
रिवायात में आता है की हज़रत उमर फ़ारूक़ के दौरे खिलाफ़त में एक इसाई बादशाह ने चंद सवाल लिखकर अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर के पास भेजे और उनके जवाब आसमानी कीताबों के हवाले से ही देने का मुतालबा कीया. उनमें से पहला सवाल ये था की एक मां के शिकम यानी पेट से दो बच्चे एक दिन एक ही वक़्त पैदा हुए. फिर दोनों का इंतेक़ाल भी एक ही दिन हुआ. एक भाई की उम्र 100 साल बड़ी और दूसरे की उम्र 100 साल कम थी. ये कौन थे और ऐसा कीस तरह हुआ?
जवाब में हज़रत उमरे फ़ारूक़ ने लिखा की जो दोनों भाई एक दिन एक ही वक़्त पैदा हुए और दोनों की वफ़ात भी एक दिन हुई और उनकी उम्र में 100 साल का फ़र्क था. ये दोनों हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम और उनके भाई थे. ये दोनों भाई एक दिन एक ही वक़्त मां के बतन से पैदा हुए और उन दोनों की वफ़ात भी एक ही दिन हुई. मगर बीच में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को अपनी कुदरते-कामिला दिखाने के लिए पूरे 100 साल मौत की आगोश में रखा. वाकिये की तफ़सील कुछ इस तरह है की हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम, हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम की औलाद और बनी-इस्राइल के अंबियाओं में से थे.
अल्लाह तआला ने आप अलैहिस्सलाम को हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के बाद और हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम से पहले मबउस फ़रमाया. ये छठी सदी से पहले की बात है जब बनी-इस्राइल की शरकशी, ना-फ़रमानियां और मुशरिकाना हरकतें हद से ज़्यादा आगे बढ़ चुकी थी. हर तरफ़ ज़ुल्मो-सितम और लूटमार का बाज़ार गर्म था. अल्लाह तआला ने उस ज़माने के पैगंबरों के ज़रिए बनी-इस्राइल को ख़बरदार फ़रमाया की अपनी इन बुरी हरकतों से बाज़ आ जाए. वरना पिछली क़ौमों की तरह उन्हें भी अज़ाबे-इलाही का सामना करना पड़ेगा.

बार-बार की तंबीह के बावजूद जब उनपर कोई असर न हुआ और उनकी ना-फर्मानियाँ रोज़ ब-रोज़ बढ़ती चली गई तो कौमे अमाल्का का एक निहायत ज़ालिम बादशाह जिसका नाम बख्त-नसर था, बाबिल जिसे “बेबीलोन कहते है” से एक बड़ी फौज के साथ आंधी और तूफ़ान की तरह रास्ते की हर हुकूमतों को बर्बाद करता हुआ फिलिस्तीन की तरफ़ बढ़ा और थोड़े ही अरसे में फिलिस्तीन की ईंट से ईंट बजा दी. तारीख के मुताबिक उस काफ़िर बादशाह बख्त-नसर ने शहर के तकरीबन एक लाख बाशिंदों को क़त्ल कर दिया और तकरीबन एक लाख को मुल्के शाम में इधर उधर बिखैर कर आबाद कर दिया और तकरीबन एक लाख को गिरफ़्तार करके लौंडिया और गुलाम बनाकर साथ ले आया.
हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम भी उन्हीं कैदियों में से थे. इसके बाद उस काफ़िर बादशाह ने पूरे शहर बैतुल मुकद्दस को तोड़फोड़ कर बर्बाद कर दिया और बिल्कुल वीरान बना डाला. कुछ दिनों के बाद हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम जब कीसी तरह बख्त-नसर की कैद से रिहा हुए तो एक गधे पर सवार होकर अपने शहर बैतूल मुकद्दस में दाखिल हुए. अपने शहर की वीरानी और बर्बादी देखकर उनका दिल भर आया और वो रो पड़े. चारों तरफ़ चक्कर लगाया मगर उन्हें कीसी इंसान की शक्ल नज़र नहीं आई.
बस नज़र आया तो ये की वहां दरख्तों पर बहोत ज़्यादा फ़ल आए हैं जो पक कर तैयार हो चुके हैं मगर कोई इन फ़लों को तोड़ने वाला नहीं है. ये मंज़र देखकर निहायत ही हसरतो अफसोस के साथ बे-इख्तियार आपकी ज़ुबाने मुबारक से ये जुमला निकल पड़ा जिसे अल्लाह तआला ने कुराने-मजीद में इरशाद फरमाया है. उज़ैर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया जिसका तर्जुमा है “इस शहर की ऐसी बर्बादी और वीरानी के बाद भला कीस तरह अल्लाह तआला फ़िर इसको आबाद करेगा.”
