक कीसी से कुछ पूछोगे.
तीनों अंदर दाखिल हुए. खलीफा, बशीर और युनुस एक कीनारे खामोशी से बैठ गए. उनसे कुछ दूर एक दस्तरख्वान बिछा हुआ था जिस पर भुना हुआ गोश्त, अलग अलग कीस्म के फल, मिठाइयां और एक बड़ी सी शराब की बोतल रखी हुई थी. सुबह होने को थी. मकान का मालिक दस्तरख्वान पर रखी हुई तमाम चीजें साफ कर चुका था और शराब की बोतल भी बिल्कुल खाली हो चुकी थी. खलीफा ने हिम्मत करके उससे पूछा जनाब आखिर आप हैं कौन? आप तो उम्दा खाने खाते हैं और आला दर्जे की शराब पीते हैं?
मेज़बान ने खलीफा को घूरते हुए कहा मुझसे कोई सवाल मत पूछो. लेकिन कचु वक़्त गुजरने के बाद अचानक उसका लहजा बदल गया और वो नरम लहजे में कहने लगा मैं अपने बारे में सब कुछ बता दूंगा. मेरा नाम कासिम है और मैं एक लोहार हूं. मैं तकरीबन 20 सालों से मीज़ान में लोहार का काम कर रहा हूं और सुबह से शाम तक पांच सात दीरहम रोज़ाना कमा लेता हूं. दिनभर काम करने के बाद जब मैं घर जाने लगता हूं तो सारी रकम खर्च करके मैं अच्छे-अच्छे खाने और एक कीमती शराब की बोतल खरीद लेता हूं. घर पहुंचकर मैं पहले कुछ देर आराम करता हूं, आराम कर लेने के बाद झूम झूम कर गीत गाने लगता हूं, उसके बाद कुछ देर फिर आराम करता हूं और फिर नहा धोकर खाने के लिए बैठ जाता हूं.

मैं जो कुछ खरीद कर लाता हूं सब खा जाता हूं. मैं बहोत खुश खुराक हूं, मेहनत भी तो इतनी ही करता हूं. खाने के बाद बोतल की सारी शराब पीकर बे-खबर सो जाता हूं, और फिर सुबह मेरी आंख खुलती है और मैं अपना काम करने के लिए शहर रवाना हो जाता हूं. मैं दिन भर सिर्फ काम करता हूं और कुछ खाता पीता नहीं हूं यही मेरा मामूल है. मैं जो शराब पीता हूं उसमें नशा नहीं होता बल्कि उससे ताक़त हासिल होती है और अच्छी नींद आती है.
खलीफा ने कहा अगर तुम्हें कल कुछ काम ना मिले तो फिर क्या करोगे. कासिम ने खलीफ़ा को घूरते हुए देखा और कहा कैसी बात करते हो अगर तुम्हारी बात सच साबित हुई और ऐसा हुआ तो मैं तुम्हें ढूंढ निकालूंगा और फिर तुम्हारा क्या हशर होगा इसकी खबर सारे मीज़ान में फैल जाएगी. खलीफा ने हंसते हुए कहा लेकीन हम लोग तो गैर मुल्की ताजिर हैं, हम तुम्हें कीस तरह नुकसान पहुंचा सकते हैं. सुबह होने से कुछ वक़्त पहले खलीफा और उसके साथी बाहर निकल आए. उनकी बातें सुन कासिम उन्हें बुरा भला कहता रहा और चिंखता चिल्लाता रहा. कासिम की बदजुबानी और बुरे सलूक से खलीफा बहोत लुत्फ अंदोज़ हुआ, उसने कासिम को मजा चखाने की ठान ली.
दूसरे दिन खलीफा ने शहर में ऐलान करा दिया की आज से तीन दिनों तक तमाम लोहारों की दुकानें बंद रहेंगी ये खलीफा का हुकम है और जो भी इस हुक्म की खिलाफ वर्ज़ी करेगा उसकी गर्दन उड़ा दी जाएगी. कासिम जब शहर पहुंचा और उसने ये खबर सुनी तो फौरन उसका ध्यान उस मेहमान की तरफ गया जिसने उसे काम ना मिलने की बात कही थी, लेकीन वो उसे कहां ढूंढता फिरता. वो सर झुकाए मायूस सीधा अपने घर की तरफ चल पड़ा. अभी कासिम उस रास्ते से गुज़र रहा था जहां हमाम खाने बने हुए थे और लोग रोजाना वहां जाकर गुसल करते और शाम को बदन पर मालिश करवाते, इस तरह हमाम खाने वाले की अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी.
अचानक उसके कानों में आवाज़ आई अरे भाई कासिम इतने उदास उदास कहां जा रहे हो? कासिम ने मुड़कर देखा हमाम खाने के दरवाजे पर उसका पुराना दोस्त खड़ा हुआ था. कासिम ने उसे सारा हाल कह सुनाया. उसने कहा इसमें फिक्र करने की क्या बात है तीन दिन तुम मेरे यहां मेरे साथ हमाम खाने में काम कर लो. कासिम राजी हो गया, वो हमाम में लोगों के हाथ पांव धोता और मालिश करता रहा, इस काम के लिए उसे पांच दीरहम शाम को मिल गए और वो हस्बे मामूल तमाम चीजें खरीदकर अपने घर पहुंच गया. उसने दिल में सोचा हमाम खाने में काम करना कीतना आसान है और आमदनी भी अच्छी हो जाती है. अब मैं लोहर का काम हरगिज़ नहीं करूंगा. रात हो गई थी और चांद आसमान पर पूरी आबो ताब से चमक रहा था.
कासिम की खिड़की रोशन थी और वो हमेशा की तरह झूम झूम कर गा रहा था. इसी दौरान में दरवाजे पर फिर दस्तक हुई. कासिम ने दरवाजा खोला उसके सामने वही तीनों ताजिर खड़े हुए थे. उन्हें देखकर कासिम का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो गया. उसने तीखे लहजे में कहा आओ आओ मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. तीनों अंदर दाखिल होकर बैठ गए. खलीफा यही सोच रहा था की लोहारों की तमाम दुकाने बंद कर देने के बावजूद उसके पास मौज उड़ाने के लिए रकम कहां से आ गई? अभी वो कासिम से कुछ पूछना ही चाहता था की कासिम ने हाथ के इशारे से उसे मना करते हुए कहा ज़रा ठहरो मुझे ज़रा खा पी लेने दो फिर कुछ पूछना.
दस्तरख्वान तो पहले से ही सजा हुआ था. आज तो दस्तरख्वान पर मुर्गे मुसल्लम, तीतर बटेर, तरहा तरह के फल मिठाइयां और शराब की बोतल नजर आई. कासिम खानों पर टूट पड़ा, खाना खत्म करने के बाद उसने बोतल की सारी शराब पी ली. धीरे-धीरे उसका चेहरा खिलने लगा. कासिम ने अपने तीनों मेहमानों को जी भरकर गालियां दी और बुरा भला कहा. फिर उसने खलीफा से कहा तुम तो बिल्कुल काली ज़ुबान वाले हो, तुमने कल रात जो कहा था वही आज हो गया. कासिम बहोत देर तक अपनी बाते बोलता रहा जब वो ख़ामोश हुआ तो खलीफा ने उससे पूछा लोहारों की दुकान तो तीन दिनों के लिए बंद कर दी गयी है फिर तुम्हारे पास पांच दिरहम कहां से आ गए? कासिम ने तंजिया हंसी के साथ कहा आज मैंने एक हमाम खाने में काम कीया और बड़ी आसानी से मुझे पांच दिरहम मिल गए. कासिम ने सच बात कह दी, खलीफा ने फिर कहा और अगर खलीफ़ा ने हमाम खाने भी बंद करा दिए तो?
अब तो कासिम भड़क उठा, उसने गरज कर कहा तुम तीनों इसी वक्त मेरे घर से निकल जाओ, मुझे पूरा यकीन है की अगर खलीफा ने हमाम खाने भी बंद करवा दिए तो तुम्हें बहोत खुशी होगी, चलो निकलो यहां से. कासिम बहोत गुस्से में था तीनों ने बड़ी मुश्किल से उसे समझा बुझाकर वहां रात गुजारी और सुबह होने से कुछ वक़्त पहले ही तीनों वापस महल में पहुंच गए. महल में पहुंचते ही खलीफा ने कासिम को फिर सज़ा देने की ठान ली. उसने उसी दिन फिर ऐलान करवा दिया की मीज़ान के तमाम हमाम खाने तीन दिनों तक बंद रहेंगे. मीज़ान में जगह-जगह यही गुफ्तगू हो रही थी.
कासिम भी शहर में पहुंच गया, उसे इस बात का बहोत अफसोस था की क्यों उसने रात को तीनों मेहमानों से हमाम खाने वाली बात कह दी, आखिर वही हुआ जो उस काली ज़ुबान वाले ताजिर ने कहा था. लेकीन अब अफसोस करने से क्या फायदा जो होना था सो हो गया. अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुक गई खेत. कासिम ने सोचा की अब उसे कोई और काम तलाश करना चाहिए ताकी आज के लिए पांच दिरहम का इंतजाम हो सके. वो दरबदर भटकता रहा लेकीन उसे कोई काम ना मिला वो मायूसी के आलम में अपने घर पहुंचा. उसकी नज़र घर के कोने में पड़े हुए एक लंबे कपड़े के टुकड़े पर पड़ी. कपड़ा सुफैद और उस पर सुर्ख रंग की धारियां बनी हुई थी. कासिम ने फौरन वो कपड़ा उठा लिया और उस कपड़े को बाज़ार में फरोख्त करने का फैसला कर लिया. उसे उम्मीद थी की कपड़ा पांच दीरहम में फरोख्त हो जाएगा.
वो कपड़े का लंबा टुकड़ा लेकर कपड़े के बाज़ार की तरफ चल पड़ा. रास्ते में एक दीनी मदरसा था, कासिम ने मदरसे के गुसल खाने में गुसल कीया और कपड़े को भी धो लिया, उसने गीले कपड़े को सुखाने के लिए अपने साफे पर लपेट लिया. वो कपड़े के बाजार में उस तरफ पहुंचा जहां उसे इस धारी वाले कपड़े की अच्छी कीमत मिल सकती थी. वो बाजार में एक जगह खड़ा था की एक औरत तेज तेज कदम उठाती हुई उसके पास आई और बोली जनाब आप तो क़ाज़ी की अदालत के मुशीर हैं मेहरबानी करके मेरा मुकदमा क़ाज़ी साहब की अदालत में पेश कीजिए.
इत्तेफ़ाक की बात ये थी की कासिम अपने साफे पर जैसा सुफैद धारी वाला कपड़ा लपेटे हुए था बिल्कुल उसी तरह अदालत के मुशीर भी सर पर साफे की तरह लपेटे रहते थे. औरत ने गलती से लोहार को मुशीर समझ लिया. कासिम समझ गया की औरत ने उसे मुशीर समझ लिया है लिहाजा इस मौके से पूरा फायदा उठाना चाहिए. उसने बिल्कुल मुशीरों के अंदाज़ में कहा कहो क्या बात है मैं तुम्हारी हर तरह से मदद करूंगा.
औरत ने कहा मेरा शौहर एक सुतार है. मुझसे शादी करते वक्त उसने कहा था की वो मुझे रोज़ाना पांच दीरहम खर्च के लिए देगा लेकीन वो हमेशा मुझे एक दिरहम ही देता है. मैं तो परेशान हो गई हूं, कैसे घर का खर्च पूरा करूंगी? कासिम ने गुस्से होकर कहा कहां है तुम्हारा शौहर? मैं उसे ऐसी सज़ा दिलवाउंगा की वो तुम्हें रोज़ाना मुकर्रर रकम अदा करने लगेगा. औरत ने कहा मेरी शिकायत नामे पर नाएब काजी के दस्तखत तो ले लीजिए. कासिम ने कहा मैं ही नाएब काजी हूं. ये कहकर उसने औरत के शिकायत नामे पर दस्तखत कीए और औरत से पूछा तुम्हारे शौहर की दुकान कहां है? औरत ने कहा ये गली जहां दाएं जानिब मुड़ती है वहीं कोने पर उसकी दुकान है. कासिम ने कहा मैं अभी उसे पकड़ कर लाता हूं. औरत ने खुश होकर कासिम को दो दिरहम दिए और कासिम औरत को उसी जगह ठहरने का कहकर तेजी से आगे बढ़ गया.
गली की दाई जानिब मुड़ते उसे दुकान पर काम करता हुआ वो सुतार नज़र आया. कासिम ने झपट कर उसे पकड़ा और अपनी पीठ पर लादकर दूसरी गली में घसीट लाया. वो शख्स चिल्ला रहा था अरे भाई कौन हो तुम और मुझे कहां लिए जा रहे हो? कासिम ने गरजदार आवाज़ में कहा मैं तुम्हें क़ाज़ी की अदालत में ले जा रहा हूं. तुम अपनी बीवी को वादे के मुताबिक रोज़ाना पांच दिरहम क्यों नहीं देते. मुझे जानते हो मैं नायब काजी हूं.
वो शख्स डरते डरते बोला खुदा के लिए मुझपर रहम करो. मैं वादा करता हूं की आज से रोज़ाना अपनी बीवी को पूरी रकम अदा करूंगा और उससे कभी झगड़ा नहीं करूंगा. कासिम ने उसे अपनी पीठ से निचे उतारते हुए कहा और मेरा मुआवज़ा कौन देगा? उसने कहा इस वक्त तो मेरे पास तीन दिरहम है यही ले लो. कासिम ने कहा ठीक है अब इसके बाद अगर मैं कोई शिकायत सुनूंगा तो मैं तुम्हें कैद खाने में ही पहुंचा दूंगा. जाओ भागो यहां से और अपना काम करो.
पांच दिरहम लेकर कासिम ने रोज़ाना की तरह रात के खाने का इंतजाम कीया, शराब की बोतल खरीदी और अपने घर की तरफ चल पड़ा. इस मामले को सुलझाते सुलझाते शाम हो चुकी थी. रात होने तक वो घर पहुंच गया. कासिम बहोत खुश और दिल ही दिल मेंसोच रहा था देखता हूं की खलीफा काम करने के कौन-कौन से रास्ते बंद करता है और हां आज मैं उन तीनों ताजिरों को बता दूंगा की मैं कीस मिट्टी का बना हुआ हूं. मुझे कल की कभी फिक्र नहीं रहती, मैं बस आज का सोचता हूं और हमेशा खुश रहता हूं. कासिम बहोत खुश था उसने कुछ देर आराम कीया और फिर हमेशा की तरह हाथों में कांच के टुकड़े लेकर और उन्हें बजाकर अपनी मीठी और सुरीली आवाज़ में गाने लगा.