फिर आपने कुछ फलों को तोड़कर तनावुल फ़रमाया और अंगूरों को निचोड़कर उसका शीरा यानी रस नोश फ़रमाया. फिर बचे हुए फलों को अपने झोले में डाल लिया और बचे हुए अंगूर के रस को अपने मश्कीज़े में भर लिया और अपने गधे को एक मज़बूत रस्सी से बांध दिया और फिर आप एक दरख्त के नीचे लेट कर सो गए. और उसी नींद की हालत में आपकी वफ़ात हो गई और अल्लाह तआला ने दरिंदों, परिंदो, चरिंदों और जिन्नों-इन्स (इंसान) सबकी आंखों से आपको ग़ायब कर दिया जिससे की कोई आपको न देख सका. यहां तक की सत्तर बरस का ज़माना गुज़र गया तो मुल्के फ़ारस के बादशाहों में से एक बादशाह अपने लश्कर के साथ बैतूल मुकद्दस के शहर को फिर दोबारा आबाद करने आया और बचे कुचे बनी-इस्राइल को जो आजू बाजु में बिखरे हुए थे, सबको बुला बुलाकर इस शहर में आबाद कर दिया और उन लोगों ने नई इमारतें बनाकर और तरह-तरह के बाग़ात लगाकर इस शहर को पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत और बा-रौनक बना दिया.
जब हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को पूरे 100 साल वफ़ात की हालत में हो गए तो अल्लाह तआला ने आपको दोबारा ज़िंदगी अता फ़रमाई. तो आपने देखा की आपका गधा मर चुका है और उसकी हड्डियां गल-सड़कर इधर-उधर बिखरी पड़ी है. मगर थैले में रखे हुए फ़ल और मश्कीज़े में रखा हुआ अंगूर का रस बिल्कुल खराब नहीं हुआ. न फलों में कोई बदलाव और न अंगूर के रस में कोई बदबू या ज़ाईके में कोई खटास पैदा हुई है. और आपने ये भी देखा की अब भी आपके सर और दाढ़ी के बाल काले हैं और आपकी उम्र वहीं चालीस बरस है. आप हैरान होकर सोच विचार में पड़े हुए थे की आप पर वही उतरी और अल्लाह तआला ने आपसे दर्याफ़्त फ़रमाया की ए उज़ैर! आप कीतने दिनों तक यहां रहे?
तो आपने ख्याल करके कहा की मैं सुबह के वक़्त सोया था और अब असर का वक़्त हो गया है, या ये जवाब दिया की मैं दिनभर या दिन भर से कुछ कम सोता रहा. तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया की नहीं ए उज़ैर. तुम पूरे 100 साल यहां ठहरे रहे. अब तुम हमारी कुदरत का नज़ार करने के लिए ज़रा अपने गधे को देखो की उसकी हड्डियां बिखर चुकी हैं और अपने खाने पीने की चीज़ों पर नज़र डालो की उनमें कोई खराबी और बिगाड़ पैदा नहीं हुआ. फिर इरशाद फ़रमाया की ए उज़ैर! अब तुम देखो की कीस तरह हम इन हड्डियों को उठाकर इनपर गोश्त और खाल चढ़ाकर इस गधे को ज़िंदा करते हैं. चुनांचे हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने देखा की अचानक बिखरी हुई हड्डियों में हरकत पैदा हुई और एकदम से तमाम हड्डियां जमा होकर अपने अपने जोड़ से मिलकर गधे का ढांचा बन गई और लम्हे भर में उस ढांचे पर ग़ोश्त भी चढ़ गया और गधा ज़िंदा होकर अपनी बोली बोलने लगा.
ये देखकर हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने बुलंद आवाज़ से ये कहा जिसका तर्जुमा है “में खूब जानता हूं के अल्लाह सब कुछ करने पर कुदरत रखता है.” इसके बाद हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम शहर का दौरा फ़रमाते हुए उस जगह पहुंच गए जहां 100 बरस पहले आपका मकान था. तो न तो कीसी ने आपको पहचाना, न आपने कीसी को पहचाना. हां अलबत्ता ये देखा की एक बहुत ही बूढ़ी और अपाहिज औरत मकान के पास बैठी है. जिसने अपने बचपन में हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को देखा था. आपने उससे पूछा की क्या यही उज़ैर का मकान है? तो उसने जवाब दिया की जी हां. फिर बुढ़िया ने कहा की उज़ैर का क्यों पूछा उनको तो 100 साल हो गए हैं की वो बिल्कुल ही लापता हो चुके हैं. ये कहकर बुढ़िया रोने लगी तो आपने फ़रमाया की मैं ही उज़ैर हूं. तो बुढ़िया ने कहा की सुभान अल्लाह. आप कैसे उज़ैर हो सकते हैं? आपने फ़रमाया मुझको अल्लाह तआला ने 100 साल मुर्दा रखा फ़िर मुझको ज़िंदा फरमा दिया और मैं अपने घर आ गया हूं.