वो रोजाना नए-नए खुशी के नगमे गाता था. यकायक वो गाते गाते रुक गया और खलीफा के बारे में सोचने लगा. कासिम ने कहा खलीफ़ा शरई अदालतें तो हरगिज़ बंद नहीं कर सकता, अगर वो ऐसा करेगा तो उसका अंजाम बहोत बुरा होगा. वाह वाह क्या बात है, गोया अब मेरा ये काम हमेशा जारी रहेगा. वो बहोत खुश हुआ और खाना खाने बैठ गया. खाने के बाद उसने शराब पी, इधर बोतल खाली हुई और उधर तीनों ताजिर एक बार फिर आ पहुंचे. उन्हें देखते ही कासिम का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उसने उन्हें बहोत बुरा भला कहा, तीनों ताजिर सब कुछ खामोशी से सुनते रहे. थक हारकर कासिम ने उन्हें घर में बुला लिया. पहले तो उसने सोचा की वो इन तीनों ताजिरों को अपने नए काम के बारे में हरगिज़ नहीं बताएगा लेकीन ये सोचकर की अब तो खलीफा कुछ नहीं कर सकता लिहाज़ा आज अगर इस काली ज़ुबान वाले ने कुछ पूछा तो उसे अपने नए काम के मुतालिक बता देगा.
जब खलीफा ने उसे उसके नए काम के बारे में पूछा तो उसने अकड़ कर जवाब दिया अरे अब तो मैं मुशीर का भेस बदलकर काजी की अदालत में जाने लगा हूं. अब देखता हूं की कल खलीफा कैसे अदालतें बंद करने का हुकम देता है. कासिम की बात सुनकर खलीफा ने कुछ नहीं कहा, तीनों ने कासिम के यहां रात बसर की और सुबह होने से पहले महल में पहुंच गये. सुबह होते ही खलीफा ने अदालत के क़ाज़ी को बुलवा लिया. काजी फौरन महल में हाजिर हुआ. खलीफा ने काजी से कहा अदालत में शहर के तमाम मुकदमे पेश करने वाले तुम्हारे नुमाइंदों को हमने मुंतखब कीया है और अदालत के तमाम नुमाइंदों या मुशीरों के पास हमारा दिया हुआ मुहर लगा हुआ है. लेकीन हमें मालूम हुआ है की कुछ बदमाश नुमाइंदों का भेस बदलकर सरकारी नुमाइंदों में शामिल हो गए हैं. ऐसे नुमाइंदों को आज ही तलाश करके उन्हें निकाल बाहर करो. खलीफा की बात सुनकर काजी बहोत खुश हुआ. ऐसा हुकम तो कभी खलीफा ने नहीं दिया था. आखिर क्या राज़ है ये सोचता हुआ क़ाज़ी उसी मदरसे में पहुंचा जहां शहरे मीज़ान की तमाम अदालतों के नुमाइंदे रोज़ाना इकट्ठे होते थे, एक दूसरे से मशवरा करते थे और फिर अपनी अपनी अदालतों की तरफ़ रवाना हो जाते थे.
थोड़ी ही देर में तमाम नुमाइंदों को खलीफा के भेजे हुए सिपाहियों ने घेर लिया जिनके हाथों में डंडे थे. क़ाज़ी अदालत के हर नुमाइंदे से उसका इजाज़त नामा तलब करता, उसे गौर से देखता और वापस कर देता. काजी बारी-बारी एक-एक नुमाइंदे के कागज़ात देखकर उन्हें अलग कमरे में सिपाहियों की निगरानी में भेज रहा था. क़ाज़ी ना सिर्फ नुमाइंदों के इजाज़त नामे देख रहा था बल्कि उनके खानदान की सारी तफसील भी पूछ रहा था. क्योंकी क़ाज़ी के पास खलीफा की अदालत के सभी नुमाइंदों की मुकम्मल मालूमात थी. अब इन्हीं नुमाइंदों में मौजूद कासिम समझ गया की इस कारवाई का एक मतलब है अब उसका बचना ना-मुमकीन है और खलीफा उसे सख्त सज़ा देगा.
जल्द ही काजी ने कासिम को पकड़ लिया. खलीफा के सिपाहियों ने उसे डंडों से खूब पीटा. काजी ने उसकी भरे बाज़ार बेइज्जती की फिर उसे हमेशा के लिए उस कमरे से निकाल दिया जहां मुख्तलिफ अदालतों के मुशीर रोजाना जमा होते थे. कासिम की आँखों के सामने बार-बार उस ताजिर का चेहरा घूम रहा था जो हर रात उसके लिए कीसी बुरी खबर का अंदेशा जाहिर करता था.
यही तमाम बातें सोचता हुआ और पांच दिरहम की फिक्र में डूबा हुआ कासिम अपने घर पहुंच गया. अब वो मीज़ान से जल्दी से जल्दी निकल जाने के लिए सोच रहा था. उसने एक नजर अपने कमरे पर डाली. कमरे में कुछ था ही नहीं जिसे वो अपने साथ ले जाता. वो अपने कमरे से निकलने ही वाला था की उसकी नज़र एक खाली म्यान पर पड़ी. इस म्यान में कभी उसकी तलवार रहती थी लेकीन अब उसे बिल्कुल याद नहीं था की आखिर उसकी तलवार गई कहां.
फिर उसकी नजर खूंटी से लटके हुए साफे पर पड़ी. एक कोने में एक लकड़ी का टुकड़ा पड़ा हुआ था. कासिम ने उसे अच्छी तरह तराश कर लकड़ी की तलवार बनाई. उसने तलवार का दस्ता तो इतनी खूबसूरती से बनाया और उसे ऐसा रंग दिया की वो सचमुच की तलवार का दस्ता नजर आ रहा था. उसने खूंटी से लटका हुआ चमड़े का पट्टा अपनी कमर से बांधा, म्यान में लकड़ी की तलवार रखी, सर पर साफा अच्छी तरह जमाया, हाथ में मोटा सा डंडा लिया, उसे तेल लगाकर खूब चमकाया और घर से निकलकर शहर की तरफ रवाना हुआ.
कासिम बिल्कुल कीसी दारोगा की तरह नज़र आ रहा था. उसे आज के लिए पांच दिरहम की फिक्र थी. वो जल्दी से जल्दी शहर पहुंच जाना चाहता था. वो जिस जगह रहता था वो इलाका मीज़ान की हुदूद से बाहर था. कासिम अपने ख्यालात में इतना खोया हुआ था की उसे ये भी एहसास ना था की वो इस वक्त कहां है. अचानक उसे शोर सुनाई दिया. शोर सुनकर कासिम अपने ख्यालात से बाहर आया. वो मीज़ान के एक बाजार में खड़ा हुआ था और एक जगह उसे बहोत भीड़ नज़र आ रही थी. वो फौरन उधर भागा, भीड़ को हटाता हुआ जब वो आगे बढ़ा तो देखा की वहां दो आदमी झगड़ रहे थे और एक दूसरे की दाढ़ी और बाल नोच रहे थे.
दोनों बहोत जख्मी थे और सड़क पर जगह-जगह खून नजर आ रहा था. कीसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो उन दोनों को इस तरह लड़ने से मना करें और उन्हें एक दूसरे से छुड़ाए. लेकीन जैसे ही कासिम ने उनके करीब पहुंचकर अपना डंडा मारने के लिए उठाया दोनों शख्स लड़ना बंद कर फौरन अलग हो गए. हर तरफ खामोशी छा गई. फिर इस खामोशी को बाजार के एक बड़े इज्जतदार ताजिर शेख की आवाज़ ने तोड़ा. वो कह रहा था बहोत-बहोत शुक्रिया बड़े दारोगा साहब आपने ब-वक़्त यहां पहुंचकर हमें बहोत बड़ी मुसीबत से बचा लिया. मेहरबानी फरमा कर मेरी जानिब से ये पांच दिरहम कबूल फरमाए और इन बदमाशों को खलीफा के सामने पेश करें ताकी वो अपने कीए की सजा पाए.
कासिम ने दिल में सोचा वाह ये तो बड़ी अच्छी जगह है ये लोग मुझे खलीफा का दारोगा समझ रहे हैं, अब तो रोजाना मुझे कीसी ना कीसी बहाने से पांच दिरहम मिल जाया करेंगे. अगर मैंने इस मौके से फायदा नहीं उठाया तो मुझसे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं होगा. कासिम दोनों गुंडों को पकड़ कर ले गया और खलीफा के महल के पास खड़े हुए दारोगा के हवाले कर दिया जो दरअसल खलीफा के खास दारोगा थे. उसके साथ कई और दारोगा भी थे वो सब हैरत से कासिम को देख रहे थे. इससे पहले उन्होंने कासिम को कभी नहीं देखा था. लेकीन कासिम का बात करने का अंदाज़ ऐसा रोबदार था की वो सब उससे मरगूब हो गए और उसे खलीफा का मुकर्रर करदा कोई ख़ास दारोगा समझ बैठे.
वो सब आपस में बातें कर रहे थे की ये खलीफा का कोई खास दारोगा होगा जिसे खलीफा ने बहोत अहम कामों के लिए रखा होगा वो सब मुतमइन हो गए. दारोगा खास को भी कासिम पर शक नहीं हुआ. कासिम हंसता मुस्कुराता रात के लिए तमाम चीजें खरीदकर अपने घर पहुंच गया. रात होने लगी थी, कासिम अपने रोज के काम में मसरूफ हो गया, उसे तीनों ताजिरों का इंतजार था. उधर खलीफा ने भी भेस बदलकर कासिम के घर पहुंचने की तैयारी शुरू की. उसने वज़ीर युनुस से कहा अब तो वो लोहार अपने घर में बैठा रहा होगा.
युनुस और बशीर ने खलीफा से कहा अब हमें वहां जाना नहीं चाहिए. इतनी मार खाने के बाद वो हमारे साथ बहोत बुरी तरह पेश आएगा. अब उसके सब्र का पैमाना लबरेज हो गया होगा. लेकीन खलीफा ने कहा की हम ज़रूर उसके घर जाएंगे, आज हम उसके लिए मुर्ग मुसल्लम और उम्दा उम्दा खाने ले जाएंगे. मैं उसे भूख से बेताब होकर अपने कदमों में गिड़गिड़ाता हुआ देखना चाहता हूं. वो तीनों ताजिर के भेस में पांच अदद मुर्गे मुसल्लम और उदा खाने लेकर महल के खुफिया दरवाज़े से निकल पड़े. अभी वो कासिम के घर से दूर ही थे की उन्हें फिर गाने की आवाज़ सुनाई दी वही मीठी और सुरीली आवाज़.
तीनों ने एक दूसरे की तरफ सवालिया नज़रों से देखा. वजीर ने कहा ये हैरत अंगेज़ है वो आज भी हमेशा की तरह खुश है. खलीफा ने हैरत से कहा हमें मालूम करना पड़ेगा की आज उसने कैसे पांच दिरहम हासिल कीए. इतना कहकर वो तेजी से आगे बढ़े, जल्द ही वो कासिम के मकान के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे थे. कासिम ने खिड़की में से झांकते हुए कहा आओ मेहरबानो, आओ! मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था. उसके सर पर अब तक दारोगा का साफा बंधा हुआ था. आओ आओ आज मैं तुम्हारी बहोत अच्छी मेहमान नवाज़ी करूंगा.
खलीफा ने कहा आज हम आखिरी बार तुम्हारे घर में क्याम करेंगे कल हम मीज़ान छोड़कर जा रहे हैं इसलिए आज रात का खाना हमारी तरफ से होगा और तुम हमारे मेहमान हो. कासिम ने कहा तो फिर देर कीस बात की है अंदर आ जाओ अब मैं तुमसे खौफ जदा नहीं हूं तुम्हारे जी में जो आए वो कहो. फिर कासिम ने खलीफा से कहा और तू ऐ काली ज़ुबान वाले कल के लिए तू कौन सी पेशन गोई करेगा वो भी करके देख ले, अब कभी मेरा काम बंद नहीं होगा क्योंकी अब मैं खलीफा के जो खास दारोगा हैं उनमें शामिल हो गया हूं. इतना कहकर उसने ज़ोर से कहकहा लगाया. कासिम की बातें सुनकर खलीफा दंग रह गया उन्होंने कासिम के साथ खाना खाकर बेचैनी से रात गुज़ारी और सुबह होने से पहले महल में पहुंच गए.
अगली सुबह खलीफा ने जितने अपने खास और वफादार दारोगा थे उनसे मालूम कर लिया की कैसे धोखा देकर कासिम उनमें शामिल हो गया है. खलीफा ने कासिम को गिरफ्तार करने और सज़ा देने के लिए मंसूबा बनाया. दिन चढ़ते खलीफ़ा ने बड़े दारोगा के पास पैगाम भेजा की फौरन चार दारोगा महल में भेजो. साथ ही खलीफा ने कासिम का हुलिया बयान करते हुए ये भी पैगाम भेजा की उस नए दारोगा को ज़रूर भेजना. जब कासिम को ये पता चला की उसे भी खलीफ़ा ने खास तौर पर महल में बुलाया है तो वो सोचने लगा ये क्या बात हुई क्या यहां भी मेरी शामत आई है और क्या फिर से मुझे लोहार का काम करना पड़ेगा. लेकीन मुझे तो ये भी नहीं मालूम की खलीफ़ा मुझे माफ़ करेगा या कत्ल करवा देगा.
कासिम के दिल में तरह-तरह के ख्यालात आ रहे थे और वो परेशान हो रहा था, कभी ये सोचकर मुतमइन हो जाता की शायद रुतबा बढ़ाने या इनाम देने के लिए खलीफा ने उन्हें तलब कीया हो. वो चारों दारोगा महल में पहुंचे, महल में पहुंचकर उससे भी बुरा हुआ जो कासिम सोच रहा था. वो चारों खलीफा के दरबार में खड़े थे. खलीफ़ा अपने मुंह पर रुमाल डाले हुए बैठा था. उसने चारों को मुखातिब करते हुए कहा तुम चारों को ऐसा कोई काम करके ये साबित करना होगा की तुम लोग वाकई अपने काम में बहोत माहिर हो, अगर तुम कामयाब हो गए तो मैं तुम्हें ना सिर्फ इनाम दूंगा बल्कि तुम्हारा ओहदा भी बढ़ा दूंगा और अगर नाकाम हो गए तो तुम्हारी गर्दन उड़ा दूंगा.
चारों एक दूसरे की तरफ देखकर सोचने लगे की आखिर उन्हें क्या करना चाहिए. अचानक खलीफा ने इशारा कीया. इशारा पाते ही चार कैदियों को हाज़िर कीया गया. ये चारों कातिल थे और इन्हें अदालत से मौत की सज़ा सुनाई गई थी. खलीफा ने फिर कहा तुम्हें इन कातिलों की गर्दन उड़ानी है और मुझे देखना है की तुम में से कौन अपने काम में माहिर है. ये सुनते ही कासिम ने दिल में कहा शायद आज मेरा भी आखिरी वक्त आ पहुंचा है, आज खलीफा यकीनन मेरा सर काट देगा. मेरे पास तो लकड़ी की तलवार है, मैं इस तलवार से कैसे कीसी का सर काट सकता हूं. खलीफा ने जान बूझकर पहले तीन असल दारोगा को एक-एक कातिल का बारी-बारी सर काटने का हुक्म दिया. उन्होंने अपनी तेज़ तलवार से एक ही बार में तीनों कातिलों के सर उड़ा दिए. कैद खाने के निगरा फौरन तीन लाशें उठाकर ले गए. अब दरबार में एक कातिल खड़ा था और अपने साथ म्यान में लकड़ी की तलवार लटकाए हुए कासिम.