तो बुढ़िया ने कहा की हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम तो ऐसे बा-कमाल थे की उनकी हर दुआ कुबूल होती थी. अगर आप वाकई हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम तो मेरे लिए दुआ कर दीजिए की मेरी आंखों में रोशनी आ जाए और मेरा फ़ालिज अच्छा हो जाए. हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने दुआ फ़रमाई तो बुढ़िया की आंखें ठीक हो गई और उसका फ़ालिज भी अच्छा हो गया. फिर उसने गौर से आपको देखा तो पहचान लिया और बोल उठी की मैं शहादत देती हूं की आप यकीनन उज़ैर अलैहिस्सलाम ही हैं. फिर वो बुढ़िया आपको लेकर बनी-इस्राइल के मोहल्ले में गई. इत्तेफाक से वो सब लोग एक मजलिस में जमा थे और उसी मजलिस में आपका बेटा भी मौजूद था जो एक सौ अठारह साल का हो चुका था और आपके चंद पोते भी थे जो सब ब-ज़ाहिर बूढ़े हो चुके थे और सबके सब ब-ज़ाहिर हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम सलाम से बड़े थे.
बुढ़िया ने मजलिस में शहादत दी और ऐलान कीया की ए लोगों बिलाशुबा ये हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम है. मगर कीसी ने बुढ़िया की बात को सही नहीं माना. इतने में उनके बेटे ने कहा की मेरे बाप के दोनों कंधों के दरमियान एक काले रंग का मस्सा था. अल्लाह तआला कुदरते कामिला पर कुरर्बान जाएं, हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने अपना कुर्ता उतार कर दिखाया तो वो मस्सा मौजूद था. फिर लोगों ने कहा की हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को तो तौरात ज़ूबानी याद थी अगर आप उज़ैर हैं तो ज़ुबानी तौरात पढ़कर सुनाइए. आपने बगैर कीसी झिझक के फौरन पूरी तौरात पढ़कर सुना दी.
बख्त -नसर बादशाह ने बैतूल मुकद्दस को तबाह करते वक़्त चालीस हज़ार तौरात के आलिमों को चुन चुन कर क़त्ल कर दिया था और तौरात की कोई जिल्द भी उसने ज़मीन पर बाक़ी नहीं छोड़ी थी. अब ये सवाल पैदा हुआ की हज़रत उज़ैर ने तौरात सही पढ़ी है या नहीं. तो एक आदमी ने कहा की मैंने अपने बाप से सुना है की जिस दिन हम लोगों को बख्त-नसर ने गिरफ्तार कीया था उस दिन एक वीराने में एक अंगूर की बेल की जड़ में तौरात की एक जिल्द दफ़न कर दी गई थी. अगर तुम लोग मेरे दादा के अंगूर की जगह की निशानदेही कर दो तो मैं तौरात की एक जिल्द बरामद कर दूंगा. उस वक़्त पता चल जाएगा की हज़रत उज़ैर ने जो तौरात पढ़ी है वो सही है या नहीं.
चुनांचे लोगों ने तलाश करके और ज़मीन खोदकर तौरात की वो जिल्द निकाल ली तो वो लफ्ज़ बा लफ्ज़ हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम की ज़ुबानी याद की हुई तौरात के मुताबिक थी. ये अजीबो गरीब और हैरतअंगेज़ माजरा देखकर सब लोगों ने एक ज़ुबान होकर ये कहना शुरू कर दिया की बेशक हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम यही है और यकीनन ये खुदा के बेटे हैं. चुनांचे उसी दिन से ये ग़लत और मुशरिकाना अकीदा यहूदियों में फ़ैल गया की मआज़अल्लाह हज़रत उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं. चुनांचे आज तक दुनियाभर के यहूदी इस बातिल अकीदे पर जमे हुए हैं की हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम खुदा के बेटे हैं.