खलीफा, वजीर और बशीर तीनों अपने चेहरे छुपाए हुए दिल ही दिल में हंस रहे थे. कासिम का बुरा हाल था. खलीफा ने उसे मुखातिब करके कहा चलो अब तुम्हारी बारी है. तीन दारोगा तो कामयाब होकर इनाम के हकदार हो गए और उनका ओहदा भी बढ़ा दिया गया, चलो तुम भी इनाम और ओहदा हासिल कर लो. कासिम आगे बढ़ा और खलीफा के घुटनों पर सर रखकर बोला ए रहम दिल खलीफा! मेरे पास मेरी खानदानी तिलिस्मी तलवार है जो मेरे बाप के परदादा ने मेरे परदादा को दी थी. मेरे दादा ने मेरे बाप को और मेरे बाप ने ये तिलिस्मी तलवार मुझे दी है.
ये तलवार क़ाज़ी के अदालत से ज्यादा सही फैसले करती है अगर मुजरिम बेगुनाह है तो ये तलवार उसकी गर्दन पर पड़ते ही लकड़ी की बन जाती है. खलीफा ने हैरत से कहा अच्छा ऐसी जादूई है तुम्हारी तलवार. जरा इस तलवार का करिश्मा हमें भी दिखाओ. कासिम फौरन मुजरिम के पीछे पहुंचा उसने खलीफा और युनुस की नजरें बचाकर जल्दी से अपनी लकड़ी की तलवार म्यान से निकाली और मुजरिम की गर्दन पर मारी. फिर उसी वक्त चिल्लाया हुजूर ये शख्स बिल्कुल बेगुनाह है इसे छोड़ दीजिये. मेरी तलवार लकड़ी की बन गई है. ये सुनते ही खलीफा और वजीर खिलखिला कर हंस पड़े.
खलीफा हंस हंसकर लौट पोट हो गए. जब वो हंस हंसकर बेहाल हो गया तो उसने अपने चेहरे से रुमाल हटाया और कहा कासिम वाकई तुम कभी हिम्मत ना हारने वाले इंसान हो. तुम बेइंतहा ज़हीन और बुरे से बुरे हालात में भी खुश रहने वाले हो, और अपनी ज़हानत से रोज़ी कमाने में उस्ताद हो. मैं तुमसे बहोत खुश हूं. मैं ना सिर्फ तुम्हें बड़े दारोगा के ओहदे पर फाएज़ करके एक नए इलाके के इंतजाम की जिम्मेदारी देता हूं बल्कि तुम्हें अपने मुशीर में भी शामिल करता हूं. खलीफा के साथ ही वजीर युनुस और बशीर भी उसके सामने बैठे हुए थे उन तीनों ताजिरों को देखकर कासिम भी खूब हंसा और अपनी गुस्ताखी की माफ़ी भी चाही और खलीफा ने उसे माफ़ कर दिया.
ये कहानी खत्म करके इसरार ने जिन्न से कहा के इसमें सबक़ ये मिलता है की हालात चाहे जैसे भी हो ज़िन्दगी में हार कभी नही माननी चाहिए. मुश्किल से मुश्किल हालात में खुद को पुर सुकून रखकर उस मुश्किल का हल तलाश करना चाहिए. जिन्न ने इसरार की कहानी सुन कर कहा सच कहा तूने हर मुश्किल हालात में खुद को पुर सुकून रखना ही ज़िंदगी की असल हकीक़त है. जिन्न ने कहा अब तेरे वादे के मुताबिक अपनी दूसरी कहानी का आग़ाज़ कर.
इसरार ने अपनी दूसरी कहानी जिन्न को सुनानी शुरू को जो मछुआरे इसरार और जिन्न की दास्तान के अगले हिस्से में आपसे शेयर की जायेगी. उम्मीद करता हूँ की ये सबक़ आमोज़ कहानी आपको पसंद आई होगी. कमेंट में अपनी राय का इज़हार ज़रूर करें. विडियो को like और शेयर करना न भूले और इसके अगले हिस्से को सुनने और जान्ने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब भी ज़रूर कर लीजिये.
PART -2
जैसा की इस कहानी का आगाज़ हुआ था एक मछुआरे जिसका नाम इसरार था और सुराही से निकलने वाले जिन्न से. जिन्न ने इसरार को अपनी रिहाई के इतने लंबे वक़्त से नाराज़गी की वजह से उसे क़त्ल करने का इरादा ज़ाहिर किया. इसरार ने जिन्न से दो हैरतअंगेजज़ कहानी सुनाने की इस्तेजा की, इस शर्त पर की वो उसकी जान बख्श दें. पहली कहानी इसरार ने ब्यान की “पांच दिरहम और कभी हार न मानने के जज़्बे की” जो एक लौहार और वक़्त के ख़लीफ़ा पर मुश्तमिल थी.
इस के बाद इसरार ने अपनी दूसरी कहानी का आगाज़ करते हए कहा ये कहानी है “शौखी करने वाले हिरन से मोहब्बत करने वाला बंदर अच्छा है” सदियों पुरानी बात है एक बड़े मियां थे जो नेक और रहमदिल थे. उनकी आदत थी की सुबह होते ही शहर के दरवाज़े पर जा बैठते और रात तक बैठे रहते. रात को जब पहरेदार दरवाज़ा बंद करने लगता तो वो अपने घर चले आते. दूसरे दिन सुबह फिर अपनी जगह पर जा बैठते. रोजाना उनका यही मामूल था. बड़े मियां खाली नहीं बैठते थे बल्कि जो मुसाफिर या अजनबी शहर में आता उसे तरह-तरह की नसीहत करते और सारे शहर के हालात बताते ताकी मुसाफिर को कोई दिक्कत ना हो.
वो हर एक को नसीहत करते थे इसीलिए लोग उन्हें बाबा नासेह कहने लगे यानी नसीहत करने वाला. उनकी एक और आदत थी की हर नए आने वालों से बातों के बाद ये तीन सवाल ज़रूर करते. सबसे अच्छा खाना कौन सा होता है? सबसे उम्दा लिबास कौन सा होता है? और सबसे अच्छी औरत कौन सी होती है? ज्यादातर लोग इन सवालों के जवाब एक ही तरह के देते लेकीन इन जवाबों से बड़े मियाँ को आज तक इत्मीनान नहीं हुआ था इसीलिए सबके जवाब सुनकर बड़े मियाँ उन्हें दुआ देकर शहर के अंदर भेज देते और नसीहत करते की काम खूब मेहनत से करना हमेशा सच बोलना.
इसी तरह कई साल गुज़र गए. बड़े मियाँ का रोजाना का यही मामूल रहा. एक दिन सुबह के वक्त बड़े मियाँ दरवाजे पर आकर बैठे ही थे की एक खूबसूरत नौजवान शहर में दाखिल होने के लिए दरवाज़े पर आया. बाबा ने उसे रोका और उससे शहर में आने का मकसद पूछा. नौजवान ने कहा बाबा मेरे कई बच्चे हैं मैं गरीब आदमी हूं. इसलिए शहर में कुछ कमाने आया हूं शायद मुझे कोई काम मिल जाए और ये तंगदस्ती दूर हो जाए. बड़े मियाँ ने कहा अगर बुरा ना मानो तो चंद सवालात करूं क्या खबर की तुम सही सही जवाब दे दो और तुम्हारी सारी जिंदगी ऐशो आराम से गुजरे. नौजवान पहले तो हिचकीचाया फिर बोला बाबा आप ज़रूर सवाल करें. वैसे तो मैं एक जाहिल और अनपढ़ आदमी हूं मगर कोशिश करूंगा की आपके सवालों का ठीक-ठीक जवाब दे सकूं.
बड़े मियाँ ने पूछा सबसे अच्छा खाना कौन सा है? सबसे उम्दा लिबास कौन सा है? और सबसे अच्छी औरत कौन सी है? नौजवान इन सवालों को सुनकर थोड़ी देर कुछ सोचता रहा फिर बोला सुनिए जनाब “सबसे अच्छा खाना वो है जो भूख के वक्त मिल जाए” “सबसे उम्दा लिबास वो है जिससे बदन ढक जाए” और “सबसे अच्छी औरत वो है जिसके बारे में किसी अकलमंद ने कहा है की सिर्फ शौखी करने वाले हिरन से मोहब्बत करने वाला बंदर ज्यादा अच्छा होता है.”
बड़े मियाँ ये जवाब सुनकर इतने खुश हुए और इस तरह नाचने लगे जैसे उन्हें कोई खज़ाना मिल गया हो. नौजवान उन्हें हैरत से देखता रहा. उसकी समझ में नहीं आ रहा था की ये भी कोई खुशी की बात है. आखिर बाबा ने उसका हाथ पकड़ा और आंखों से लगाकर चूम लिया. फिर बोले प्यारे दोस्त अब तक तू कहां छुपा हुआ था मैं एक जमाने से तेरा इंतजार कर रहा था. कमो बेश 30 साल हो गए हैं मैं अपने सवालों के यही जवाब चाहता रहा हूं जो आज तूने दिए हैं. अब तू गौर से मेरी बात सुन तू यहां रोजी कमाने आया है सो तुझे मुबारक हो. शहर में एक बहोत बड़ा खजाना 30 साल से तेरा इंतजार कर रहा है. अब तू चुपके-चुपके मेरे साथ पीछे चल ताकी मैं वो खजाना तेरे हवाले कर दूं और सुकून से मर सकूं, ये कहकर बाबा शहर की एक सड़क पर हो लिए.
नौजवान भी खामोशी से पीछे-पीछे चलने लगा. दोनों चलते-चलते एक टूटे-फूटे महल में पहुंचे. उस महल के बीच में एक हौज़ था जिसका पानी नीला और बहोत ठंडा था. हॉज़ पर पहुंचकर बाबा ने फिर नौजवान से कहा अब तू मेरी बात सुन और जो मैं कहूं उसको गाँठ बांध ले और खबरदार मेरी हिदायात के खिलाफ ना करना वरना जान से हाथ धो बैठेगा और अगर मेरे कहने पर अमल कीया तो तू खज़ाने का मालिक होगा. तुझे सारे कपड़े उतार कर इस हॉज़ में गोता लगाना है, इसकी तह में एक बिल्कुल खुश्क मैदान मिलेगा तू वहां हरगिज़ मत रुकना आगे बढ़ते रहना, वहां तरह-तरह के सांप बिच्छू और अजीबो गरीब जानवर तेरी तरफ बढ़ेंगे और ऐसा मालूम होगा जैसे तुझपर हमला करने वाले हों मगर वो तुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे.
हां अगर तू डरा या रुका या पीछे मुड़कर देखा तो उन मुज़ी जानवरों का शिकार हो जाएगा. चलते चलते तुझे सफेद चमकदार पत्थर का एक दरवाज़ा दिखाई देगा. उस दरवाज़े पर एक काला हब्शी पहरा दे रहा होगा, वो तुझे देखते ही ज़ोर से चिल्लाएगा, तुझे कीसने यहां भेजा है? तू निहायत इत्मीनान से जवाब देना मुझे बाबा नासेह ने यहां भेजा है, इसी तरह सात दरवाज़े मिलेंगे. सातों पर यही अमल होगा. तू हर एक से मेरा नाम लेता हुआ गुज़र जाएगा. फिर तुझे सारा हाल मालूम हो जाएगा.
नौजवान पहले तो बाबा के चेहरे की तरफ देखता रहा और उनकी बातों की सच्चाई से इस कद्र मुतासिर हुआ के आखिरकार यकीन करना ही पड़ा. उसने सोचा मैं बहोत अच्छा तैराक भी हूं और गोताखोर भी हूं, इसलिए कीस्मत आज़माने में हर्ज़ ही क्या है. वो कपड़े उतारने लगा. सारे कपड़े उतारकर वो बिस्मिल्लाह कहकर उसने हॉज़ में गोता लगा दिया और सीधे तह तक चला गया. बाबा के कहने के मुताबिक खतरनाक सांप और बिच्छु से बचता हुआ वो महल के दरवाज़े पर जा पहुंचा जिस पर एक निहायत मोटा काला हब्शी पहरा दे रहा था. हब्शी ने उसे देखते ही डांट कर पूछा ए नौजवान तुझे कीसने यहां भेजा है. उस नौजवान ने निहायत इत्मीनान से जवाब दिया मुझे बाबा नासेह ने यहां भेजा है. ये सुनते ही हब्शी का गुस्सा फौरन दूर हो गया.
वो नौजवान से कहने लगा ऐ खुश नसीब नौजवान! तू आज तक कहां था हम 30 साल से तेरा इंतजार कर रहे थे. नौजवान ने एक बार बाबा नासेह से यही बात सुनी थी. अब हब्शी से फिर ये जुमला सुनकर हैरान हुआ की आखिर इसका मतलब क्या है. मुझे ये लोग कहां से जानते हैं, क्यों मेरा 30 साल से इंतजार कर रहे थे. ये सोचता हुआ वो हब्शी पहरेदार से अलग हुआ और दरवाज़े के अंदर दाखिल हो गया. अंदर का माहौल बड़ा खुशनुमा और खूबसूरत था. दीवारों पर तरह-तरह की तस्वीरें थी. रंग बीरंगी जानवरों की शक्ल, संगे मरमर के चमकदार सुतून, सामने ही याकूत का बना एक और खूबसूरत दरवाज़ा नज़र आया. उस पर भी एक हशी पहरेदार खड़ा था.
वहां भी नौजवान से वही मामला पेश आया जो पहले दरवाज़े पर पेश आया था और वो उस कमरे में भी दाखिल हो गया. इसी तरह सात दरवाजों से गुज़रता हुआ पहरेदार से सवाल और जवाब करता हुआ वो नौजवान सबसे आखिरी दरवाज़े पर जा पहुंचा. उसे खोलते ही एक बड़ा सा सेहेन दिखाई दिया. सेहन के बीच में एक हॉज़ था. हॉज़ क्या था एक अच्छा खासा जादू का तालाब था. उसका पानी दूध की तरह सफेद था जिससे तह की चीजें साफ नज़र आती थी. हर मिनट में एक खुबसूरत सी लड़की जिसका आधा धड़ मछली का और आधा इंसान का, निकलती आसमान की तरफ मुंह उठाती और पानी में गायब हो जाती.
पानी बर्फ की तरह ठंडा था मगर हॉज़ से भाप निकल रही थी. साथ ही उसके अंदर बड़ी बड़ी मछलियां भी नज़र आती थी. उनकी आंखों की जगह दो लाल लाल मोती चमक रहे थे जो अंधेरी रात में रख दिए जाए तो मीलों तक रोशनी दिखाई दे. नौजवान अब तक तो हिम्मत कीए चला आ रहा था. मगर अब तमाम हैरत अंगेज चीज़ों को देखकर उसके होशो हवास जाते रहे. वो इस कद्र हैरतज़दा हुआ की उसकी चींख निकल गई. अचानक उसे बाबा नासेह की हिदायत याद आई की कीसी जगह खौफ ना खाना. वो हिम्मत करके एक तरफ बड़ा ही था की उस दरवाज़े का पहरेदार उसकी तरफ बढ़ा. निहायत अदब से सलाम करके नौजवान से बोला हुजूर मैं इस खज़ाने का आखिरी गुलाम हूं. मैं 30 साल से आपका इंतज़ार कर रहा हूं. आज आप आए हैं तो मैं अपनी खिदमत पेश करता हूं. ये सामने दो कमरे हैं एक में हीरे जवाहरात हैं, दूसरे में लाल और याकूत हैं.
दरवाज़े के पास ही चमड़े के थैले रखे हैं आप उनमें से जितने थैले चाहे भर लें. ये कहकर पहरेदार ने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. नौजवान ने कई थैले जी भरकर हीरे जवाहरात, लाल और याकूत से भर लिए और फिर बड़ी मुश्किलों से उन्हें कंधे पर लाद लिया. वो सातों दरवाज़े तय करता हुआ बाहर आ गया और आखरी दरवाज़े पर सांस लेने के लिए थैले रख दिए. इतने में पहले दरवाज़े वाला पहरेदार आगे बढ़ा और बोला हुजूर आप तकलीफ ना करें आप पानी के ऊपर जाइए थैला खुद ही पहुंच जाएगा.
नौजवान थैले को छोड़कर हॉज़ के ऊपर आ गया और वहां आकर देखा तो दोनों थैले पहले से ही रखे हुए थे. एक तरफ बड़े मियाँ खड़े मुस्कुरा रहे थे. बाबा नासे ने पूछा बेटा तुमने इस माल का टैक्स भी अदा कर दिया या वैसे ही उठा लाए. नौजवान ने जवाब दिया बाबा मुझसे कीसी ने टैक्स मांगा ही नहीं. बाबा ने कहा अच्छा इन थैलों को यही छोड़ो और फौरन उसी जगह वापस जाओ जहां से आए हो और टैक्स देकर आओ वरना सारा माल तुमसे छीन लिया जाएगा और तुम फिर फकीर हो जाओगे. बाबा का हुकम सुनकर नौजवान ने फिर हॉज़ में छलांग लगा दी और नीचे उतरता चला गया. जैसे ही पहरेदार ने उसे देखा समझ गया की नौजवान क्यों वापस आया है और उसने नौजवान को महल में जाने की इजाज़त दे दी. नौजवान सातों दरवाजें तय करता हुआ आखिरी सेहन में जा पहुंचा. वहां पहरेदार पहले ही से तैयार खड़ा था. जैसे ही नौजवान को देखा पहरेदार ने झपट कर उसे पकड़ा और ज़मीन पर लिटा कर उस पर कोड़े बरसाने लगा.
पूरे 50 कोड़े मारे गए. नौजवान दर्द से चिल्लाता रहा. जब कोड़े मारना बंद हुए तो वो वहां से उठा और दर्द से कराहता हुआ दूसरे दरवाज़े के पहरेदार तक कीसी तरह पहुंचा. अभी वो वहां पहुंचा ही था की दूसरे पहरेदार ने भी उसी तरह पूरे 50 कोड़े मारे. इसी तरह सातों दरवाज़ों पर उसे 50-50 कोड़ों की सज़ा भुगतनी पड़ी और कुल 350 कोड़े खाकर उसकी हड्डियां दर्द करने लगी. कुछ देर वो आखिरी दरवाज़े पर पड़ा रहा. जब तकलीफ कुछ कम हुई तो हिम्मत करके ऊपर आया और ऊपर आते ही ज़ोर से निचे गिर पड़ा.
बड़े मियाँ ने उसे तसल्ली दी और कहा बेटा तुझ पर जो मुसीबत आई है मैं खूब जानता हूं. सब्र कर, अब मत रो, ये मेरा रुमाल ले अपने आंसू पहुंच ले. जैसे ही नौजवान ने बाबा का रुमाल अपनी आंखों पर फेरा उसने खुद को दोबारा हॉज़ के नीचे महल में पाया जहां एक कमरे में सैकड़ों मर्द और बच्चे जमा थे. वो खुशियां मना रहे थे, उछल कूद कर रहे थे और एक दूसरे से हंस-हंस कर बातें कर रहे थे. नौजवान एक तरफ खड़ा रहा. उसकी तरफ कीसी ने तवज्जो ना दी. उसने सोचा या अल्लाह ये लोग कौन हैं? कहां से आए हैं और क्यों इतनी खुशियां मना रहे हैं? अब वो कहां जाए और क्या करें? अचानक उसकी आंखें बंद हो गई और फिर जब खुली तो उसने देखा की सारे लोग चुपचाप हाथ बांधे खड़े हैं. टिकटिकी बांधे सामने दरवाज़े की तरफ देख रहे हैं.
अचानक उसी सामने के दरवाजे से एक बूढ़ी औरत कमरे में दाखिल हुई. कमरे में दाखिल होने वाली औरत की सूरत कुछ डरावनी थी, लेकीन उसके कपड़े और ज़ेवर इंतीहा कीमती थे. वो आहिस्ता आहिस्ता लोगों के पास से गुज़रती हुई कमरे के दरमियान एक कुर्सी पर आकर बैठ गई. उसके के सर पर हीरे जवाहीरात से जड़ा हुआ एक कीमती ताज रखा हुआ था. कुर्सी के दोनों तरफ बड़े-बड़े पर लगे थे और जगह-जगह हीरे जवाहरात चमक रहे थे. उसके बैठने के बाद सात खूबसूरत नौजवान लड़के उस दरवाज़े से अंदर आए और कुर्सी के पीछे आकर खड़े हो गए. ऐसा महसूस हो रहा था की आसमान पर गोल-गोल चांद निकला हुआ है जिसके बीच में वो औरत बैठी है.
चंद लम्हों बाद वही बड़े मियाँ भी आकर औरत के सामने खड़े हो गए और कहना शुरू कीया. महारानी साहिबा और हाज़रीने मजलिस अब जिन्नात के बादशाह की दौलत को तकसीम करने का वक्त आ गया है. आप सब अपना अपना हिस्सा बांट ले क्योंकी बादशाह की शर्त पूरी हो चुकी है. ये कहकर बड़े मियाँ ने नौजवान का चेहरा ऊपर उठाया और लोगों की तरफ़ कर दिया. अचानक नौजवान ने महसूस कीया जैसे हर तरफ अंधेरा छा गया है कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
नौजवान ने अपनी आँखोंको मल कर हर तरफ देखना शुरू कीया और फिर अपने आप को उसी हॉज़ के कीनारे पाया उसके दोनों थैले अभी तक वहां पड़े थे. नौजवान ने बड़े मियाँ से कुछ पूछना ही चाहा था की बड़े मियाँ बोल पड़े. मेरे अच्छे दोस्त मैं थोड़ी देर और तुम्हारे साथ हूं फिर हमेशा के लिए तुमसे जुदा हो जाऊंगा, इसलिए अब सारी कहानी गौर से सुन लो. वो बूढ़ी औरत जिसे तुमने अभी देखा था वो मेरी बहन है. उसकी शादी जिन्नात के बादशाह से हुई थी. मेरी बहन से पहले भी बादशाह ने सात शादियां की थी और हर बीवी बहोत खूबसूरत थी. मगर एक खराबी थी की उनमें से हर एक बड़ी मगरूर और बद दिमाग थी.
बादशाह उनके घमंड और बद-दिमागी से बहोत परेशान रहता था वो अक्सर कहा करता था की मैं ज़ाहिरी खूबसूरती से धोखा खा गया हूं और दिल की बदसूरती ना देख सका. आदमी का दिल खूबसूरत हो, सीरत अच्छी हो तो ज़ाहिरी बदसूरती कुछ नहीं है. अफसोस मेरी ज़िंदगी अज़ाब बन गई. अब उसे एक ऐसी औरत की तलाश हुई जो सूरत शक्ल की कीतनी ही बदसूरत क्यों ना हो मगर नरम दिल और शरीफ हो. लोगों से मोहब्बत करती हो ताकी जितनी जिंदगी बाकी है आराम और सुकून से गुज़र सके. आखिरकार उसकी मुलाकात मेरी बहन से हुई जो सूरत शक्ल की तो अच्छी ना थी मगर बादशाह की तरह उसके सीने में भी एक नरम और पाक दिल था. वो निहायत शरीफ और बा-अखलाक़ औरत थी. बादशाह ने उससे शादी कर ली और अपनी बाकी की जिंदगी निहायत खुशी से गुज़ार दी. उसके सात बचे हुए जिन्हें तूने मेरी बहन के पीछे खड़ा हुआ देखा था. हर एक बच्चा चाँद की तरह था.
जब बादशाह के मरने का वक्त करीब आया तो उसने एक नसीहत लिखी की मेरे सारे माल में से एक हिस्सा ऐसे नौजवान को दिया जाए जो खूबसूरत औरत की सही सही तारीफ कर सके. इससे पहले उसका माल हरगिज़ ना बांटा जाए, ना लड़कों को दिया जाए. इसके बाद समुंदर के नीचे उसने अपना सारा माल महफूज़ कर दिया और सात ताकतवर हब्शी नौजवानों को जो जिन्नात ही की औलाद में से थे पहरेदार मुकर्रर कर दिया ताकी लड़के जबरदस्ती माल ना बांट सके. मैंने बादशाह से वादा कीया था की मैं ऐसे नौजवान को ज़रूर तलाश करूंगा.
एक तरफ बहन की और उसके बच्चों की मोहब्बत दूसरी तरफ बादशाह से वादा इन दो बातों की वजह से आज तक मैं ऐसे नौजवान को ढूंढता रहा हूं. 30 साल के अरसे में मुझे कोई ऐसा ना मिला जो बादशाह की मर्जी के मुताबिक खूबसूरत औरत की तारीफ कर सकता हो और जब तुमने कहा सिर्फ शौकी करने वाले हिरन से, मोहब्बत करने वाला बंदर अच्छा है तो मैं तुम्हारा मतलब समझ गया की हिरन खूबसूरत होता है और शौकी करके लोगों को लुभाता है, मगर दिल का बुरा होता है और बंदर बदसूरत होता है मगर दिल से अपने मालिक को प्यार करता है. इसलिए बंदर हिरन से अच्छा है. यानी खूबसूरत औरत के मुकाबले में मोहब्बत करने वाली औरत अच्छी होती है ये वही तारीफ है जो बादशाह चाहता था और मैं खुशी से दीवाना हो गया की 30 साल बाद ही सही मैं ने अपना वादा पूरा कर दिया. और मेरे दोस्त जो माल मुसीबत और मेहनत से हासिल होता है उसकी इंसान कद्र करता है, और जो माल बगैर मुशक्कत के मुफ्त में मिलता है वो उसे उड़ा देता है.
इसी ख्याल से टैक्स की सूरत में तुम्हें थोड़ी सी तकलीफ उठानी पड़ी, उम्मीद है अब इसे भूल जाओगे क्योंकी इसमें भी तुम्हारा ही फायदा है. लो कामयाबी तुम्हें मुबारिक हो खुदा हाफिज. बाबा ने अपनी कहानी खत्म ही की थी की ज़ोरदार आंधी चलने लगी, हर तरफ अंधेरा छा गया, बाबा इस अंधेरे में ऐसे गायब हुए की फिर नज़र ना आए. नौजवान हैरान परेशान बस चुपचाप वहाँ खड़ा मंज़र देखता रहा. जब आंधी खत्म हुई तो वो मैदान में खड़ा हुआ था, थैला पांव के पास पड़ा था. आखिर उसने थैला कांधे पर लादा और अपने शहर की तरफ चल पड़ा. खुशी-खुशी वो घर की तरफ जा रहा था और सोच रहा था की बादशाह की नसीहत और बाबा नासेह की मुलाकात ज़्यादा कीमती थी या दौलत से भरा हुआ ये थैला.
जब इसरार अपनी दूसरी कहानी खत्म कर चुका तो जिन्न के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई. वो बोला तुम्हारी कहानियां वाकई दिलचस्प थी. तुमने मुझे खुश कर दिया और मैं अपने वादे के मुताबिक तुम्हें आज़ाद करता हूं. अब जाने से पहले मैं ने भी तुम्हें दो चीज़ें देना चाहता हूँ. एक नसीहत और दूसरा अज्र. नसीहत ये है की तुम्हारे चार बार जाल डालने के गलत उसूल की वजह से ही तुम इस मुसीबत में गिरफ्तार हो. उसूल ज़िन्दगी के लिए होते है, ज़िन्दगी उसूलों पर कुर्बान करने के लिए नही होती. चार बार जाल डालने पर भी अगर कुछ हाथ न लगे तो पांचवीं बार जाल फेंकना यही ज़िन्दगी है. इसके बाद जिन्न ने इसरार के आगे कई हीरे जवाहिरात ओर सोने की अशर्फियाँ रख दी और हिदायत दी की इसमें से कुछ हिस्सा गरीबों और मिसकीनों में सदक़ा कर देना और बाकी से अपना और अपने बीवी बच्चों का ख्याल रखना. ये कह कर जिन्न इसरार से अलविदा कह कर धुंएँ की तरह आसमानों में गायब हो गया. इसरार अपनी आँखों मे आंसू लिए जिन्न को अलविदा करता रहा और रोते रोते अपने अल्लाह का शुक्र अदा करता रहा.
ये कहानी हमें कई तरह के सबक दे जाती है. सबसे पहला सबक़ ज़िंदगी में नाकामी मिलने से हार नही मां लेनी कहिये. हमें अपना फर्ज़ निभाते रहना चाहिए. तक़दीर में जो और जितना लिखा है उतना मिल कर ही रहेगा.
खलीफ़ा और लौहार की कहानी सबक़ दे जाती है की हर मुसीबत में खुश रहना चाहिए ओर अपनी मुश्किलात के लिए सब्र और तहम्मुल से काम लेना चाहिए.
नौजवान की कहानी सबक़ दे जाती है की ज़िन्दगी खुबसुरत वो होती है जिसके पास उसका साथ देने वाला हमसफ़र सच्चा हो जो बादशाहे जिन्न की ख्वाहिश थी. बाहरी खूबसूरती हमेशा इंसान को मुसीबत में डाल देती है. इसके अलावा सबसे ज़रूरी सबक़ जब तक मिलने वाली कामयाबी पर खुद का जान, माल और वक़्त न लगा हो इंसान को उसकी कद्र नही होती.
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